एटा: जिले के विकासखंड सकीट स्थित वाहिद बीबीपुर इलाके में बने गौ-संरक्षण केंद्र में चारों तरफ अव्यवस्था फैली हुई है. यह गौ-संरक्षण केंद्र गोवंश के लिए एक प्रकार से यातना गृह साबित हो रहा है. गो संरक्षण केंद्र के अंदर और बाहर गोवंशों के शव सड़ रहे हैं. हालत यह है कि गौशाला के अंदर बनी नाद के पास ही गोवंश की हड्डियां पड़ी हुई हैं.
एटा: गौ-संरक्षण केंद्र बना गोवंशों के लिए नर्क, मृत पड़े हैं गोवंश
उत्तर प्रदेश के एटा स्थित वाहिद बीबीपुर इलाके में बने गौ-संरक्षण केंद्र में चारों तरफ अव्यवस्था फैली हुई है. इस गौ संरक्षण केंद्र के अंदर और बाहर गोवंशों के शव सड़ रहे हैं. वहीं मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एसपी सिंह ने अव्यवस्थाओं के लिए सेक्रेटरी और प्रधान को जिम्मेदार ठहराया है.
गो-संरक्षण केंद्र में मरी मिली दो गाएं.
एटा: जिले के विकासखंड सकीट स्थित वाहिद बीबीपुर इलाके में बने गौ-संरक्षण केंद्र में चारों तरफ अव्यवस्था फैली हुई है. यह गौ-संरक्षण केंद्र गोवंश के लिए एक प्रकार से यातना गृह साबित हो रहा है. गो संरक्षण केंद्र के अंदर और बाहर गोवंशों के शव सड़ रहे हैं. हालत यह है कि गौशाला के अंदर बनी नाद के पास ही गोवंश की हड्डियां पड़ी हुई हैं.
क्या कहते हैं पशु चिकित्सक
इस गोौ संरक्षण केंद्र में 200 से अधिक गोवंश हैं. मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एसपी सिंह बताते हैं कि जब कोई गोवंश मर जाता है तो उसको मिट्टी के अंदर दफना दिया जाता है. बीते दो-तीन दिनों में करीब दो गाय मरी थी, उनको नहीं दफनाया जा सका है. उन्होंने बताया कि प्रधान और सेक्रेटरी उनकी बात नहीं सुनते. वहीं पशु चिकित्सक डॉ. प्रवेंद्र बताते हैं कि गायों का शव तो मिट्टी में दबा दिया गया था, लेकिन बारिश होने के चलते वह बाहर निकल आया है. आगे से ऐसा नहीं होगा.
चिकित्सक की बात खड़े करते सवाल
पशु चिकित्सक के मुताबिक, गोवंश के मरने पर उन्हें 6 से 7 फीट गड्ढा खोद कर दफनाया जाता है, लेकिन बारिश के समय में वह शव बाहर निकल आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 6 फीट मिट्टी में दबे शव अपने आप कैसे बाहर निकल आते हैं. दूसरी ओर बारिश का मौसम और मृत पशुओं के खुले में सड़ते शव से स्थानीय लोग खासा परेशान हैं. एक तरफ स्थानीय लोग बदबू से परेशान हैं, तो वहीं बीमारी फैलने की आशंका भी जता रहे हैं.
क्या कहते हैं पशु चिकित्सक
इस गोौ संरक्षण केंद्र में 200 से अधिक गोवंश हैं. मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एसपी सिंह बताते हैं कि जब कोई गोवंश मर जाता है तो उसको मिट्टी के अंदर दफना दिया जाता है. बीते दो-तीन दिनों में करीब दो गाय मरी थी, उनको नहीं दफनाया जा सका है. उन्होंने बताया कि प्रधान और सेक्रेटरी उनकी बात नहीं सुनते. वहीं पशु चिकित्सक डॉ. प्रवेंद्र बताते हैं कि गायों का शव तो मिट्टी में दबा दिया गया था, लेकिन बारिश होने के चलते वह बाहर निकल आया है. आगे से ऐसा नहीं होगा.
चिकित्सक की बात खड़े करते सवाल
पशु चिकित्सक के मुताबिक, गोवंश के मरने पर उन्हें 6 से 7 फीट गड्ढा खोद कर दफनाया जाता है, लेकिन बारिश के समय में वह शव बाहर निकल आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 6 फीट मिट्टी में दबे शव अपने आप कैसे बाहर निकल आते हैं. दूसरी ओर बारिश का मौसम और मृत पशुओं के खुले में सड़ते शव से स्थानीय लोग खासा परेशान हैं. एक तरफ स्थानीय लोग बदबू से परेशान हैं, तो वहीं बीमारी फैलने की आशंका भी जता रहे हैं.