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एटा: CAA और फैज की नज्म पर खुलकर बोले कवि शंभू शिखर

उत्तर प्रदेश के एटा महोत्सव के आठवें दिन में शनिवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में देश के जाने-माने कवि शंभू शिखर ने शिरकत की.

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एटा महोत्सव के आठवें दिन हुआ कवि सम्मेलन का आयोजन
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Published : Jan 5, 2020, 11:47 AM IST

Updated : Jan 5, 2020, 12:25 PM IST

एटा: राजकीय जिला कृषि एवं औद्योगिक विकास प्रदर्शनी 2020 यानी कि एटा महोत्सव के आठवें दिन शनिवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस आयोजन में देश के जाने-माने कवि शंभू शिखर ने सीएए और फैज की नज्म 'हम देखेंगे' पर खुलकर बोला.

एटा महोत्सव के आठवें दिन हुआ कवि सम्मेलन का आयोजन.

कवि शंभू शिखर ने सीएए पर कहा कि इस कानून से किसी को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल इस मौके को भुनाने में लगे हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि यह मौका भुनाने का समय नहीं, लोगों को समझाने का समय है.

इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जा रही है, जो भी देश में परिवर्तन हो रहे हैं. उससे घर जला कर हम क्या नागरिकता हासिल करेंगे. यदि हमने अपनी बात मनवा भी ली तो हम अपने घरों को जला रहे हैं. इससे तो देश की छवि बहुत खराब होगी.

कवि जो होता है, वह युग दृष्टा होता है. फैज की नज्म जब लिखी गई, उसको बीते 50 साल से ज्यादा का समय हो गया है. फैज अहमद फैज एक कम्युनिस्ट विचारधारा के थे. उसे आज की तारीख में इस्लामिक सोच और हिंदू सोच के बीच एक फर्क हमारे सामने लाता है, क्योंकि हम मूर्तिपूजक हैं और वह मूर्ति को हटाने की बात कह रहे हैं, लेकिन उन्होंने जिन संदर्भ में यह नज्म लिखी थी. वह एक सामान्य सी बात है. इस नज्म को गाने पर वह जेल में भी रहे.
-शंभू शिखर, कवि

एटा: राजकीय जिला कृषि एवं औद्योगिक विकास प्रदर्शनी 2020 यानी कि एटा महोत्सव के आठवें दिन शनिवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस आयोजन में देश के जाने-माने कवि शंभू शिखर ने सीएए और फैज की नज्म 'हम देखेंगे' पर खुलकर बोला.

एटा महोत्सव के आठवें दिन हुआ कवि सम्मेलन का आयोजन.

कवि शंभू शिखर ने सीएए पर कहा कि इस कानून से किसी को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल इस मौके को भुनाने में लगे हैं. उन्हें यह समझना चाहिए कि यह मौका भुनाने का समय नहीं, लोगों को समझाने का समय है.

इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जा रही है, जो भी देश में परिवर्तन हो रहे हैं. उससे घर जला कर हम क्या नागरिकता हासिल करेंगे. यदि हमने अपनी बात मनवा भी ली तो हम अपने घरों को जला रहे हैं. इससे तो देश की छवि बहुत खराब होगी.

कवि जो होता है, वह युग दृष्टा होता है. फैज की नज्म जब लिखी गई, उसको बीते 50 साल से ज्यादा का समय हो गया है. फैज अहमद फैज एक कम्युनिस्ट विचारधारा के थे. उसे आज की तारीख में इस्लामिक सोच और हिंदू सोच के बीच एक फर्क हमारे सामने लाता है, क्योंकि हम मूर्तिपूजक हैं और वह मूर्ति को हटाने की बात कह रहे हैं, लेकिन उन्होंने जिन संदर्भ में यह नज्म लिखी थी. वह एक सामान्य सी बात है. इस नज्म को गाने पर वह जेल में भी रहे.
-शंभू शिखर, कवि

Intro:एटा। देश के जाने-माने कवि शंभू शिखर ने नागरिकता संशोधन कानून व फ़ैज़ की नज़्म हम देखेंगे पर खुलकर बोला है। उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून पर कहा कि इस कानून से किसी को कोई नुकसान नहीं है। लेकिन राजनीतिक दल इस मौके को भुनाने में लगे हैं। वही फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म हम देखेंगे पर उठे विवाद पर उन्होंने कहा कि आज की तारीख में जरूरी मुद्दों पर से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए यह हो रहा है।


Body:दरअसल जिले के सैनिक पड़ाव पर चल रहे राजकीय जिला कृषि एवं औद्योगिक विकास प्रदर्शनी 2020 यानी कि एटा महोत्सव के आठवें दिन शनिवार को आयोजित कवि सम्मेलन में पहुंचे देश के जाने-माने कवि शंभू शिखर ने नागरिकता संशोधन कानून पर कहा कि इस कानून से वास्तव में कोई नुकसान नहीं है। लेकिन अगर फिर भी जनता के बीच में किसी तरह की कोई ऐसी सूचना है। जो उनको स्पष्ट नहीं है,तो निश्चित तौर पर सरकार को पूरी तरह से स्पष्ट करना चाहिए। इसके अलावा जितने भी राजनीतिक दल इस मौके को भुनाने में लगे हैं । उन्हें यह समझना चाहिए कि यह मौका भुनाने का समय नहीं,लोगों को समझाने का समय है। इस कानून से किसी की नागरिकता नहीं जा रही है । जो भी देश में परिवर्तन हो रहे हैं । उससे घर जला कर हम क्या नागरिकता हासिल करेंगे। यदि हमने अपनी बात मनवा भी ली, तो हम अपने घरों को जला रहे हैं। इससे तो देश की छवि बहुत खराब होगी।



Conclusion:इसके अलावा फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म हम देखेंगे पर खड़े हुए विवाद पर शंभू शिखर ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए कहा कि कवि जो होता है, वह युग दृष्टा होता है। फ़ैज़ की नज़्म जब लिखी गई। उसको बीते 50 साल से ज्यादा का समय हो गया है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एक कम्युनिस्ट विचारधारा के थे। उन्होंने कहा कि जिस बात को लेकर बवाल मचा है । उसे आज की तारीख में इस्लामिक सोच और हिंदू सोच के बीच एक फर्क हमारे सामने लाता है । क्योंकि हम मूर्तिपूजक है और वह मूर्ति को हटाने की बात कह रहे हैं । लेकिन उन्होंने जिन संदर्भ में यह नज़्म लिखी थी वह एक सामान्य सी बात है । उनको लिखे हुए 50 साल से ज्यादा का समय हो गया । इस नज़्म को गाने पर वह जेल में भी रहे। उन पर पाकिस्तान में पाबंदी भी लगाई गई। आज की तारीख में यह मुद्दों से भटकाने का काम है । इसके अलावा कुछ भी नहीं।
बाइट: शंभू शिखर (कवि)
Last Updated : Jan 5, 2020, 12:25 PM IST
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