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Barhaj Assembly Seat: विकास को मुंह चिढ़ाता अधर में लटका पुल, ठेंगा दिखाती सड़कें

यूपी के देवरिया में बरहज विधानसभा सीट राजनीति की धुरी मानी जाती है. जब भी चुनाव आता है तब इस क्षेत्र में बाढ़ और बरहजिया रेलवे लाइन का विस्तार मुद्दा बनता है, लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि भूल जाते हैं कि हर साल बाढ़ की तबाही से लोग परेशान होते हैं. कई दिग्गजों ने इस विधानसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन किसी ने भी इस विधानसभा के विकास के लिए जहमत नहीं उठाई.

बरहज विधानसभा सीट का चुनावी मुद्दा
बरहज विधानसभा सीट का चुनावी मुद्दा
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Published : Sep 12, 2021, 10:16 PM IST

देवरिया: सरयू नदी के तट पर बसे बरहज कस्बे के नाम से ही जिले की विधानसभा का नाम है. देवरिया जिले में बरहज विधानसभा राजनीति की धुरी मानी जाती है. यहां से कई कद्दावर नेताओं का जमावड़ा लगा रहता है और किसी ने किसी कारण से यह विधानसभा चर्चा में रहती है. हमेशा की तरह यहां भी जिस दल या जिस नेता ने क्षेत्र के लिए विकास का वादा किया, उसपर जनता ने यह सोच कर भरोसा किया शायद इस बार तो विकास हो जाएगा. लेकिन विकास वो कहां होना है, यदि विकास हो जाएगा तो अगले चुनाव में नेताओं को मुद्दा कैसे मिलेगा. जब-जब चुनाव आता है तब-तब इस क्षेत्र में बाढ़ और बरहजिया रेलवे लाइन का विस्तार मुद्दा बनता है, लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि भूल जाते हैं कि हर साल बाढ़ की तबाही से लोग परेशान होते हैं.

आज भी वैसी ही है विधानसभा की तस्वीर

हर बार अस्थाई समाधान से काम चल जाता है, लेकिन पूर्णंत: समाधान आज तक नहीं किया गया. इस विधानसभा में बरहजिया एक ऐसी ट्रेन है जो जिले के अंदर ही भटनी से बरहज तक मात्र 31 किमी. तक चलती है. आज तक इसका भी विस्तार नहीं हो सका है. मोहन सेतु पुल जिसके निर्माण से लोगों को काफी सहूलियत होगी, लेकिन बजट के आभाव में यह भी अधर में लटका है. इसी विधानसभा सीट से बसपा के चर्चित विधायक रामप्रसाद जायसवाल, सपा के राष्ट्रीय महासचिव और देवरिया से सांसद रहे मोहन सिंह, दुर्गा प्रसाद मिश्र ने चुनाव लड़ा और सफलता भी मिली. इन दिग्गजों के विधानसभा में जाने के बाद भी बरहज विधानसभा की तस्वीर आज तक नहीं बदली.

देवरिया की बरहज विधानसभा सीट

यहां मुंह चिढ़ाती हैं समस्याएं

बरहज बाबा राघव दास और देवरहा बाबा की तपोभूमि रही है. आजादी के बाद यहां के लोगों ने सभी दलों को मौका दिया है, लेकिन आज भी समस्याएं वैसे ही मुंह चिढ़ा रही हैं. बाढ़ की विभीषिका से जहां हर साल लोगों बेघर होना पड़ रहा है, वहीं उच्च शिक्षा के लिए भी युवाओं को शहर की ओर से जाना पड़ता है. बरहज रेलवे स्टेशन पर जानवारों का बसेरा रहता है, यहां साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है. सरकार की उदासीनता के कारण बरहजिया ट्रेन भटनी से बरहज तक सिर्फ दो चक्कर ही दौड़ रही है. स्थानीय लोगों और रेलवे लाइन के किनारे बसे गांव वालों का सिर्फ एक ही संसाधन बरहजिया ट्रेन है.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ उत्तर विधानसभा: पहले चली साइकिल, फिर खिला कमल

आज भी अधर में है पुल का निर्माण

बरहज विधानसभा पर सर्वाधिक कब्जा समाजवादियों का रहा है. बसपा, सपा, भाजपा और निर्दल प्रत्याशियों को भी लोगों ने मौका दिया, लेकिन लोगों के दर्द को किसी ने नहीं समझा. विकास के नाम पर सिर्फ कागजी दावे हुए. इसका हर्जाना आज भी क्षेत्र के लोगों को झेलना पड़ रहा है. हर साल यहां बाढ़ से दर्जनों गांवों की गृहस्थी उजड़ जाती है. नदी उस पार बसे विशुनपुरा देवार और परसिया देवार के लोग आज भी नाव से सफर करने के लिए मजबूर हैं. सात साल पहले वर्ष 2014 में पूर्व सांसद मोहन सिंह के निधन पर उनके घर आए मुलायम सिंह और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने यहां पुल के निर्माण की घोषणा की थी. सपा सरकार में पुल का निर्माण तेजी से हुआ लेकिन, मौजूदा सरकार में बजट की कमी के कारण पुल का निर्माण अधर में लटका है. इस पुल के निर्माण से जहां देवरिया से मऊ तक की दूरी कम हो जाएगी, वहीं सरयू नदी के उस पार बसे गांव वालों की राह आसान हो जाएगी.

इसे भी पढ़ें- जानिए 'पूरनपुर विधानसभा सीट' का खेल, क्या इस बार भी होगा उलटफेर

ऐसा है इस विधानसभा का इतिहास

बरहज विधानसभा क्षेत्र में देवरहा बाबा आश्रम मईल में है, जहां कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी माथा टेकने आती थीं. उस आश्रम की हालत भी इस समय दयनीय है. आजादी के बाद पहले विधायक देवनंदन शुक्ला कांग्रेस से चुने गए थे. 1989 में हुआ विधानसभा चुनाव काफी रोचक था. उस समय निर्दल प्रत्याशी साइकिल के सिंबल पर पूर्व विधायक स्वामीनाथ चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी पूर्व सांसद मोहन सिंह को चुनाव हरा दिया था. मोहन सिंह जनता दल से चुनाव मैदान में थे. सपा ने स्वामीनाथ के चुनाव निशान साइकिल को अपना सिंबल बना लिया और 1993 में सपा-बसपा गठबंधन में स्वामीनाथ दोबारा चुनाव जीत गए. दुर्गा प्रसाद मिश्र ने पहली बार भाजपा से जीत हासिल की थी और दूसरी बार 2002 में निर्दल चुनाव जीते थे. 2007 में बसपा से रामप्रसाद जायसवाल विधायक चुने गए. वर्ष 2012 में सपा से प्रेमप्रकाश सिंह चुनाव जीते थे.

जनता बोली

क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि बरहज से नाव मार्ग से व्यापार होता था. आज बरहज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. चुनाव में नेता आते हैं ओर वादा करके चले जाते हैं, जीतने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता. बरहज विधानसभा क्षेत्र में बाढ़ की प्रमुख समस्या है. इस पर सरकार काम तो कर रही है लेकिन, लोगों को इससे निजात नहीं मिल रही है. सत्ता पक्ष के नेता सिर्फ दौरा कर रहे हैं. क्षेत्र की सड़कें जर्जर हो चुकी हैं. लोगों की मांग पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरयू नदी पर मोहन सिंह की याद में पुल बनवाने का वादा किया था. भाजपा सरकार में पुल का निर्माण अधर में लटका है, इसकी वजह से नदी उस पार के बसे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

देवरिया: सरयू नदी के तट पर बसे बरहज कस्बे के नाम से ही जिले की विधानसभा का नाम है. देवरिया जिले में बरहज विधानसभा राजनीति की धुरी मानी जाती है. यहां से कई कद्दावर नेताओं का जमावड़ा लगा रहता है और किसी ने किसी कारण से यह विधानसभा चर्चा में रहती है. हमेशा की तरह यहां भी जिस दल या जिस नेता ने क्षेत्र के लिए विकास का वादा किया, उसपर जनता ने यह सोच कर भरोसा किया शायद इस बार तो विकास हो जाएगा. लेकिन विकास वो कहां होना है, यदि विकास हो जाएगा तो अगले चुनाव में नेताओं को मुद्दा कैसे मिलेगा. जब-जब चुनाव आता है तब-तब इस क्षेत्र में बाढ़ और बरहजिया रेलवे लाइन का विस्तार मुद्दा बनता है, लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि भूल जाते हैं कि हर साल बाढ़ की तबाही से लोग परेशान होते हैं.

आज भी वैसी ही है विधानसभा की तस्वीर

हर बार अस्थाई समाधान से काम चल जाता है, लेकिन पूर्णंत: समाधान आज तक नहीं किया गया. इस विधानसभा में बरहजिया एक ऐसी ट्रेन है जो जिले के अंदर ही भटनी से बरहज तक मात्र 31 किमी. तक चलती है. आज तक इसका भी विस्तार नहीं हो सका है. मोहन सेतु पुल जिसके निर्माण से लोगों को काफी सहूलियत होगी, लेकिन बजट के आभाव में यह भी अधर में लटका है. इसी विधानसभा सीट से बसपा के चर्चित विधायक रामप्रसाद जायसवाल, सपा के राष्ट्रीय महासचिव और देवरिया से सांसद रहे मोहन सिंह, दुर्गा प्रसाद मिश्र ने चुनाव लड़ा और सफलता भी मिली. इन दिग्गजों के विधानसभा में जाने के बाद भी बरहज विधानसभा की तस्वीर आज तक नहीं बदली.

देवरिया की बरहज विधानसभा सीट

यहां मुंह चिढ़ाती हैं समस्याएं

बरहज बाबा राघव दास और देवरहा बाबा की तपोभूमि रही है. आजादी के बाद यहां के लोगों ने सभी दलों को मौका दिया है, लेकिन आज भी समस्याएं वैसे ही मुंह चिढ़ा रही हैं. बाढ़ की विभीषिका से जहां हर साल लोगों बेघर होना पड़ रहा है, वहीं उच्च शिक्षा के लिए भी युवाओं को शहर की ओर से जाना पड़ता है. बरहज रेलवे स्टेशन पर जानवारों का बसेरा रहता है, यहां साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है. सरकार की उदासीनता के कारण बरहजिया ट्रेन भटनी से बरहज तक सिर्फ दो चक्कर ही दौड़ रही है. स्थानीय लोगों और रेलवे लाइन के किनारे बसे गांव वालों का सिर्फ एक ही संसाधन बरहजिया ट्रेन है.

इसे भी पढ़ें- लखनऊ उत्तर विधानसभा: पहले चली साइकिल, फिर खिला कमल

आज भी अधर में है पुल का निर्माण

बरहज विधानसभा पर सर्वाधिक कब्जा समाजवादियों का रहा है. बसपा, सपा, भाजपा और निर्दल प्रत्याशियों को भी लोगों ने मौका दिया, लेकिन लोगों के दर्द को किसी ने नहीं समझा. विकास के नाम पर सिर्फ कागजी दावे हुए. इसका हर्जाना आज भी क्षेत्र के लोगों को झेलना पड़ रहा है. हर साल यहां बाढ़ से दर्जनों गांवों की गृहस्थी उजड़ जाती है. नदी उस पार बसे विशुनपुरा देवार और परसिया देवार के लोग आज भी नाव से सफर करने के लिए मजबूर हैं. सात साल पहले वर्ष 2014 में पूर्व सांसद मोहन सिंह के निधन पर उनके घर आए मुलायम सिंह और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने यहां पुल के निर्माण की घोषणा की थी. सपा सरकार में पुल का निर्माण तेजी से हुआ लेकिन, मौजूदा सरकार में बजट की कमी के कारण पुल का निर्माण अधर में लटका है. इस पुल के निर्माण से जहां देवरिया से मऊ तक की दूरी कम हो जाएगी, वहीं सरयू नदी के उस पार बसे गांव वालों की राह आसान हो जाएगी.

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ऐसा है इस विधानसभा का इतिहास

बरहज विधानसभा क्षेत्र में देवरहा बाबा आश्रम मईल में है, जहां कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी माथा टेकने आती थीं. उस आश्रम की हालत भी इस समय दयनीय है. आजादी के बाद पहले विधायक देवनंदन शुक्ला कांग्रेस से चुने गए थे. 1989 में हुआ विधानसभा चुनाव काफी रोचक था. उस समय निर्दल प्रत्याशी साइकिल के सिंबल पर पूर्व विधायक स्वामीनाथ चुनाव लड़ रहे थे. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी पूर्व सांसद मोहन सिंह को चुनाव हरा दिया था. मोहन सिंह जनता दल से चुनाव मैदान में थे. सपा ने स्वामीनाथ के चुनाव निशान साइकिल को अपना सिंबल बना लिया और 1993 में सपा-बसपा गठबंधन में स्वामीनाथ दोबारा चुनाव जीत गए. दुर्गा प्रसाद मिश्र ने पहली बार भाजपा से जीत हासिल की थी और दूसरी बार 2002 में निर्दल चुनाव जीते थे. 2007 में बसपा से रामप्रसाद जायसवाल विधायक चुने गए. वर्ष 2012 में सपा से प्रेमप्रकाश सिंह चुनाव जीते थे.

जनता बोली

क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि बरहज से नाव मार्ग से व्यापार होता था. आज बरहज अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. चुनाव में नेता आते हैं ओर वादा करके चले जाते हैं, जीतने के बाद कोई झांकने तक नहीं आता. बरहज विधानसभा क्षेत्र में बाढ़ की प्रमुख समस्या है. इस पर सरकार काम तो कर रही है लेकिन, लोगों को इससे निजात नहीं मिल रही है. सत्ता पक्ष के नेता सिर्फ दौरा कर रहे हैं. क्षेत्र की सड़कें जर्जर हो चुकी हैं. लोगों की मांग पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरयू नदी पर मोहन सिंह की याद में पुल बनवाने का वादा किया था. भाजपा सरकार में पुल का निर्माण अधर में लटका है, इसकी वजह से नदी उस पार के बसे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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