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...जानिए डैकत बबली कोल की कहानी, जिसके नाम से कांपता था चबंल का बीहड़ - babli kol encounter news

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के कुख्यात डाकू बबली की मौत हो चुकी है. बबली के जानकार गुडुवा ने ईटीवी को बताया कि आखिर बबली डाकू कैसे बना था.

डकैत बबली कोल के जानकार ने की ईटीवी से की बातचीत.
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Published : Sep 17, 2019, 9:14 AM IST

चित्रकूट: जनपद में डाकू बबली से प्रताड़ित लोगों को डोडा गांव को छोड़कर दूसरे गांव बीजहना में विस्थापित होना पड़ा. ईटीवी भारत की टीम ने गुडुवा नाम के युवक से बात की जो बबली के साथ बड़ा हुआ और उसके साथ खेला था. गुडुवा ने बताया कि आखिर क्यों बबली डाकू बना.

डकैत बबली कोल के जानकार ने की ईटीवी से की बातचीत.

गुडुवा का मानना है कि दस्यु सरगना मौत की बाद लोगों ने राहत की सांस ली है. उसका कहना है कि हमारे गांव का विकास होगा और हमे विकास चाहिए. पहले सरकारी अफसर बबली का नाम आगे बताकर कभी भी गांव की ओर रुख नहीं करते थे. गुडुवा ने बताया कि आखिर यह बबली डाकू सरगना का खूंखार डकैत कैसे बना ? उसका कहना है कि बचपन में बबली के अभिभावक की मौत के बाद वह घूमता रहा कभी उसे किसी के यहां से खाना मिल जाता तो खा लेता, कभी उसे भूखे पेट ही सोना पड़ता था.

पहले डाकुओं के लिए छोटे-मोटे काम करता था बबली
गांव के प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा लेते समय उस समय के तत्कालीन डाकू गिरोह ददुआ देवकली का फरमान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्तीय इलाके में चला करता था. ददुआ कभी-कभी डोडा गांव आता जाता था. छोटे कामों के लिए लावारिस घूम रहे बबली को बुलाकर समान मंगा लिया जाता था. धीरे-धीरे बबली इन सामानों को लेकर डाकू गिरोह के लिए जंगल भी पहुंचने लगा, लेकिन पुलिस को बबली पर कभी शक नहीं हुआ. धीरे-धीरे बबली के जरिये डाकुओं का सामान भी सुरक्षित जंगल पहुंचने लगा और बदले में डाकू बबली को थोड़े बहुत पैसे देने लगे.

बबली कैसे बना बबली कोल
2007 में ददुआ के खात्मे के बाद उसका बचा साथी बलखड़िया उर्फ स्वदेश पटेल ने गिरोह की कमान संभाली और बबली धीरे-धीरे उसका काम करने लगा. पुलिस को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि डाकू बलखड़िया को समान देने का काम बबली करता है. इसके बाद पुलिस बबली को ढूंढती और जगह-जगह दबिश देने लगी. पुलिस के दबाव के कारण उसने अपने पैर जंगल की तरफ मोड़ दिए और फिर बबली ने कभी मुड़कर नहीं देखा. वह गुनाहों की दलदल में और गहरा फंसता गया और बबली बन गया बबली कोल.

बबली कोल की मौत के बाद ग्रामीणों ने ली राहत की सांस
धीरे-धीरे बलखड़िया का दिल जीत कर पहले समान उठा कर चलने वाला बबली अब कंधों में बंदूक टांग कर गांव-गांव में दिखने लगा. 2016 में बलखड़िया की मौत के बाद गैंग का सरदार दस्सु सम्राट बबली कोल बना और उसका दाहिना हाथ रहा लवली, जो कि उसका दूर का रिश्तेदार था. धीरे-धीरे इनका आतंक यूपी और एमपी में लगातार फैलता रहा. बबली गिरोह थाना मानिकपुर, मारकुंडी, बहिलपुरवा के इलाकों में पहुंचकर रंगदारी, अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसे वारदातों को अंजाम देता. ये सब इनके लिए आम बात हो गई थी. बबली कोल की मौत के बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है.

चित्रकूट: जनपद में डाकू बबली से प्रताड़ित लोगों को डोडा गांव को छोड़कर दूसरे गांव बीजहना में विस्थापित होना पड़ा. ईटीवी भारत की टीम ने गुडुवा नाम के युवक से बात की जो बबली के साथ बड़ा हुआ और उसके साथ खेला था. गुडुवा ने बताया कि आखिर क्यों बबली डाकू बना.

डकैत बबली कोल के जानकार ने की ईटीवी से की बातचीत.

गुडुवा का मानना है कि दस्यु सरगना मौत की बाद लोगों ने राहत की सांस ली है. उसका कहना है कि हमारे गांव का विकास होगा और हमे विकास चाहिए. पहले सरकारी अफसर बबली का नाम आगे बताकर कभी भी गांव की ओर रुख नहीं करते थे. गुडुवा ने बताया कि आखिर यह बबली डाकू सरगना का खूंखार डकैत कैसे बना ? उसका कहना है कि बचपन में बबली के अभिभावक की मौत के बाद वह घूमता रहा कभी उसे किसी के यहां से खाना मिल जाता तो खा लेता, कभी उसे भूखे पेट ही सोना पड़ता था.

पहले डाकुओं के लिए छोटे-मोटे काम करता था बबली
गांव के प्राथमिक विद्यालय से शिक्षा लेते समय उस समय के तत्कालीन डाकू गिरोह ददुआ देवकली का फरमान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्तीय इलाके में चला करता था. ददुआ कभी-कभी डोडा गांव आता जाता था. छोटे कामों के लिए लावारिस घूम रहे बबली को बुलाकर समान मंगा लिया जाता था. धीरे-धीरे बबली इन सामानों को लेकर डाकू गिरोह के लिए जंगल भी पहुंचने लगा, लेकिन पुलिस को बबली पर कभी शक नहीं हुआ. धीरे-धीरे बबली के जरिये डाकुओं का सामान भी सुरक्षित जंगल पहुंचने लगा और बदले में डाकू बबली को थोड़े बहुत पैसे देने लगे.

बबली कैसे बना बबली कोल
2007 में ददुआ के खात्मे के बाद उसका बचा साथी बलखड़िया उर्फ स्वदेश पटेल ने गिरोह की कमान संभाली और बबली धीरे-धीरे उसका काम करने लगा. पुलिस को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि डाकू बलखड़िया को समान देने का काम बबली करता है. इसके बाद पुलिस बबली को ढूंढती और जगह-जगह दबिश देने लगी. पुलिस के दबाव के कारण उसने अपने पैर जंगल की तरफ मोड़ दिए और फिर बबली ने कभी मुड़कर नहीं देखा. वह गुनाहों की दलदल में और गहरा फंसता गया और बबली बन गया बबली कोल.

बबली कोल की मौत के बाद ग्रामीणों ने ली राहत की सांस
धीरे-धीरे बलखड़िया का दिल जीत कर पहले समान उठा कर चलने वाला बबली अब कंधों में बंदूक टांग कर गांव-गांव में दिखने लगा. 2016 में बलखड़िया की मौत के बाद गैंग का सरदार दस्सु सम्राट बबली कोल बना और उसका दाहिना हाथ रहा लवली, जो कि उसका दूर का रिश्तेदार था. धीरे-धीरे इनका आतंक यूपी और एमपी में लगातार फैलता रहा. बबली गिरोह थाना मानिकपुर, मारकुंडी, बहिलपुरवा के इलाकों में पहुंचकर रंगदारी, अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसे वारदातों को अंजाम देता. ये सब इनके लिए आम बात हो गई थी. बबली कोल की मौत के बाद ग्रामीणों ने राहत की सांस ली है.

Intro:चित्रकूट में डाकू बबली कोल से प्रताड़ित बाहरी लोग ही नहीं बल्कि गांव के उनके अपने भी उसकी करतूतों से प्रभावित हुए, यही कारण है कि आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने के कारण पूरे आदिवासी ग्रामीणों को अपना पैतृक गांव डोडा सोसाइटी छोड़कर विस्थापित होना पड़ा और आज वह रह रहे हैं नए बसे एक गांव बीजहना में ।वही दस्यु सरगना के साथ खेले बड़े हुए भी उनके अपने कह रहे हैं ,साहब सही हुआ- उसकी मौत के बाद हमारा व गांव का विकास होगा


Body:बबली कोल का पैतृक गांव डोडा सोसाइटी आज खण्डहर में तब्दील हो चुका है। डकैतों और पुलिस की आपसी धमा चौकड़ी के बीच पीस रहे ग्रामीणों ने फैसला किया कि अब वह डोडा सोसाइटी में नहीं रहेंगे और उन्होंने अपना नया ठिकाना बनाया बनाया बिजहना गांव को । जब ईटीवी की टीम बिजहना गांव पहुंची, तब वहां दस्यु बबली के साथ बड़े हुए ,साथ में खेले , गुडुवा से मुलाकात हुई गुडुवा ने सारी सच्चाई ईटीवी के सामने बयां की आखिर बबली का स्वाजतीय होने के बाद भी वह कितना परेशान था
गुडुवा का मानना है कि दस्यु सरगना मौत के बाद लोगों ने राहत की सांस ली है हमारा वा हमारे गांव का विकास होगा हमें विकास चाहिए पहले सरकारी अफसर बबली का नाम आगे बताकर कभी भी गांव की ओर रुख नहीं करते थे ।तो आखिर यह बबली डाकू सरगना का खूंखार डकैत आखिर कैसे बना गुडुवा बताते हैं की बचपन में अभिभावक की मौत के बाद वह बबली यहां वहां घूमता रहा कभी उसे किसी के यहां से खाना मिल जाता तो कभी उसे भूखे पेट ही सोना पड़ता था गांव के प्राथमिक से 5 क्लास शिक्षा लेते समय उस समय के तत्कालीन डाकू गिरोह ददुआ देवकली का फरमान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के सीमावर्तीय इलाके में चला करता था ।ददुआ कभी-कभी डोडा गांव आता जाता था ।तब बीड़ी माचिस ली कर आने जैसे छोटे कामों के लिए लावारिस घूम रहे लड़के बबली को बुलाकर समान मंगा लिया जाता था। धीरे-धीरे बबली अब इन सामानों को लेकर डाकू गिरोह के लिए जंगल भी पहुंचने लगा ।जिससे पुलिस इस छोटे लड़के के ऊपर शक नहीं करती थी। और डाकुओं का सामान भी सुरक्षित पहुंचने लगा। बदले में डाकू बबली को थोड़े बहुत पैसे देने लगे धीरे धीरे बबली की लालच बढ़ती गई और वह डाकू गिरोहों के आने का इंतजार करने लगा ।2007 में ददुआ के खात्मे के बाद उसका बचा साथी बलखड़िया उर्फ स्वदेश पटेल ने गिरोह की कमान संभाली और बबली धीरे-धीरे उसका काम करने लगा। पुलिस के मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि डाकू बलखड़िया को समान देने का काम बबली करता है। तब पुलिस बबली को ढूंढती और जगह-जगह दबिश देने लगी। पुलिस के दबाव के कारण उसने अपने पैर जंगल की तरफ मोड़ दिए ।फिर बबली ने कभी मुड़कर नहीं देखा वह गुनाहों की दलदल में और गहरा फसता गया और बबली से सूबे के सब से बड़ा इनमिया डाकू बबली कोल बन गया।
धीरे-धीरे बलखड़िया का दिल जीत कर पहले समान उठा कर चलने वाला बबली अब कंधों में बंदूक टांग कर गांव गांव में दिखने लगा ।20 16 में बलखड़िया की मौत के बाद गैंग का सरदार दस्सु सम्राट बबली कोल बना और उसका दाहिना हाथ रहा लवली जोकि उसका दूर का रिश्तेदार था। धीरे-धीरे इनका आतंक यू पी और एम पी में लगातार फैलता रहा और इस बबली गिरोह ने थाना मानिकपुर मारकुंडी बहिलपुरवा के इलाकों में पहुंचकर रंगदारी अपहरण बलात्कार हत्या जैसे वारदाते इनके लिए आम बात होगी
और आज उसके अंत होने के ग्रामीणों ने राहत की स्वांस ली है।


Conclusion:
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