चित्रकूट: उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में कभी डाकुओं से खौफजदा रहने वाला चित्रकूट का पाठा गांव आज खौफ से जुदा है. इलाके में दुर्दांत डाकुओं का खौफ ऐसा था जिसका साया कई दशकों तक बना रहा. दहशत की यादें आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई हैं. लेकिन डाकुओं के खात्मे के बाद अब चित्रकूट के पाठा में शांति लौट आई है. अब यहां पर विद्यालय के ताले खुलने लगे हैं. अध्यापक रोज स्कूल आने लगे हैं. छात्रों की तादाद विद्यालय में बढ़ रही है. यही नहीं बल्कि निजी क्षेत्र के विद्यालय भी अब ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देने के लिए कदम आगे बढ़ा रहे हैं.
कभी डकैतों की शरणस्थली था पाठा
चित्रकूट के करौहा इलाके को डाकुओं की शरणस्थली भी कहा जाता रहा है क्योंकि इस गांव में बने प्राथमिक विद्यालय के पीछे स्थित गजना पहाड़ में ही डाकुओं का ठिकाना था. जब मध्यप्रदेश पुलिस दबिश देती तो ये करौहा में आ जाते या फिर जब उत्तरप्रदेश पुलिस दबिश देती तो इसी पहाड़ से चढ़ कर गोलीबारी कर दहशत फैलाते थे. गोलियों की तड़तड़ाहट उन दुर्दांत डकैतों की कहानी के लिए सबसे ज्यादा जानी जाती थी, जहां कई दशकों से डाकुओं का आतंक रहा. पाठा के बीहड़ का डाकू ददुआ, ठोकिया, बलखड़िया, बबली और लवली, डाकू का वह खूंखार चेहरा आज भी लोगों के बीच खौफ की वजह बने हुए हैं. डाकुओं के खात्मे के बाद आज भी उनकी दहशत ग्रामीणों के रोंगटे खड़े कर देती है.
खत्म हुई डकैतों की दहशत
तीन दशकों तक चित्रकूट में डाकू ददुआ की बादशाहत रही. मध्य प्रदेश की राजनीति में ददुआ का अच्छा खासा दखल रहा. ददुआ जिसके ऊपर हाथ रखता था उसको सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष तक बना देता था. यही नहीं छोटे से छोटे चुनाव में भी इनकी दखलअंदाजी होती थी लेकिन नई तकनीक और पुलिसिया तरकीब ने साल 2007 में ददुआ को मार गिराया.
कुख्यात डकैतों का पुलिस ने नहीं छोड़ा पीछा
इसके बाद भी पुलिस ने डकैतों का पीछा नहीं छोड़ा. ऐसे में ठोकिया, रागिया, बलखड़िया, शंकर केवट जैसे खूंखार डकैतों का खात्मा हुआ. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस ने डाकू के खूंखार चेहरा कहलाने वाले सात लाख के ईनामी डाकू बबली कोल और उसका दायां हाथ रहे लवलेश को 15 सितंबर 2019 में एक मुठभेड़ में मार गिराया.
स्कूल के खुलने लगे हैं ताले
बबली कोल के खात्मे के बाद चित्रकूट के पाठा इलाके में शांति लौट आई है. विद्यालयों के ताले खुलने लगे हैं. अध्यापक नियमित विद्यालय आते हैं तो छात्रों की उपस्थिति दिनों दिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में परिषदीय विद्यालय नहीं बल्कि निजी विद्यालय भी अब ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देने के लिए आगे आ रहे हैं.