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लॉकडाउन: छत्तीसगढ़ के लिए लखनऊ से साइकिल से निकले मजदूर, पहुंचे चित्रकूट

वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते देश में हुए लॉकडाउन ने मजदूरों की परेशानियां बढ़ा दी हैं. जो दिहाड़ी मजूदर अपने घरों से दूर दूसरे प्रांतों में जाकर मेहनत मजदूरी कर अपना भरण-पोषण करते थे, वे अब वापस घर आने को मजबूर हैं. ऐसा ही एक मामला चित्रकूट जिले में देखने को मिला, जहां लखनऊ से 300 किलो मीटर का सफर तय करके मजदूर पहुंचे. ये सभी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं.

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Published : May 2, 2020, 1:19 PM IST

laborers left for chhattisgarh from lucknow
लखनऊ से छ्तीसगढ़ के मजदूरों का पलायन.

चित्रकूट: लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है. रोज कमाकर खाने वाले ये मजदूर सहायता न मिलने पर अब पलायन करने को मजबूर हैं. लखनऊ के दिहाड़ी मजदूर 700 किलोमीटर की यात्रा कर छत्तीसगढ़ जाने के लिए अपने परिवार को लेकर चित्रकूट पहुंचे. 300 किलोमीटर की यात्रा के दौरान इन मजदूरों का न ही स्वास्थ परीक्षण हुआ और न ही किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता मिली.

laborers left for chhattisgarh from lucknow
दिहाड़ी मजदूर.

40 दिन तक लखनऊ में फंसे मजदूर
मजदूरों को लखनऊ में फंसे पूरे 40 दिन बीत चुके थे. पैसे और राशन सब खत्म होने को था. ऐसे में मजबूर होकर इन्हें अपने घरों का रुख करना पड़ा. घर भी कोई आसपास नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य में है. ईटीवी भारत से बातचीत में इन मजदूरों का दर्द छलक पड़ा.

साइकिल से घर जाने को मजबूर हुए दिहाड़ी मजदूर.

'एक दाना भी सरकार की तरफ से नहीं मिला'
मजदूरों का कहना है कि इन्हें लखनऊ में एक दाना भी सरकार की ओर से नहीं मिला. हेल्पलाइन में फोन करने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली. केंद्र व राज्य सरकार के आपसी बातचीत की खबरें जरूर सुनने को मिलती रहीं कि जल्द ही इन्हें इनके प्रदेश में पहुंचाया जाएगा पर आखिर कब तक भूखे पेट इंतजार किया जा सकता था.

चित्रकूट के मानिकपुर से मध्यप्रदेश की ओर जा रहे मजदूरों का 300 किलोमीटर के सफर के दौरान कहीं भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ है, और न ही कोई सरकारी सहायता मिली. ऐसे में सरकार के दावों के बीच मजदूर अपने परिवार को लिए लंबी यात्रा करने को मजबूर हैं.

राधिका साहू ने बताया कि, 'हम लोग लखनऊ से चित्रकूट पहुंचे हैं और हमें छत्तीसगढ़ जाना है. लॉकडाउन में एक से डेढ़ महीना हम लोगों ने बैठकर खाया है, जिसके बाद हमारे पास राशन भी खत्म होने लगा और पैसे भी. भुखमरी की कगार में पहुंचे हमारे परिवार को बचाने के लिए हम लोगों ने अपने घर छत्तीसगढ़ जाने का फैसला किया है.'

चित्रकूट: लॉकडाउन का पर्यावरण पर दिखा असर, हवा-पानी साफ

दिहाड़ी मजदूर रामनारायण साहू ने बताया, 'सरकार की घोषणा के बाद भी हमें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली. खाद्यान्न वितरण से लेकर सरकार ने प्रत्येक परिवार को उनके खाते में पैसा देने की बात की थी पर हमें कोई लाभ नहीं मिल पाया है. हमें परिवार चलाना भी भारी पड़ रहा था. मजबूरी में हम लोगों को साइकिल से ही अपने परिवार को लेकर घर जाना पड़ रहा है.'

चित्रकूट: लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है. रोज कमाकर खाने वाले ये मजदूर सहायता न मिलने पर अब पलायन करने को मजबूर हैं. लखनऊ के दिहाड़ी मजदूर 700 किलोमीटर की यात्रा कर छत्तीसगढ़ जाने के लिए अपने परिवार को लेकर चित्रकूट पहुंचे. 300 किलोमीटर की यात्रा के दौरान इन मजदूरों का न ही स्वास्थ परीक्षण हुआ और न ही किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता मिली.

laborers left for chhattisgarh from lucknow
दिहाड़ी मजदूर.

40 दिन तक लखनऊ में फंसे मजदूर
मजदूरों को लखनऊ में फंसे पूरे 40 दिन बीत चुके थे. पैसे और राशन सब खत्म होने को था. ऐसे में मजबूर होकर इन्हें अपने घरों का रुख करना पड़ा. घर भी कोई आसपास नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य में है. ईटीवी भारत से बातचीत में इन मजदूरों का दर्द छलक पड़ा.

साइकिल से घर जाने को मजबूर हुए दिहाड़ी मजदूर.

'एक दाना भी सरकार की तरफ से नहीं मिला'
मजदूरों का कहना है कि इन्हें लखनऊ में एक दाना भी सरकार की ओर से नहीं मिला. हेल्पलाइन में फोन करने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली. केंद्र व राज्य सरकार के आपसी बातचीत की खबरें जरूर सुनने को मिलती रहीं कि जल्द ही इन्हें इनके प्रदेश में पहुंचाया जाएगा पर आखिर कब तक भूखे पेट इंतजार किया जा सकता था.

चित्रकूट के मानिकपुर से मध्यप्रदेश की ओर जा रहे मजदूरों का 300 किलोमीटर के सफर के दौरान कहीं भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ है, और न ही कोई सरकारी सहायता मिली. ऐसे में सरकार के दावों के बीच मजदूर अपने परिवार को लिए लंबी यात्रा करने को मजबूर हैं.

राधिका साहू ने बताया कि, 'हम लोग लखनऊ से चित्रकूट पहुंचे हैं और हमें छत्तीसगढ़ जाना है. लॉकडाउन में एक से डेढ़ महीना हम लोगों ने बैठकर खाया है, जिसके बाद हमारे पास राशन भी खत्म होने लगा और पैसे भी. भुखमरी की कगार में पहुंचे हमारे परिवार को बचाने के लिए हम लोगों ने अपने घर छत्तीसगढ़ जाने का फैसला किया है.'

चित्रकूट: लॉकडाउन का पर्यावरण पर दिखा असर, हवा-पानी साफ

दिहाड़ी मजदूर रामनारायण साहू ने बताया, 'सरकार की घोषणा के बाद भी हमें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली. खाद्यान्न वितरण से लेकर सरकार ने प्रत्येक परिवार को उनके खाते में पैसा देने की बात की थी पर हमें कोई लाभ नहीं मिल पाया है. हमें परिवार चलाना भी भारी पड़ रहा था. मजबूरी में हम लोगों को साइकिल से ही अपने परिवार को लेकर घर जाना पड़ रहा है.'

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