बुलंदशहर: जिले के सलेमपुर कायस्थ गांव में प्राथमिक विद्यालय की सहायक अध्यापिका श्वेता दीक्षित ने कोरोना काल का सदुपयोग करते हुए गांव की तस्वीर ही बदल दी. कोरोना संक्रमण की वजह से विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. इससे उनकी शिक्षा में बाधा आ रही. श्वेता दीक्षित ने इसका तोड़ निकाला. उन्होंने गांव के पढ़े लिखे युवाओं की 'टीम कर्मवीर' बनाकर सभी को साक्षर बनाने की कवायदों से लेकर बच्चों की पढ़ाई करा रही हैं.
अनपढ़ों को बनाया जा रहा साक्षर
देशभर में कोरोना संक्रमण काल चल रहा है. ऐसे में शिक्षा व्यवस्था पर भी कोरोना का काफी असर हुआ है. बेसिक शिक्षा स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई के दावे किए जाते रहे, लेकिन उन दावों की सच्चाई किसी से छुपी नहीं है. इस समय कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों की अब रेगुलर पढ़ाई अलग-अलग शिफ्ट में जारी है. ऐसे में बुलन्दशहर जिले की सिकन्दराबाद तहसील के गांव सलेमपुर कायस्थ के एक सरकारी स्कूल की सहायक अध्यापिका ने गांव की तस्वीर ही बदल दी है. अब गांव में कोरोना काल में भी न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई हो रही है, बल्कि जो लोग अनपढ़ थे, उन्हें भी साक्षर बनाने के लिए अलग से मुहिम चलाई जा रही है. श्वेता दीक्षित का कहना है कि उन्होंने गांव में देखा कि गरीबी और कोरोना काल में परेशानी की वजह से हर कोई बच्चों के लिए मोबाइल फोन नहीं ले सकता था. ऐसे में उन्होंने विभाग के टास्क के साथ कुछ अलग करने का मन बनाया. श्वेता बताती हैं कि सबसे पहले उन्होंने गांव के ऐसे युवाओं से संपर्क साधा जो कि अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके थे या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे थे. ऐसे युवाओं से मिलाकर उन्होंने एक टीम बनाई. उस टीम को नाम दिया 'टीम कर्मवीर'.
टीम को शिक्षिका ने किया ट्रेंड
सलेमपुर कायस्थ गांव के प्राथमिक विद्यालय में 500 से भी छात्र-छात्रा हैं, जिन्हें कोरोना और तमाम संसाधन ग्रामीणों के पास न होने की वजह से पढ़ाना मुश्किल हो रहा था. जिसके बाद स्कूल की अध्यापिका ने टीम को जोड़ा, फिर उन्हें अलग-अलग गांव के मोहल्लों में जाकर पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गयी. प्रत्येक दिन अध्यापिका श्वेता अब इन टीम के 15 सदस्यों के सम्पर्क में रहती हैं और समय-समय पर उनका मार्गदर्शन करती हैं.
अंगूठा टेकने वाले भी कर रहे हस्ताक्षर
सलेमपुर कायस्थ गांव में काफी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो पूरी तरह से निरक्षर हैं, उन्हें भी यहां साक्षर बनाने की मुहिम अध्यापिका ने चलाई है. इस काम में भी टीम कर्मवीर अहम योगदान दे रही है. अब यह टीम हर मोहल्ले में बाकायदा बच्चों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बैठाकर पढ़ाई कराती है. उनको होमवर्क दिया जाता है और इन सबकी मॉनिटरिंग स्वयं अध्यापिका श्वेता दीक्षित करती हैं. गांव में जो महिलाएं निरक्षर हैं अब वह भी यहां अपना नाम लिखना और हस्ताक्षर करना सीख चुकी हैं.
कई मंचों पर अध्यापिका का हो चुका है सम्मान
श्वेता दीक्षित को इसी वर्ष राज्य शिक्षक पुस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. श्वेता मूल रूप से कानपुर की रहने वाली हैं, फिलहाल वह गाजियाबाद में रहती हैं. पिछले 10 साल से वह प्राइमरी स्कूल में बतौर सहायक अध्यापिका सेवा दे रही हैं. श्वेता कहती हैं कि एक शिक्षक का लक्ष्य होता है शिक्षा का प्रसार करना, गांव के जिन युवाओं को उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया है. गांव में शिक्षा की लौ जलाने के लिए मेहनत कर रही श्वेता दीक्षित के साथ जुड़े उनके कर्मवीरों में कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो कुछ अभी बड़ी कक्षाओं में अध्यनरत हैं और मोहल्ला क्लासेज चलाकर बच्चों को पढ़ाने में अहम योगदान दे रहे हैं.
खासे प्रभावित हैं गांव के यह कर्मवीर
सरकारी स्कूल की अध्यापिका के द्वारा बनाई गई कर्मवीरों की टीम में शामिल युवक और युवतियां गांव में अलग-अलग जगहों पर मोहल्ला क्लासेज चलाते हैं. इनको गांव के लोगों का भी पूर्ण सहयोग मिल रहा है. यह सभी लोग पूरी मेहनत से अपने गांव के बच्चों को पढ़ा रहे हैं. वह कहते हैं कि सभी हमारे छोटे भाई बहन हैं और अपना थोड़ा समय देकर गांव में उनके साथ मेहनत करके उन्हें खुशी मिलती है.