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भाजपा और बसपा में सीधा मुकाबला, या चोंकाने वाले होंगे परिणाम?

बुलंदशहर विधानसभा उपचुनाव के बाद अब परिणाम आने की बारी है. बुलंदशहर में इस बार जहां बसपा और भाजपा में कड़ी टक्कर मानी जा रही है. कुछ ही देर में वोटों की गिनती शुरु हो जाएगी और शाम तक पता चल पाएगी कि जीत किसकी झोली में आकर गिरती है .

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बुलंदशहर विधानसभा उपचुनाव
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Published : Nov 10, 2020, 2:00 AM IST

बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश की रिक्त पड़ी विधानसभा सीटों पर पिछले दिनों हुए उपचुनाव के बाद अब परिणाम की बारी है. मंगलवार को नतीजे घोषित होने है. नतीजे आने के बाद एक नई पार्टी के भविष्य की संभावनाओं का पता चलेगा. वहीं लंबे समय तक भाजपा से बतौर प्रतिद्वंदी के तौर पर राजनीति के मैदान में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे प्रोफेसर किरनपाल सिंह की प्रतिष्ठा भी इस बार दांव पर है.

पूर्व मंत्री प्रोफेसर किरनपाल सिंह के कद को तय करेगा ये चुनाव
पूर्व मंत्री और वेस्टर्न यूपी के जाट बिरादरी के कद्दावर नेता प्रोफेसर किरनपाल सिंह भारतीय जनता पार्टी में हैं. उपचुनाव के प्रचार की शुरुआत करने 22 अक्टूबर को खुद सीएम योगी ने बुलंदशहर में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे. सीएम योगी की मौजूदगी में इस कद्दावर जाट नेता को पार्टी में शामिल किया था. अब बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है. क्योंकि भाजपा विधायक वीरेंद्र सिरोही के निधन के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने दिवंगत विधायक की पत्नी उषा सिरोही को प्रत्याशी बनाया है. पूर्व मंत्री किरनपाल सिंह ने कुद भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार किया था.

रालोद उपाध्यक्ष को कोरोना होने से RLD का चुनाव हुआ प्रभावित
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने इस उपचुनाव में साझा प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा था और बुलंदशहर की सीट राष्ट्रीयलोक के खाते में थी, तो यहां से राष्ट्रीय लोकदल ले भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री रहे जगवीर सिंह के पुत्र कुंवर प्रवीण कुमार सिंह को प्रत्याशी घोषित किया था. प्रवीण कुमार सिंह लगातार अपने प्रचार के दौरान हर वर्ग समुदाय के लोगों के बीच पहुंचे, लेकिन रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को इस बीच कोरोना हो जाने की वजह से वह बुलंदशहर नहीं पहुंच पाए थे, जिससे माना जा रहा है कि इसका फायदा भी किरन पाल सिंह की वजह से भाजपा को मिलना चाहिए.

भाजपा की पुरानी नेता ने बागी बनकर इस चुनाव में खोला पार्टी के खिलाफ मोर्चा
इस बार भाजपा को कड़ी चुनोती यहां मिली है. क्योंकि 30 साल तक बीजेपी में रहीं उतमिला लोधी राजपूत ने खुद यहां राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से भाजपा के सामने बगावत करते हुए अपनी दावेदारी पेश की है और भाजपा की उम्मीदवार उषा सिरोही की राह को कठिन बनाया है.

कांग्रेस का दाव
कांग्रेस ने भी यहां से सुशील चौधरी को मैदान में उतारा है. सुशील चौधरी लंबे समय से बुलंदशहर में कांग्रेस के साथ जुड़े हैं. देखने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस का जो वोट बैंक बुलंदशहर में है उसमें कितनी वृद्धि होती हैं. जहां प्रमोद तिवारी ने यहां पहुंचकर प्रचार किया, वहीं सचिन पायलट जैसे कांग्रेसी नेता ने भी यहां कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनावी जनसभा को संबोधित किया. अब कांग्रेस को यहां संजीवनी मिलती है या फिर नहीं इसका फैंसला भी मंगलवार को ही होगा.

2 लाख 4 हजार मतदाताओं ने डाला वोट
बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर अगर मतदाताओं की बात की जाए तो यहां तीन लाख 88 हजार 506 मतदाता है, जिनमें से अगर दूसरी तरफ देखा जाए तो सिर्फ 2 लाख 4 हजार मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. बुलंदशहर में उपचुनाव के दौरान वोटिंग परसेंटेज भी कम रहा है. यहां खास तौर से जो मुकाबला माना जा रहा है, वह भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच माना जा रहा है, वहीं पहली बार चुनाव में उतरी भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने यहां अपना दबदबा बढ़ाने के लिए एक मीट व्यवसाई पर भरोसा जताया है.

क्या कहते हैं जातिगत आंकड़े
जातिगत समीकरण की अगर बात की जाए तो बुलंदशहर में करीब एक लाख 125 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 60 हजार दलित, जिनमें जाटव करीब 40 हजार बताए जा रहे हैं. वही 40 हजार जाट भी बुलंदशहर विधानसभा सीट पर बताए जाते हैं. 35 हजार ब्राह्मण और करीब 20 हजार से 25 हजार लोधी राजपूत 10 हजार सैनी एवं प्रजापति तो वहीं 25 हजार ठाकुर भी बुलन्दशहर विधानसभा पर मतदाता हैं. सोशल इंजीनियरिंग किस प्रत्याशी के साथ है और किसके साथ कौनसा तबका जाता है ये भी समझना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि जाट समाज से तीन प्रत्याशी बुलन्दशहर सदर सीट पर ताल ठोक रहे हैं. वहीं प्रमुख तौर से तीन मुस्लिम प्रत्याशी भी अपनी दावेदारी को लेकर यहां मजबूत दावा पेश कर रहे थे.

मुख्य प्रत्याशी
प्रमुख रूप से बुलंदशहर में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी उषा सिरोही, बसपा से हाजी युनूस, आजाद समाज पार्टी से हाजी यामीन,राष्ट्रीय लोकदल से कुंवर प्रवीण कुमार सिंह,कांग्रेस से सुशील चौधरी चुनाव मैदान में हैं. कुल 18 उम्मीदवार मैदान में हैं.

बुलंदशहर: उत्तर प्रदेश की रिक्त पड़ी विधानसभा सीटों पर पिछले दिनों हुए उपचुनाव के बाद अब परिणाम की बारी है. मंगलवार को नतीजे घोषित होने है. नतीजे आने के बाद एक नई पार्टी के भविष्य की संभावनाओं का पता चलेगा. वहीं लंबे समय तक भाजपा से बतौर प्रतिद्वंदी के तौर पर राजनीति के मैदान में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे प्रोफेसर किरनपाल सिंह की प्रतिष्ठा भी इस बार दांव पर है.

पूर्व मंत्री प्रोफेसर किरनपाल सिंह के कद को तय करेगा ये चुनाव
पूर्व मंत्री और वेस्टर्न यूपी के जाट बिरादरी के कद्दावर नेता प्रोफेसर किरनपाल सिंह भारतीय जनता पार्टी में हैं. उपचुनाव के प्रचार की शुरुआत करने 22 अक्टूबर को खुद सीएम योगी ने बुलंदशहर में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे थे. सीएम योगी की मौजूदगी में इस कद्दावर जाट नेता को पार्टी में शामिल किया था. अब बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है. क्योंकि भाजपा विधायक वीरेंद्र सिरोही के निधन के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने दिवंगत विधायक की पत्नी उषा सिरोही को प्रत्याशी बनाया है. पूर्व मंत्री किरनपाल सिंह ने कुद भाजपा प्रत्याशी के लिए प्रचार किया था.

रालोद उपाध्यक्ष को कोरोना होने से RLD का चुनाव हुआ प्रभावित
समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने इस उपचुनाव में साझा प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा था और बुलंदशहर की सीट राष्ट्रीयलोक के खाते में थी, तो यहां से राष्ट्रीय लोकदल ले भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री रहे जगवीर सिंह के पुत्र कुंवर प्रवीण कुमार सिंह को प्रत्याशी घोषित किया था. प्रवीण कुमार सिंह लगातार अपने प्रचार के दौरान हर वर्ग समुदाय के लोगों के बीच पहुंचे, लेकिन रालोद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को इस बीच कोरोना हो जाने की वजह से वह बुलंदशहर नहीं पहुंच पाए थे, जिससे माना जा रहा है कि इसका फायदा भी किरन पाल सिंह की वजह से भाजपा को मिलना चाहिए.

भाजपा की पुरानी नेता ने बागी बनकर इस चुनाव में खोला पार्टी के खिलाफ मोर्चा
इस बार भाजपा को कड़ी चुनोती यहां मिली है. क्योंकि 30 साल तक बीजेपी में रहीं उतमिला लोधी राजपूत ने खुद यहां राष्ट्रीय क्रांति पार्टी से भाजपा के सामने बगावत करते हुए अपनी दावेदारी पेश की है और भाजपा की उम्मीदवार उषा सिरोही की राह को कठिन बनाया है.

कांग्रेस का दाव
कांग्रेस ने भी यहां से सुशील चौधरी को मैदान में उतारा है. सुशील चौधरी लंबे समय से बुलंदशहर में कांग्रेस के साथ जुड़े हैं. देखने वाली बात यह भी है कि कांग्रेस का जो वोट बैंक बुलंदशहर में है उसमें कितनी वृद्धि होती हैं. जहां प्रमोद तिवारी ने यहां पहुंचकर प्रचार किया, वहीं सचिन पायलट जैसे कांग्रेसी नेता ने भी यहां कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनावी जनसभा को संबोधित किया. अब कांग्रेस को यहां संजीवनी मिलती है या फिर नहीं इसका फैंसला भी मंगलवार को ही होगा.

2 लाख 4 हजार मतदाताओं ने डाला वोट
बुलंदशहर सदर विधानसभा सीट पर अगर मतदाताओं की बात की जाए तो यहां तीन लाख 88 हजार 506 मतदाता है, जिनमें से अगर दूसरी तरफ देखा जाए तो सिर्फ 2 लाख 4 हजार मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. बुलंदशहर में उपचुनाव के दौरान वोटिंग परसेंटेज भी कम रहा है. यहां खास तौर से जो मुकाबला माना जा रहा है, वह भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच माना जा रहा है, वहीं पहली बार चुनाव में उतरी भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने यहां अपना दबदबा बढ़ाने के लिए एक मीट व्यवसाई पर भरोसा जताया है.

क्या कहते हैं जातिगत आंकड़े
जातिगत समीकरण की अगर बात की जाए तो बुलंदशहर में करीब एक लाख 125 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि 60 हजार दलित, जिनमें जाटव करीब 40 हजार बताए जा रहे हैं. वही 40 हजार जाट भी बुलंदशहर विधानसभा सीट पर बताए जाते हैं. 35 हजार ब्राह्मण और करीब 20 हजार से 25 हजार लोधी राजपूत 10 हजार सैनी एवं प्रजापति तो वहीं 25 हजार ठाकुर भी बुलन्दशहर विधानसभा पर मतदाता हैं. सोशल इंजीनियरिंग किस प्रत्याशी के साथ है और किसके साथ कौनसा तबका जाता है ये भी समझना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि जाट समाज से तीन प्रत्याशी बुलन्दशहर सदर सीट पर ताल ठोक रहे हैं. वहीं प्रमुख तौर से तीन मुस्लिम प्रत्याशी भी अपनी दावेदारी को लेकर यहां मजबूत दावा पेश कर रहे थे.

मुख्य प्रत्याशी
प्रमुख रूप से बुलंदशहर में भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी उषा सिरोही, बसपा से हाजी युनूस, आजाद समाज पार्टी से हाजी यामीन,राष्ट्रीय लोकदल से कुंवर प्रवीण कुमार सिंह,कांग्रेस से सुशील चौधरी चुनाव मैदान में हैं. कुल 18 उम्मीदवार मैदान में हैं.

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