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शहादत का गवाह है बस्ती का यह पेड़, 500 क्रांतिकारियों को दी गई फांसी

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Published : Nov 18, 2019, 9:46 AM IST

सन 1857 में देश की आजादी की लड़ाई में कई लोगों ने शहादत दी थी. उनमें से अधिकतर लोगों के नाम और गांव की जानकारी नहीं है. लेकिन ऐसी जगह आज भी बस्ती में मौजूद है, जो अंग्रेजों के अत्याचार की गवाह है. लेकिन आज ये जगह उपेक्षा का शिकार है.

पीपल का पेड़

बस्ती: जनपत के छावनी कस्बा में शहीद स्थल पर पीपल का पेड़ मौजूद है. जिसकी शाखाओं पर लगभग 500 से अधिक लोगों को फांसी पर लटकाया गया था. छावनी शहीद स्थल पर पीपल के पेड़ के नीचे शहीदों की याद में स्तंभ बनाया गया है. साथ ही शहीदों के नाम का स्मारक भी लगा है, जिसमें 19 लोगों के नाम का उल्लेख है. इस स्मारक की स्थापना 1972 में हुई थी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

अंग्रेजों ने दी थी क्रांतिकारियों को फांसी

बात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की है. बस्ती जिले की एक महान सेनानी अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवारी थी. उन्होंने अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी. रानी की शहादत के बाद उनके सेनापति अवधूत सिंह ने हजारों क्रांतिकारियों के साथ 6 मार्च 1858 को लड़ाई लड़ी. बाद में अन्य स्थानों पर भी युद्ध किया. उस वक्त जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों की पकड़ में आ जाते थे, उसे छावनी में पीपल पेड़ पर फांसी पर लटका दिया जाता था. इसी पीपल के पेड़ के पास एक आम का पेड़ था. इस पर भी अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को फांसी दी.

देशभक्तों के लिए तीर्थस्थल से कम नहीं है यह स्थल

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी यहां आ चुके हैं. उन्होंने कहा था कि सतारा के बाद छावनी इकलौती जगह है, जहां इतने लोगों के एक साथ बलिदान का प्रमाण है. उन्होंने कहा था कि यह किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है. 1972 में शिक्षा विभाग के अधिकारी जंग बहादुर सिंह ने शिक्षकों की मदद से एक शिलालेख लगवाया. साथ ही कई गांव से इतिहास के साक्ष्य जुटाने का प्रयास किया. इसी के बाद कई शहीदों के नाम प्रकाश में आये जिनका शिलालेख पर जिक्र है. हालांकि सैकड़ों लोगों के नाम अभी तक पता नही हैं.

मैंने मुख्यमंत्री योगी जी से मांग की है कि छावनी पर 1857 के शहीदों के लिए अलग से स्मारक और स्तम्भ बनाया जाए. जो सम्मान छावनी, हरैया, अमोढ़ा को मिलना चाहिए था, वो नहीं मिला. उन्होंने कहा है कि गुमनाम लोगों को तलाशने के लिए मांग की गई है. हम छावनी को उसका सम्मान दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे.
-अजय सिंह, हरैया विधायक

बस्ती: जनपत के छावनी कस्बा में शहीद स्थल पर पीपल का पेड़ मौजूद है. जिसकी शाखाओं पर लगभग 500 से अधिक लोगों को फांसी पर लटकाया गया था. छावनी शहीद स्थल पर पीपल के पेड़ के नीचे शहीदों की याद में स्तंभ बनाया गया है. साथ ही शहीदों के नाम का स्मारक भी लगा है, जिसमें 19 लोगों के नाम का उल्लेख है. इस स्मारक की स्थापना 1972 में हुई थी.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

अंग्रेजों ने दी थी क्रांतिकारियों को फांसी

बात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की है. बस्ती जिले की एक महान सेनानी अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवारी थी. उन्होंने अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी. रानी की शहादत के बाद उनके सेनापति अवधूत सिंह ने हजारों क्रांतिकारियों के साथ 6 मार्च 1858 को लड़ाई लड़ी. बाद में अन्य स्थानों पर भी युद्ध किया. उस वक्त जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों की पकड़ में आ जाते थे, उसे छावनी में पीपल पेड़ पर फांसी पर लटका दिया जाता था. इसी पीपल के पेड़ के पास एक आम का पेड़ था. इस पर भी अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को फांसी दी.

देशभक्तों के लिए तीर्थस्थल से कम नहीं है यह स्थल

बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी यहां आ चुके हैं. उन्होंने कहा था कि सतारा के बाद छावनी इकलौती जगह है, जहां इतने लोगों के एक साथ बलिदान का प्रमाण है. उन्होंने कहा था कि यह किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है. 1972 में शिक्षा विभाग के अधिकारी जंग बहादुर सिंह ने शिक्षकों की मदद से एक शिलालेख लगवाया. साथ ही कई गांव से इतिहास के साक्ष्य जुटाने का प्रयास किया. इसी के बाद कई शहीदों के नाम प्रकाश में आये जिनका शिलालेख पर जिक्र है. हालांकि सैकड़ों लोगों के नाम अभी तक पता नही हैं.

मैंने मुख्यमंत्री योगी जी से मांग की है कि छावनी पर 1857 के शहीदों के लिए अलग से स्मारक और स्तम्भ बनाया जाए. जो सम्मान छावनी, हरैया, अमोढ़ा को मिलना चाहिए था, वो नहीं मिला. उन्होंने कहा है कि गुमनाम लोगों को तलाशने के लिए मांग की गई है. हम छावनी को उसका सम्मान दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे.
-अजय सिंह, हरैया विधायक

Intro:बस्ती न्यूज रिपोर्ट
प्रशांत सिंह
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बस्ती: सन 1857 में देश की आजादी की लडाई में जितने लोगों ने शहादत दी उनमें से अधिकतर लोगों के नाम और गांव की जानकारी नहीं है. लेकिन ऐसी जगह आज भी जनपद में मौजूद है जो अंग्रेजो के अत्याचार के गवाह है. इन्हीं में से एक है बस्ती जनपत के छावनी कस्बा में स्थित शहीद स्थल. यहां वो पीपल का पेड़ आज भी मौजूद है जिसकी शाखाओं पर लगभग 500 से अधिक लोगों को फांसी पर लटकाया गया.

छावनी शाहिद स्थल पर पीपल के पेड़ के नीचे शहीदों की याद में स्तंभ बनाया गया है. साथ ही शहीदों के नाम का स्मारक भी लगा है, जिसमें 19 लोगों के नाम का उल्लेख है. इस स्मारक की स्थापना 1972 में हुई थी.




Body:यह बात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की है. जब बस्ती जिले की एक महान सेनानी अमोढ़ा रियासत की रानी तलाश कुंवारी थी. जिन्होंने अंग्रेजों से आखरी सांस तक लडाई लडी. रानी की शहादत के बाद उनकी सेनापति अवधूत सिंह हजारों क्रांतिकारियों के साथ 6 मार्च 1858 को लड़ाई लड़ी तथा बाद में अन्य स्थानों पर युद्ध किया. उस वक्त जो भी क्रांतिकारी अंग्रेजों की पकड़ में आ जाता था उसे छावनी में पीपल पेड़ पर फांसी पर लटका दिया जाता था. इसी पीपल के पेड़ के पास एक आम का पेड़ था, इस पर भी अंग्रेजों ने लोगों को फांसी दी. बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी यहां आ चुके हैं. उन्होंने कहा था कि सतारा के बाद छावनी एकलौती जगह है, जहां इतने लोगों को एक साथ बलिदान का प्रमाण है. उन्होंने कहा था कि यह किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है.

सन 1858 से 1972 तक छावनी शहीद स्थल उपेक्षित था. 1972 में शिक्षा विभाग के अधिकारी जंग बहादुर सिंह ने शिक्षकों की मदद से एक शिलालेख लगवाया. साथ ही कई गांव से इतिहास के साक्ष्य जुटाने का प्रयास किया. इसी के बाद कई शहीदों के नाम प्रकाश में आये जिनका शिलालेख पर जिक्र है. हालांकि सैकड़ों लोगों के नाम अभी तक पता नही हैं.

इस बाबत विधायक अजय सिंह ने कहा कि मैंने मुख्यमंत्री योगी जी मांग की है कि छावनी पर 1857 के शहीदों के लिए अलग से स्मारक और स्तम्भ बनाया जाए. उन्होंने कहा कि जो सम्मान छावनी, हरैया, अमोढ़ा को मिलना चाहिए था, वो नही मिला. उन्होंने कहा कि गुमनाम लोगो को तलाशने के लिए मांग की गई है. हम छावनी को उसका सम्मान दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे.

बाइट.....अजय सिंह, हरैया विधायक
पीटीसी, प्रशान्त सिंह


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