बस्ती: नेशनल हाईवे-28 अयोध्या-बस्ती बॉर्डर पार करते ही सड़क किनारे गन्ने का शुद्ध सिरका, शुक्ला जी का सिरका, यादव जी का सिरका लिखे तमाम बोर्ड दिख जाएंगे. साथ ही इस चटपटे दौर में गन्ने के सिरके की वो तीखी महक बचपन की स्मृतियों में लौटा ले जाती है. अगर आप कहीं एक बार ठहर गए तो सिरके वाले बाबा की कहानी आपको चौंका जरूर देगी.
गोरखपुर-लखनऊ हाईवे पर बसा बस्ती जिले का माचा और केशवपुर गांव सिरका उद्योग में अपनी अलग ही पहचान बना चुका है. सिरका निर्माण की सफल कहानी के पीछे एक महिला का हुनर और उसकी सोच है, जिसने अपने पति को सिरका वाला बाबा बना दिया.
चार महीने में तैयार होता है सिरका
सभापति शुक्ल ने बताया कि इसके मूल में गन्ने का रस होता है. रस को बड़े-बड़े प्लास्टिक के ड्रमों में भरकर धूप में तीन महीने तक रख दिया जाता है. जब रस के ऊपर मोटी परत जम जाती है तो फिर उसकी छनाई की जाती है. फिर महीने भर धूप में रखने के बाद सरसों के तेल के साथ भुने मसाले, धनिया, लहसुन व लालमिर्च से इसे छौंका दिया जाता है. उसके बाद उसमें कच्चे आम, कटहल, लहसुन आदि डालकर रख दिया जाता है. इस तरह चार महीने में सिरका तैयार हो जाता है.
शुक्ला के नाम पर बिकता है सिरका
शुक्ला ने बताया कि हजारों लीटर सिरका तैयार किया जाता है, लेकिन बिक्री ज्यादे होने की वजह से कम पड़ जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि एक जिला एक उत्पाद में सिरका का चयन होने से तमाम लोग इस व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि आज हाईवे पर तमाम दुकानें खुल गई हैं और सभी हमारे नाम पर सिरका बेच रहे हैं, जो कि गलत है. हम लोकल में किसी को भी सिरका नही देते हैं.
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लोगों की कराई जाएगी ट्रेनिंग
डीएम आशुतोष निरंजन ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में लकड़ी के समान का चयन हुआ था. अब इसके साथ सिरका को भी शामिल कर लिया गया है. डीएम ने बताया कि हाईवे का एक क्षेत्र में सिरका कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. हमारी कोशिश रहेगी कि ये जनपद के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़े. इसके लिए इच्छुक लोगों की ट्रेनिंग कराई जाएगी. साथ ही उद्योग के लिए बैंक से मदद भी मिलेगी.