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बस्ती के 'सिरका वाले बाबा' की कहानी, कैसे एक गांव बन गया सिरका इंडस्ट्री

'प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर, मारो ज़मीं पे पांव कि पानी निकल पड़े.' इकबाल साजिद की ये चंद लाइने सिरके वाले बाब के नाम से मशहूर सभापति शुक्ला पर सटीक बैठती है. बस्ती जिले का माचा और केशवपुर गांव सिरका उद्योग में अपनी अलग ही पहचान बना चुका है.

बस्ती के 'सिरका वाले बाबा' की कहानी.
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Published : Nov 16, 2019, 2:02 PM IST

बस्ती: नेशनल हाईवे-28 अयोध्या-बस्ती बॉर्डर पार करते ही सड़क किनारे गन्ने का शुद्ध सिरका, शुक्ला जी का सिरका, यादव जी का सिरका लिखे तमाम बोर्ड दिख जाएंगे. साथ ही इस चटपटे दौर में गन्ने के सिरके की वो तीखी महक बचपन की स्मृतियों में लौटा ले जाती है. अगर आप कहीं एक बार ठहर गए तो सिरके वाले बाबा की कहानी आपको चौंका जरूर देगी.

गोरखपुर-लखनऊ हाईवे पर बसा बस्ती जिले का माचा और केशवपुर गांव सिरका उद्योग में अपनी अलग ही पहचान बना चुका है. सिरका निर्माण की सफल कहानी के पीछे एक महिला का हुनर और उसकी सोच है, जिसने अपने पति को सिरका वाला बाबा बना दिया.

बस्ती के 'सिरका वाले बाबा' की कहानी.
लोगों को खूब भाता है शुक्ला जी का सिरका
शुक्ला जी की गन्ने से शुरू हुई कहानी गुड़ तक आई. शुरुआती दौरा में काफी नुकसान हुआ. इसी बीच शुक्ला की पत्नी ने गन्ने की रस से करीब 100 लीटर सिरका बना दिया और यह सिरका लोगों में बांटना शुरू कर दिया. लोगों को यह सिरका खूब पंसद आया. यहीं से सभापति शुक्ला ने शुद्ध सिरका बनाकर बेचना शुरू कर दिया. आज उनका यह व्यवसाय घरों से लेकर हाइवे किनारे चल रहे ढाबों तक ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश समेत दिल्ली, मुंबई तक बाजार बनाया है.

चार महीने में तैयार होता है सिरका
सभापति शुक्ल ने बताया कि इसके मूल में गन्ने का रस होता है. रस को बड़े-बड़े प्लास्टिक के ड्रमों में भरकर धूप में तीन महीने तक रख दिया जाता है. जब रस के ऊपर मोटी परत जम जाती है तो फिर उसकी छनाई की जाती है. फिर महीने भर धूप में रखने के बाद सरसों के तेल के साथ भुने मसाले, धनिया, लहसुन व लालमिर्च से इसे छौंका दिया जाता है. उसके बाद उसमें कच्चे आम, कटहल, लहसुन आदि डालकर रख दिया जाता है. इस तरह चार महीने में सिरका तैयार हो जाता है.

शुक्ला के नाम पर बिकता है सिरका
शुक्ला ने बताया कि हजारों लीटर सिरका तैयार किया जाता है, लेकिन बिक्री ज्यादे होने की वजह से कम पड़ जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि एक जिला एक उत्पाद में सिरका का चयन होने से तमाम लोग इस व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि आज हाईवे पर तमाम दुकानें खुल गई हैं और सभी हमारे नाम पर सिरका बेच रहे हैं, जो कि गलत है. हम लोकल में किसी को भी सिरका नही देते हैं.

ये भी पढ़ें- कोहरे के चलते दिसम्बर से फरवरी तक रद्द रहेंगी कई ट्रेनें, आवाजाही पर भी दिखेगा असर

लोगों की कराई जाएगी ट्रेनिंग
डीएम आशुतोष निरंजन ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में लकड़ी के समान का चयन हुआ था. अब इसके साथ सिरका को भी शामिल कर लिया गया है. डीएम ने बताया कि हाईवे का एक क्षेत्र में सिरका कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. हमारी कोशिश रहेगी कि ये जनपद के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़े. इसके लिए इच्छुक लोगों की ट्रेनिंग कराई जाएगी. साथ ही उद्योग के लिए बैंक से मदद भी मिलेगी.

बस्ती: नेशनल हाईवे-28 अयोध्या-बस्ती बॉर्डर पार करते ही सड़क किनारे गन्ने का शुद्ध सिरका, शुक्ला जी का सिरका, यादव जी का सिरका लिखे तमाम बोर्ड दिख जाएंगे. साथ ही इस चटपटे दौर में गन्ने के सिरके की वो तीखी महक बचपन की स्मृतियों में लौटा ले जाती है. अगर आप कहीं एक बार ठहर गए तो सिरके वाले बाबा की कहानी आपको चौंका जरूर देगी.

गोरखपुर-लखनऊ हाईवे पर बसा बस्ती जिले का माचा और केशवपुर गांव सिरका उद्योग में अपनी अलग ही पहचान बना चुका है. सिरका निर्माण की सफल कहानी के पीछे एक महिला का हुनर और उसकी सोच है, जिसने अपने पति को सिरका वाला बाबा बना दिया.

बस्ती के 'सिरका वाले बाबा' की कहानी.
लोगों को खूब भाता है शुक्ला जी का सिरका
शुक्ला जी की गन्ने से शुरू हुई कहानी गुड़ तक आई. शुरुआती दौरा में काफी नुकसान हुआ. इसी बीच शुक्ला की पत्नी ने गन्ने की रस से करीब 100 लीटर सिरका बना दिया और यह सिरका लोगों में बांटना शुरू कर दिया. लोगों को यह सिरका खूब पंसद आया. यहीं से सभापति शुक्ला ने शुद्ध सिरका बनाकर बेचना शुरू कर दिया. आज उनका यह व्यवसाय घरों से लेकर हाइवे किनारे चल रहे ढाबों तक ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश समेत दिल्ली, मुंबई तक बाजार बनाया है.

चार महीने में तैयार होता है सिरका
सभापति शुक्ल ने बताया कि इसके मूल में गन्ने का रस होता है. रस को बड़े-बड़े प्लास्टिक के ड्रमों में भरकर धूप में तीन महीने तक रख दिया जाता है. जब रस के ऊपर मोटी परत जम जाती है तो फिर उसकी छनाई की जाती है. फिर महीने भर धूप में रखने के बाद सरसों के तेल के साथ भुने मसाले, धनिया, लहसुन व लालमिर्च से इसे छौंका दिया जाता है. उसके बाद उसमें कच्चे आम, कटहल, लहसुन आदि डालकर रख दिया जाता है. इस तरह चार महीने में सिरका तैयार हो जाता है.

शुक्ला के नाम पर बिकता है सिरका
शुक्ला ने बताया कि हजारों लीटर सिरका तैयार किया जाता है, लेकिन बिक्री ज्यादे होने की वजह से कम पड़ जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि एक जिला एक उत्पाद में सिरका का चयन होने से तमाम लोग इस व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि आज हाईवे पर तमाम दुकानें खुल गई हैं और सभी हमारे नाम पर सिरका बेच रहे हैं, जो कि गलत है. हम लोकल में किसी को भी सिरका नही देते हैं.

ये भी पढ़ें- कोहरे के चलते दिसम्बर से फरवरी तक रद्द रहेंगी कई ट्रेनें, आवाजाही पर भी दिखेगा असर

लोगों की कराई जाएगी ट्रेनिंग
डीएम आशुतोष निरंजन ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में लकड़ी के समान का चयन हुआ था. अब इसके साथ सिरका को भी शामिल कर लिया गया है. डीएम ने बताया कि हाईवे का एक क्षेत्र में सिरका कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. हमारी कोशिश रहेगी कि ये जनपद के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़े. इसके लिए इच्छुक लोगों की ट्रेनिंग कराई जाएगी. साथ ही उद्योग के लिए बैंक से मदद भी मिलेगी.

Intro:नोट: ये स्टोरी राहुल तिवारी जी के द्वारा मंगाई गई थी.

बस्ती न्यूज रिपोर्ट
प्रशांत सिंह
9161087094
8317019190


बस्ती: नेशनल हाईवे-28 पर अयोध्या-बस्ती बॉर्डर पार करते ही सड़क किनारे गन्ने का शुद्ध सिरका, शुक्ला जी का सिरका, यादव जी का सिरका जैसे तमाम बोर्ड दिख जाएंगे. साथ ही वेनेगर के इस चटपटे दौर में गन्ने के सिरके की वो तीखी महक एक बारगी बचपन की स्मृतियों से लौटा ले जाती है. वहीं अगर आप कहीं एक बार ठहर गए तो सिरके वाले बाबा की कहानी आपको चौंका जरूर देगी.

जी हां गोरखपुर-लखनऊ हाइवे पर बसा उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले का माचा और केशवपुर गांव सिरका उद्योग में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है. सिरका निर्माण की सफल कहानी के पीछे एक महिला का हुनर और उसकी सोच है. जिसने अपने पति को सिरका वाले बाबा बना दिया. दरअसल आज से करीब 17 साल पहले इस गांव के रहने वाले सभापति शुक्ल को कोई काम धंधा नहीं मिला तो उन्होंने गुड़ बनाने के लिए क्रशर लगाया, लेकिन यह व्यवसाय चला नहीं. इसके बाद सभापति शुक्ला ने अंतराप्रेन्योरशिप की एक ऐसी कहानी सुनाई जिसे सुनकर हैरानी होती है.

सभापति शुक्ला ने बतायाकि हमारे गांव का नाम है माचा. अयोध्या यहां से बस 8 किलोमीटर है. फिर 2001 में इस जगह आकर अपनी मडैया खड़ी की. रोजी-रोटी का कोई जरिया नहीं था. कुछ लोगों ने सलाह दी कि गन्ने का क्रशर लगा लो. शुक्ला जी ने बताया कि क्रशर से शुरू हुई कहानी गन्ने से शुरू होकर गुड़ तक आई. 2003 तक तो सब ठीक चला. मगर 2003 में जबर्दस्त नुकसान हुआ. उन्होंने बताया कि नुकसान से घबड़ाकर मैंने अपनी पत्नी से कहा की अब इस गन्ने का क्या करना है, तो पत्नी ने कहा कि इस बचे हुए गन्ने का रस निकाल दो. जिसके बाद पत्नी ने लगभग 100 लीटर सिरका बना दिया. फिर हमने लोगों को बांटना शुरू कर दिया.

Body:शुक्ला जी ने कहा कि एक दिन सिरका लेकर फैजाबाद अजय वैद्य के पास पहुंचे. वहां उनकी एक सलाह दैवीय आशीर्वाद की तरह उतरी. वैद्य जी ने कहा कि सिरका के कारोबार में लागत कुछ नहीं है लेकिन कोई करता नहीं, करो तो आमदनी बहुत है.

शुक्ला जी ने कहा कि उसके बाद आए हमने शुद्ध सिरका बनाकर बेचना शुरू किया. उन्होंने बताया कि आज यह व्यवसाय घरों से लेकर हाइवे किनारे चल रहे ढाबों तक ही नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश सहित दिल्ली, मुंबई तक इसने अपना बाजार बनाया है. सभापति शुक्ल ने बताया कि इसके मूल में गन्ने का रस होता है. रस को बड़े-बड़े प्लास्टिक के ड्रमों में भर कर धूप में तीन महीने तक रख दिया जाता है. जब रस के ऊपर मोटी परत जम जाती है तो फिर उसकी छनाई की जाती है. फिर महीने भर धूप में रखने के बाद सरसों के तेल के साथ भुने मसाले, धनिया, लहसुन व लालमिर्च से इसे छौंका दिया जाता है. उसके बाद उसमें कच्चे आम, कटहल, लहसुन आदि डालकर रख दिया जाता है. इस तरह चार महीने में सिरका तैयार हो जाता है. उन्होंने बताया कि हजारों लीटर सिरका तैयार किया जाता है लेकिन बिक्री ज्यादे होने की वजह से कम पड़ जाता है. साथ ही उन्होंने कहा कि एक जिला एक उत्पाद में सिरका का चयन होने से अब तमाम लोग जो इस व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं उनको लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि आज हाईवे पर तमाम दुकानें खुल गयी हैं और सभी हमारे नाम पर सिरका बेच रहे हैं जो कि गलत है, हम लोकल में किसी को भी सिरका नही देते हैं. बता दें कि केशवपुर गांव का सिरका व्यवसाय लघु उद्योग का रूप ले चुका है. इस कारोबार ने गांव की तस्वीर ही बदल दी है.

वहीं डीएम आशुतोष निरंजन ने बताया कि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में लकड़ी के समान का चयन हुआ था. अब इसके साथ सिरका को भी शामिल कर लिया गया है. डीएम ने बताया कि हाईवे का एक क्षेत्र में सिरका कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. हमारी कोशिश रहेगी कि ये जनपद के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़े. इसके लिए इच्छुक लोगों की ट्रेनिंग कराई जाएगी. साथ ही उद्योग के लिए बैंक से मदद भी मिलेगी.

बाइट...सूर्यप्रकाश, कारोबारी
बाइट....वेद प्रकाश, कारोबारी
बाइट....आनंद कुमार, कारोबारी
बाइट....सभापति शुक्ला, कारोबारी
बाइट....डीएम, आशुतोष निरंजन

डेस्क ध्यानार्थ: बाइट....सभापति शुक्ला, कारोबारी और विजुअल मोजो से भेज दिया गया हैConclusion:
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