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जब कोरोना संकटकाल में याद आया गांव, खिल उठा घर का आंगन

कोरोना संकटकाल में वर्षों से परिवार से दूर रह रहे लोगों को अब अपना गांव याद आने लगा है. शहर गए लोगों को लॉकडाउन के दौरान बंद कमरे में जब मन भरा तो गांव की याद खुद ब खुद आ गई. इसी को लेकर देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट...

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लॉकडाउन में याद आया गांव.
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Published : May 16, 2020, 2:43 PM IST

बस्ती: कोरोना ने पूरे विश्व में जब तबाही मचाई तो भारत की संयुक्त परिवार की पुरानी सभ्यता फिर उभरकर सामने आ गई. घर-परिवार छोड़कर कभी शहर गए लोगों का बंद कमरे में जब मन भर गया तो गांव का आंगन याद आया. जिसके बाद पूरा का पूरा कुनबा अपने गांव आने को मजबूर हो उठा. घर का आंगन एक बार फिर नए-पुराने परिवार के सदस्यों से खिल उठा. खासकर बच्चों के लिए जो गांव से बिल्कुल अछूते थे, उन्हें तो ऐसा लगा कि जैसे खुला आसमां मिल गया. बड़ों के अनुभव, गांव के किस्से-कहानी से हर कोई दो-चार हो रहा है.

लॉकडाउन में याद आया गांव.
बस्ती जिले के कुदरहा ब्लॉक के माधवपुर गांव में ऐसा ही एक परिवार है. परिवार के बड़े सदस्य विजय बहादुर पाल के घर 24 सदस्यों का कुनबा लॉकडाउन में लंबे समय बाद गांव पहुंचा है. इस परिवार के लगभग 18 लोग महाराष्ट्र में रहकर व्यापार करते हैं. दो भाइयों का परिवार बस्ती में रहता है. वहीं सबसे छोटे भाई शिक्षक कृष्ण बहादुर पाल ही अकेले गांव के घर पर रहते हैं, जिनकी पत्नी भी बस्ती में ही नौकरी करती हैं.

ये भी पढ़ें- औरैया सड़क हादसा: घायलों को सैफई ट्रामा सेंटर में कराया गया भर्ती

ईटीवी भारत से खास बातचीत में फतेह बहादुर पाल ने बताया कि काफी समय बाद गांव पर पूरा परिवार इकट्ठा हुए है. उन्होंने बताया कि काफी अच्छा लग रहा है. अब हर साल समय निकाल गांव जरूर आएंगे. वहीं उनके छोटे भाई कृष्ण कुमार पाल ने बताया कि पूरा परिवार महाराष्ट्र रहता है. अकेले अच्छा नहीं लगता है, लेकिन काफी दिन बाद पूरा परिवार एकजुट हुए हैं. घर गुलजार हो गया है.

उन्होंने कहा कि हम एकजुट होकर रहकर एक नया संदेश समाज को देंगे. साथ ही परिवार की सबसे बड़ी सदस्य विजय बहादुर पाल और उनके भाइयों की 80 वर्षीय माता जी ने कहा कि मां का दिल तो अपने बच्चों को साथ देखना चाहता है, लेकिन काम की वजह से बच्चों को दूर रहना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कोरोना ने सबको एकजुट कर दिया है. इस महामारी में सभी लोग स्वस्थ और एकजुट रहें.

बस्ती: कोरोना ने पूरे विश्व में जब तबाही मचाई तो भारत की संयुक्त परिवार की पुरानी सभ्यता फिर उभरकर सामने आ गई. घर-परिवार छोड़कर कभी शहर गए लोगों का बंद कमरे में जब मन भर गया तो गांव का आंगन याद आया. जिसके बाद पूरा का पूरा कुनबा अपने गांव आने को मजबूर हो उठा. घर का आंगन एक बार फिर नए-पुराने परिवार के सदस्यों से खिल उठा. खासकर बच्चों के लिए जो गांव से बिल्कुल अछूते थे, उन्हें तो ऐसा लगा कि जैसे खुला आसमां मिल गया. बड़ों के अनुभव, गांव के किस्से-कहानी से हर कोई दो-चार हो रहा है.

लॉकडाउन में याद आया गांव.
बस्ती जिले के कुदरहा ब्लॉक के माधवपुर गांव में ऐसा ही एक परिवार है. परिवार के बड़े सदस्य विजय बहादुर पाल के घर 24 सदस्यों का कुनबा लॉकडाउन में लंबे समय बाद गांव पहुंचा है. इस परिवार के लगभग 18 लोग महाराष्ट्र में रहकर व्यापार करते हैं. दो भाइयों का परिवार बस्ती में रहता है. वहीं सबसे छोटे भाई शिक्षक कृष्ण बहादुर पाल ही अकेले गांव के घर पर रहते हैं, जिनकी पत्नी भी बस्ती में ही नौकरी करती हैं.

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ईटीवी भारत से खास बातचीत में फतेह बहादुर पाल ने बताया कि काफी समय बाद गांव पर पूरा परिवार इकट्ठा हुए है. उन्होंने बताया कि काफी अच्छा लग रहा है. अब हर साल समय निकाल गांव जरूर आएंगे. वहीं उनके छोटे भाई कृष्ण कुमार पाल ने बताया कि पूरा परिवार महाराष्ट्र रहता है. अकेले अच्छा नहीं लगता है, लेकिन काफी दिन बाद पूरा परिवार एकजुट हुए हैं. घर गुलजार हो गया है.

उन्होंने कहा कि हम एकजुट होकर रहकर एक नया संदेश समाज को देंगे. साथ ही परिवार की सबसे बड़ी सदस्य विजय बहादुर पाल और उनके भाइयों की 80 वर्षीय माता जी ने कहा कि मां का दिल तो अपने बच्चों को साथ देखना चाहता है, लेकिन काम की वजह से बच्चों को दूर रहना पड़ता है. उन्होंने कहा कि कोरोना ने सबको एकजुट कर दिया है. इस महामारी में सभी लोग स्वस्थ और एकजुट रहें.

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