बस्ती: भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे फसल बीमा से किसानों को लाभ के दावे की हकीकत बस्ती जिले में सामने आ रही है. यहां लाभार्थियों के आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि सरकारी दावे एक बार फिर हवा हवाई हैं. हकीकत तो ये है कि मजबूर किसान बीमा कम्पनियों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं.
किसान क्रेडिट कार्ड से तो बीमा का प्रीमियम काट लिया जाता, लेकिन जब फसलों में नुकसान होता है तब बीमा कम्पनियां फसल की बीमा देने से मुकर जाती हैं. आंकड़ों के मुताबिक 39 हजार किसानों के सापेक्ष 1861 को ही इस योजना का लाभ मिला है.
ओला पड़ने से हजारों एकड़ फसल हुई थी बर्बाद
केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसान क्रेडिट कार्ड बनता है. बैंक के माध्यम से किसान के खाते से कुछ रुपये प्रीमियम के तौर पर कटते हैं. साथ ही जब फसल का किसी कारण नुकसान हो जाता है तो बीमा कम्पनी बैंक के माध्यम से किसान को भुगतान करती है.
पिछले बर्ष ओला पड़ने से हजारों एकड़ फसल गेंहू की बर्बाद हो गयी थी, जिसमे लेखपाल द्वारा ओला वृष्टि की रिपोर्ट शासन को भेज दिया गया था. आज तक तमाम ऐसे किसान हैं जिन्हें बीमा का लाभ नहीं मिला. किसान बैंक के चक्कर लगाकर थक चुके हैं.
बीमा प्रीमियम जमा करने पर भी नहीं मिला राशी
हरैया थाना क्षेत्र के दो सगे भाई महेंद्र और वीरेंद्र के नाम से खेत है. दोनों ने बीमा का प्रीमियम भी जमा किया था. एक भाई का खाता कैनरा बैंक में था, जिसमें 25 हजार फसल बीमा का लाभ मिल गया. वहीं दूसरे भाई के बीमा की राशी नहीं मिल पाई, जबकि उसका एसबीआई बैंक में अकाउंट था. अब दोनों भाई महीनों से बैंकों का चक्कर लगा रहे हैं.
करोड़ों रुपये का हुआ घोटाला
पूरे जनपद की बात करें तो 39 हजार किसान धान की फसल बीमा कराये थे, जिसमें महज 1861 किसानों को बीमा का लाभ मिल पाया. जनपद में कंडवा रोग के प्रकोप से धान की फसल में भी पैदावार कम हुआ था. इसका क्रॉप कटिंग सर्वे रिपोर्ट भेजा गया था. इसमें भी कम्पनियों ने कुछ किसानों को बीमा का लाभ दिया और प्रीमियम के नाम करोड़ों रुपये डकार लिया.
फसल बीमा योजना से कंपनियां भले ही करोड़ों कमा रही हों, लेकिन किसान को केवल ठगा जा रहा है. वहीं इस संबंध में जिलाधिकारी आशुतोष ने कृषि अधिकारी को निर्देश दिया है कि विसंगतिया दूर कर मामले का निस्तारण कराए. सभी किसानों को नुकसान के आधार पर बीमा का लाभ दिलाएं.
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