बस्ती: रामायण और श्रीराम के बारे में सभी लोग जानते ही हैं. बहुत कम ही लोग ऐसे हैं जो यह जानते होंगे कि भगवान श्रीराम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम शांता था. मान्यता है कि जनपद के परशुरामपुर ब्लॉक के श्रृंगी नारी में भगवान श्रीराम की बहन मां शांता की तपोस्थली है. मंदिर में उनकी प्रतिमा उनके पति श्रृंगऋषि के साथ विराजमान है.
ऋष्य श्रृंगऋषि ने कराया था पुत्र कामेष्टि यज्ञ
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगऋषि ऋष्य श्रृंग विभण्डक के पुत्र थे. ऋष्य श्रृंग ऋषि ने राजा दशरथ की पुत्र कामना के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवाया था. जिस स्थान पर उन्होंने यज्ञ किया था, वह जगह अयोध्या से करीब 39 किमी पूर्व में थी और वहां आज भी उनका आश्रम है. इस जगह को आज लोग मखौड़ा धाम के नाम से जानते हैं.
राजा दशरथ ने राजा रोमपद को गोद दी थी माता शांता को
कहा जाता है कि राजा दशरथ ने अंगदेश के राजा रोमपद को अपनी बेटी शांता गोद दे दी थी. जब रोमपद पत्नी के साथ अयोध्या आए तो राजा दशरथ को मालूम चला कि उनकी कोई संतान नहीं है. तब राजा दशरथ ने शांता को उन्हें संतान स्वरूप दिया. इस प्रकार शांता अंगदेश की राजकुमारी बनीं. एक दिन राजा रोमपद अपनी गोद ली हुई पुत्री शांता से विचार विमर्श कर रहे थे, तब ही उनके दर पर एक ब्राह्मण याचक अपनी याचना लेकर आया. रोमपद अपनी वार्ता में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने ब्राह्मण की याचना सुनी ही नहीं और ब्राह्मण को बिना कुछ लिए खाली हाथ जाना पड़ा. यह बात देवताओं के राजा इंद्र को बहुत बुरी लगी और उन्होंने वरुण देवता को अंगदेश में बारिश न करने का हुक्म दिया.
ऋषि श्रृंग से प्रसन्न होकर अंगराज रोमपद ने कराया विवाह
उस वर्ष अंगदेश में सूखा पड़ने से हाहाकार मच गया. इस समस्या से निजात पाने के लिए रोमपद ऋषि श्रृंग के पास गए और उनसे वर्षा की समस्या बताई. तब ऋषि श्रृंग ने रोमपद को यज्ञ करने की बात कही. ऋषि श्रृंग के कहनुसार यज्ञ किया गया. पूरे विधि-विधान से यज्ञ संपन्न होने के बाद अंगदेश में वर्षा हुई. ऋषि श्रृंग से प्रसन्न होकर राजा रोमपद ने अपनी पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया.
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शांता माता ने किया था शक्ति की आराधना
श्रृंगी नारी में आषाढ़ माह के अंतिम मंगलवार को बुढ़वा मंगल का मेला लगता है. माताजी को पूड़ी और हलवा का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग में मख धाम में पुत्रेष्टि यज्ञ का समापन हुआ था. इसके बाद राजा दशरथ को श्रीराम सहित चार पुत्रों की प्राप्ति हुई. इस दौरान यहां पर शांता माता ने 45 दिनों तक शक्ति की अराधना किया था. यज्ञ के बाद ऋषि श्रृंगी अपनी पत्नी शांता को अपने साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन शांता मां नहीं गईं. वर्तमान मंदिर में पिण्डी बनकर समां गईं. पुरातत्वविदों के सर्वेक्षणों में इस स्थान के ऊपरी सतह पर लाल मृदभाण्डों, भवन संरचना के अवशेष और ईंटों के टुकड़े प्राप्त हुए हैं.