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बस्ती: सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे की शिकायत पर कार्रवाई - action on complaint of illegal possession

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 65 बीघे पर कब्जा किए गए 38 भवन और भूमि स्वामियों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है. फर्जीवाड़े के इस खेल में खुलकर सदर तहसील के राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका सामने आई है.

प्रशासन ने सरकारी जमीन पर की कार्रवाई
प्रशासन ने सरकारी जमीन पर की कार्रवाई
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Published : Aug 12, 2020, 6:59 PM IST

बस्ती: जिले में डीएम की पहल के बाद 65 बीघे पर कब्जा किए गए 38 भवन और भूमि स्वामियों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है. सालों से अवैध रुप से हथियाई गई जेडए और नॉनजेडए की सारी जमीनें सरकारी हक में चली गई हैं. फर्जीवाड़े के इस खेल में खुलकर सदर तहसील के राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका सामने आई है. रुधौली के बीजेपी विधायक संजय प्रताप जायसवाल की शिकायत के बाद इस मामले पर कार्रवाई की गई है.

जानकारी देते बीजेपी विधायक.
जिले में अरबों रुपये की सरकारी जमीन के फर्जीवाड़े के खेल का खुलासा हो गया है. इस मामले का पूरा क्रेडिट रुधौली के भाजपा विधायक संजय प्रताप जायवाल को जाता है, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले मुख्यमंत्री से प्रदेश स्तरीय टीम से जांच कराने की मांग की थी. हालांकि जांच में विलंब अवश्य हुआ है, मगर जांच पारदर्शी तरीके से की गई है. डीएम आशुतोष निंरजन ने इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया था. जांच टीम ने जो रिपोर्ट दी है, वह काफी चौंकाने वाली है.

इस सबके लिए राजस्वकर्मियों, पट्टेदार और उनके वारिसों की मिलीभगत को जिम्मेदार मानते हुए इस पर काबिज 38 लोगों को बेदखल कर दिया. इस तरह जिन लोगों ने साजिश करके जमीन बेची व खरीदी और बाद में उसे बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश से फर्जी तरीके से राज्य सरकार की भूमि की श्रेणी को परिवर्तित कर उसे 1 क के रुप में दर्ज करवा लिया. अब न तो वह लोग उस जमीन और भवन के मालिक रह गए और न ही इस आदेश के बाद कोई भी जमीन और भवन को बेच सकता है, न ही आधिकारिक रूप से उस पर अपना अधिकार जता सकता है. इसे अंजाम तक पहुंचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जांच अधिकारी सदर तहसीलदार पवन जायसवाल की रही. हालांकि अपर एसडीएम सुखबीर सिंह और ईओ नगरपालिका अखिलेश त्रिपाठी की भी भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं रही. इन सबके बावजूद सबसे अधिक सराहनीय भूमिका डीएम की रही.

प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद जिन लोगों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है, उनमें कई नामचीन लोग शामिल हैं. जिनमें व्यापारी, अधिवक्ता, रिटायर राजस्वकर्मी और सरकारीकर्मी भी हैं. वहीं जिन लोगों का नाम अभिलेखों से निरस्त करने की संस्तुति जांच टीम की ओर से की गई है, उनमें जेडए और नॉन जेडए दोनों शामिल हैं.

बस्ती: जिले में डीएम की पहल के बाद 65 बीघे पर कब्जा किए गए 38 भवन और भूमि स्वामियों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है. सालों से अवैध रुप से हथियाई गई जेडए और नॉनजेडए की सारी जमीनें सरकारी हक में चली गई हैं. फर्जीवाड़े के इस खेल में खुलकर सदर तहसील के राजस्व अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका सामने आई है. रुधौली के बीजेपी विधायक संजय प्रताप जायसवाल की शिकायत के बाद इस मामले पर कार्रवाई की गई है.

जानकारी देते बीजेपी विधायक.
जिले में अरबों रुपये की सरकारी जमीन के फर्जीवाड़े के खेल का खुलासा हो गया है. इस मामले का पूरा क्रेडिट रुधौली के भाजपा विधायक संजय प्रताप जायवाल को जाता है, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले मुख्यमंत्री से प्रदेश स्तरीय टीम से जांच कराने की मांग की थी. हालांकि जांच में विलंब अवश्य हुआ है, मगर जांच पारदर्शी तरीके से की गई है. डीएम आशुतोष निंरजन ने इसकी जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया था. जांच टीम ने जो रिपोर्ट दी है, वह काफी चौंकाने वाली है.

इस सबके लिए राजस्वकर्मियों, पट्टेदार और उनके वारिसों की मिलीभगत को जिम्मेदार मानते हुए इस पर काबिज 38 लोगों को बेदखल कर दिया. इस तरह जिन लोगों ने साजिश करके जमीन बेची व खरीदी और बाद में उसे बिना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश से फर्जी तरीके से राज्य सरकार की भूमि की श्रेणी को परिवर्तित कर उसे 1 क के रुप में दर्ज करवा लिया. अब न तो वह लोग उस जमीन और भवन के मालिक रह गए और न ही इस आदेश के बाद कोई भी जमीन और भवन को बेच सकता है, न ही आधिकारिक रूप से उस पर अपना अधिकार जता सकता है. इसे अंजाम तक पहुंचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जांच अधिकारी सदर तहसीलदार पवन जायसवाल की रही. हालांकि अपर एसडीएम सुखबीर सिंह और ईओ नगरपालिका अखिलेश त्रिपाठी की भी भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं रही. इन सबके बावजूद सबसे अधिक सराहनीय भूमिका डीएम की रही.

प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद जिन लोगों का मालिकाना हक समाप्त हो गया है, उनमें कई नामचीन लोग शामिल हैं. जिनमें व्यापारी, अधिवक्ता, रिटायर राजस्वकर्मी और सरकारीकर्मी भी हैं. वहीं जिन लोगों का नाम अभिलेखों से निरस्त करने की संस्तुति जांच टीम की ओर से की गई है, उनमें जेडए और नॉन जेडए दोनों शामिल हैं.

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