बरेलीः जिले में निरंकुश घूम रही बाघिन पर 15 महीने के प्रयास के बाद वन विभाग व उसके विशेषज्ञों ने शिकंजा कस लिया है. जिले की रबड़ फैक्ट्री में पिछले 15 महीने से बाघिन को पकड़ने को वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी और विशेषज्ञ दिन-रात एक किए हुए थे. बाघिन (tigress) बंद पड़ी फैक्ट्री के टैंक में घुस गई थी. इस पर वन विभाग ने चारों तरफ से उसे घेर लिया गया था. बाद में पिजड़ा लगाकर बाघिन 'शर्मीली' को पकड़ लिया गया.
गौरतलब है कि बरेली (bareilly) जिले की बंद पड़ी रबर फैक्ट्री में 13 मार्च 2020 को बाघिन को देखा गया था. तब बंद फैक्ट्री में बाघिन के आने की बात किसी को हजम नहीं हुई थी, लेकिन 3 दिन बाद ही जब वहां के सीसीटीवी खंगाले गए तो 16 मार्च 2020 को बाघिन के वहां होने की खबर पर मुहर लग गई.
उसके बाद से ही लगातार बाघिन को पकड़ने को वन विभाग के अफसरों ने खूब जतन किए, लेकिन बाघिन हाथ नहीं आई. अब बाघिन बंद फैक्ट्री के एक टैंक में घुसी तो वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में उसकी फुजेट कैद हो गईं. बता दें कि बाघिन को पकड़ने के लिए अब की छठवीं बार रेस्क्यू ऑपरेशन चला था. लंबे समय से वन विभाग की टीमें तो लगी ही थीं. साथ ही वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के तीन विशेषज्ञ भी इस छठवीं बार हो रहे रेस्क्यू में बाघिन को पकड़ लिया गया.
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नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर टीम के एक सदस्य ने बताया कि बाघिन जिस टैंक में ट्रेस हुई है, वो करीब 12 फीट छोटा और करीब 25 फीट ऊंचा है. बताया कि उस टैंक के अंदर भी एक टैंक है, जिसमें महज 2 से ढाई फीट की गैलरीनुमा जगह है. उसी गैलरी में फिलहाल वो बाघिन है. टीम के सदस्यों का कहना है कि बाघिन को अहसास तो हो गया था कि वो घिर चुकी है. काफी संख्या में आसपास में खास कैमरे लगे थे. उन्हीं कैमरों की मदद से बाघिन तक पहुंचा जा सका. बता दें कि इसी रबड़ फैक्ट्री में एक बाघ भी 4 मई 2018 को कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ा गया था. यह बाघ इस वक्त कानपुर के चिड़ियाघर में है.
मीरगंज थाना क्षेत्र के रामगंगा खादर के गांव गोरा हेमराजपुर में दो किसानों पर हमला भी बाघिन ने किया था. इस हमले में दोनों किसान गंभीर रूप से घायल हो गए थे. बताया जाता है कि दोनों किसान गन्ने की फसल में पानी लगाने गए थे. किसानों की चीख-पुकार सुनकर आसपास खेतों में काम कर रहे, अन्य किसानों ने उन्हें बचाया था. उस वक्त घटना स्थल से वन विभाग की टीम को बाघिन के पग चिह्न भी मिले थे.
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बताया जाता है कि 16 मार्च 2020 से अब तक बाघिन की तलाश में 62 लाख खर्च हो गए. बाघिन पकड़ने को तमाम व्यवस्थाओं में यह खर्च हुआ है. हालांकि जब ज्यादा ही खर्च होने लगा तो मुख्यालय से बजट पर रोक लगा दी. बाघिन की मॉनिटरिंग के लिए सीसीटीवी कैमरे, पदचिन्ह पैड, जाल, लाइट ड्रेन कैमरा, बाघिन कई शिकार पकड़ने के लिए बकरा, मुर्गा, बाहर से आने वाली टीमों के लिए रहने खाने पीने पर खर्च हुआ है.
मुख्य वन संरक्षक ललित कुमार वर्मा बताते हैं कि पहले तो कोशिश यही थी कि उसे कॉम्बिंग से बाहर निकाला जाए, क्योंकि यदि उसे ट्रैंकुलाइज किया गया तो फिर टैंक को काटना होगा. टैंक की चौड़ाई इतनी नहीं है कि उसे बिना काटे बाघिन को बाहर निकाला जा सके. इसलिए ट्रैंकुलाइज का ऑप्शन तो सबसे आखिरी के लिए रखा गया था. आखिर काफी मेहनत के बाद बाघिन को पकड़ लिया गया है और दुधवा नेशनल पार्क भेजा गया है.