बरेलीः एसआरएमएस इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज(SRMS Institute of Medical Sciences) और एसआरएमएस इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज(SRMS Institute of Paramedical Sciences) के नौंवें दीक्षांत समारोह में 259 विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की गईं. इस मौके पर मेडिकल और पैरामेडिकल के 34 विद्यार्थियों ने श्रेष्ठ शैक्षिक प्रदर्शन कर ट्रॉफी के साथ सर्टिफिकेट हासिल किए. इनमें मेडिकल में पीजी और यूजी के पांच विद्यार्थियों तथा पैरामेडिकल के दो विद्यार्थियों को अपने-अपने बैच में ओवरआल टॉपर रहने पर श्रीराममूर्ति गोल्ड मेडल व 51 हजार रुपये के नगद पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
समारोह की अध्यक्षता एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केपी सिंह ने की, जबकि दीक्षांत संबोधन पद्म भूषण डॉ. बीके राव ने दिया. उन्होंने विद्यार्थियों को मानवसेवा के लिए प्रेरित किया. विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एके सिंह ने विद्यार्थियों को अपने प्रोफेशन के दौरान ईमानदारी बरतने का संदेश दिया. इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक, चेयरमैन देवमूर्ति जी ने विद्यार्थियों को मेहनत करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि कोई भी मंजिल मेहनत से हासिल की जा सकती है. ऐसे में अपने सपने साकार करने के लिए पर्याप्त परिश्रम जरूरी है.
दीक्षांत समारोह के आरंभ में कालेज ऑफ इंजीनियरिंग में ह्यूमिनिटीज की फैकेल्टी रुचि शाह ने एसआरएमएस ट्रस्ट और इसके संस्थानों से परिचित कराया. सरस्वती वंदना और संस्थान गीत के बाद संस्था के चेयरमैन देवमूर्ति जी ने अतिथियों और विद्यार्थियों के परिजनों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि आज का दिन सपनों को साकार होते देखने का दिन है. बच्चों को डॉक्टर बनते देखना और डाक्टर बनने का खुद का सपना पूरा होता हुआ दिखना आज संभव हुआ है.
यह विद्यार्थियों की साढ़े छह वर्ष की कड़ी मेहनत का नतीजा है. ऐसी कड़ी मेहनत जिंदगी भर बनाए रखने की आदत आगे भी बनाए रखनी पड़ेगी, क्योंकि कड़ी मेहनत की यही आदत आपको आगे भी सफलता दिलाएगी. आप सबने यहां पर विश्वस्तरीय उपकरणों के जरिये और सर्वश्रेष्ठ गुरुओं से शिक्षा हासिल की है. इसका मान बनाए रखना अब आपकी जिम्मेदारी है.
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चोट को सहन करने से ही सफलताः डा. केपी सिंह
अध्यक्षीय संबोधन में रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केपी सिंह विद्यार्थियों से कहा कि डिग्री यूं ही नहीं मिल जाती. इसे हासिल करना पड़ता है. डॉक्टर की डिग्री तो ओर भी महत्वपूर्ण है. इसका महत्व कोरोना काल में सबको पता चल गया. यह डिग्री अगर एसआरएमएस जैसे विश्वस्तरीय संस्थान से हासिल हो तो इसके प्रति जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.
इसे विश्वस्तरीय बनाने के पीछे इसके संस्थापक देवमूर्ति जी और यहां के गुरुओं का योगदान अमूल्य है. डॉ. सिंह ने एक ही पत्थर से बनी मंदिर में सीढ़ी और मूर्ति की कहानी सुना कर विद्यार्थियों को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि जो पत्थर चोट बर्दाश्त करने की क्षमता रखता है वह मूर्ति बन जाता है और जो चोट से बिखर जाता है उसे सीढ़ियों पर जगह मिलती है. आप जितनी ठोकरे सहन करेंगे उतने ही पूजे जाएंगे।.
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