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बरेली: जब 'धरती के भगवान' ही बन बैठे 'यमराज' !

4 दिनों के नवजात को भर्ती कराने के लिये एक पिता बरेली जिला अस्पताल और महिला अस्पताल का चक्कर काटता रहा. अपने हाथों में लेकर तीन घंटों तक वो भागता रहा. लेकिन जिला अस्पताल और महिला अस्पताल के बीच तनातनी की कीमत उसे अपनी नन्हीं बच्ची की जान खोकर चुकानी पड़ी. हालांकि बाद में इस मामले पर सीएम ने संज्ञान लिया. सीएम योगी ने महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. अलका शर्मा के खिलाफ ड्यूटी में लापरवाही बरतने के आरोप में विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं. साथ ही पुरुष अस्पताल के सीएमएस कमलेंद्र स्वरूप गुप्ता को निलंबित कर दिया गया है.

4 दिनों की मासूम ने तोड़ा दम
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Published : Jun 19, 2019, 11:54 PM IST

बरेली: गोकुलपुरी बिसारतगंज के रहने वाले जोगेंद्र की पत्नी ने जीराज हॉस्पिटल में 15 जून को बेटी को जन्म दिया था. प्रमैच्योर नवजात की हालत ठीक नहीं होने पर उसे जीराज हॉस्पिटल वालों ने जिला अस्पताल रेफर कर दिया. अपनी बेटी को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जोगेंद्र ने कमरा नंबर 25 में डॉक्टर एस एस चौहान को दिखाया. डॉक्टर चौहान ने बच्ची को महिला अस्पताल में भर्ती कराने के लिये भेज दिया. लेकिन महिला अस्पताल में डॉक्टर ने सौरभ ने पर्ची पर बेड खाली नहीं होने की बात लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली.

डॉक्टर्स के बीच तनातनी का शिकार हुई मासूम


लाचार और परेशान जोगेंद्र अपनी बच्ची को लेकर ओपीडी पहुंचा. वह इधर से उधर भागता रहा लेकिन धरती के भगवान साक्षात यमराज बने रहे. तीन घंटे तक भटकने के बाद 4 दिनों की उर्वशी ने इस धरा से वापस चले जाना ही मुनासिब समझा.

एक नवजात ने यहां के सड़े हुए सिस्टम के सामने दम तोड़ दिया. अब खाली बेड के इंतजार में मासूम कितने दिनों तक रुकी रहती. और फिर क्या पता कि रुकती तो वो बीमार सिस्टम के इलाज से ठीक भी हो पाती या नहीं. अब ये परिजन कहां हड़ताल करें साहब. आपने तो अपनी हड़ताल से पूरे देश को हिला दिया था. आपको अपनी सुरक्षा बहुत प्यारी है. लेकिन लाचार, परेशान और बेबस मरीजों से मुंह फेरना तो आपकी जिम्मेदारी नहीं है. काश संवेदनाओं की हत्या पर भी दंड का विधान होता. काश इस मर चुकी नवजात के लिये भी अस्पताल में कोई इंतजाम होता.

बरेली: गोकुलपुरी बिसारतगंज के रहने वाले जोगेंद्र की पत्नी ने जीराज हॉस्पिटल में 15 जून को बेटी को जन्म दिया था. प्रमैच्योर नवजात की हालत ठीक नहीं होने पर उसे जीराज हॉस्पिटल वालों ने जिला अस्पताल रेफर कर दिया. अपनी बेटी को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जोगेंद्र ने कमरा नंबर 25 में डॉक्टर एस एस चौहान को दिखाया. डॉक्टर चौहान ने बच्ची को महिला अस्पताल में भर्ती कराने के लिये भेज दिया. लेकिन महिला अस्पताल में डॉक्टर ने सौरभ ने पर्ची पर बेड खाली नहीं होने की बात लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली.

डॉक्टर्स के बीच तनातनी का शिकार हुई मासूम


लाचार और परेशान जोगेंद्र अपनी बच्ची को लेकर ओपीडी पहुंचा. वह इधर से उधर भागता रहा लेकिन धरती के भगवान साक्षात यमराज बने रहे. तीन घंटे तक भटकने के बाद 4 दिनों की उर्वशी ने इस धरा से वापस चले जाना ही मुनासिब समझा.

एक नवजात ने यहां के सड़े हुए सिस्टम के सामने दम तोड़ दिया. अब खाली बेड के इंतजार में मासूम कितने दिनों तक रुकी रहती. और फिर क्या पता कि रुकती तो वो बीमार सिस्टम के इलाज से ठीक भी हो पाती या नहीं. अब ये परिजन कहां हड़ताल करें साहब. आपने तो अपनी हड़ताल से पूरे देश को हिला दिया था. आपको अपनी सुरक्षा बहुत प्यारी है. लेकिन लाचार, परेशान और बेबस मरीजों से मुंह फेरना तो आपकी जिम्मेदारी नहीं है. काश संवेदनाओं की हत्या पर भी दंड का विधान होता. काश इस मर चुकी नवजात के लिये भी अस्पताल में कोई इंतजाम होता.

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बरेली: जब 'धरती के भगवान' ही बन बैठे 'यमराज'



आप हड़ताल करिए...आप आपस में झगड़ा करते रहिए साहेब...इससे आपकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता...लेकिन गरीबों को पड़ता है साहेब...इससे किसी गरीब की जान भी जा सकती है...जरा सोचिये कि जिसने डॉक्टरों के चक्कर काटते-काटते अपने हाथों में, अपने सामने नवजात को दम तोड़ते देखा हो, उस पर क्या गुजरी होगी? लेकिन आपको इन सबसे कहां फर्क पड़ता है.

4 दिनों के नवजात को भर्ती कराने के लिये एक पिता बरेली जिला अस्पताल और महिला अस्पताल का चक्कर काटता रहा. अपने हाथों में लेकर तीन घंटों तक वो भागता रहा. लेकिन जिला अस्पताल और महिला अस्पताल के बीच तनातनी की कीमत उसे अपनी नन्हीं बच्ची की जान खोकर चुकानी पड़ी.

गोकुलपुरी बिसारतगंज के रहने वाले जोगेंद्र की पत्नी ने जीराज हॉस्पिटल में 15 जून को बेटी को जन्म दिया था. प्रमैच्योर नवजात की हालत ठीक नहीं होने पर उसे जीराज हॉस्पिटल वालों ने जिला अस्पताल रेफर कर दिया. अपनी बेटी को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे जोगेंद्र ने कमरा नंबर 25 में डॉक्टर एस एस चौहान को दिखाया. डॉक्टर चौहान ने बच्ची को महिला अस्पताल में भर्ती कराने के लिये भेज दिया. लेकिन महिला अस्पताल में डॉक्टर ने सौरभ ने पर्ची पर बेड खाली नहीं होने की बात लिखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली.

लाचार और परेशान जोगेंद्र अपनी बच्ची को लेकर ओपीडी पहुंचा. वह इधर से उधर भागता रहा लेकिन धरती के भगवान साक्षात यमराज बने रहे. तीन घंटे तक भटकने के बाद 4 दिनों की उर्वशी ने इस धरा से वापस चले जाना ही मुनासिब समझा.

एक नवजात ने यहां के सड़े हुए सिस्टम के सामने दम तोड़ दिया. अब खाली बेड के इंतजार में मासूम कितने दिनों तक रुकी रहती. और फिर क्या पता कि रुकती तो वो बीमार सिस्टम के इलाज से ठीक भी हो पाती या नहीं. अब ये परिजन कहां हड़ताल करें साहब. आपने तो अपनी हड़ताल से पूरे देश को हिला दिया था. आपको अपनी सुरक्षा बहुत प्यारी है. लेकिन लाचार, परेशान और बेबस मरीजों से मुंह फेरना तो आपकी जिम्मेदारी नहीं है. काश संवेदनाओं की हत्या पर भी दंड का विधान होता. काश इस मर चुकी नवजात के लिये भी अस्पताल में कोई इंतजाम होता.




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