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Kargil Vijay Diwas: युद्ध, वीरता और बरेली के हरिओम सिंह की शहादत की शौर्यगाथा

26 जुलाई यानि आज कारगिल जंग में भारत को मिली जीत के 22 साल पूरे हो गए हैं. 60 दिनों तक चले इस युद्ध में सेना के वीर सपूतों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था. कारगिल गवाह है भारतीय सैनिकों के शौर्य की गाथा का. गवाह है सैकड़ों जवानों की शहादत का. पाकिस्तान पर हिंदुस्तान की फतह के गुजरे 26 सालों की दास्तान है करगिल विजय दिवस. इस दिन को शहीद हुए जवानों के बलिदान को याद कर हर साल मनाते हैं. कारगिल वार में शहीद हुए जाबांजों में एक थे बरेली के शहीद हरिओम सिंह. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को धूल चटा दी थी. कारगिल की लड़ाई में बरेली के हरिओम सिंह की शहादत के बाद उन्हें स्पेशल सर्विस मेडल दिया गया था. शहीद हरिओम सिंह को शहादत को देश नमन करता है.

शहादत की शौर्यगाथा
शहादत की शौर्यगाथा
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Published : Jul 26, 2021, 6:15 AM IST

Updated : Jul 26, 2021, 7:06 AM IST

बरेली: पूरे देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश की खातिर सैकड़ों जवानों ने अपने प्राण न्योछावर करते हुए अपनी जान दे दी थी. कारगिल में शहीद हुए जवानों में से एक शहीद हरिओम सिंह का परिवार बरेली में रहता है. जो 22वीं कारगिल विजय दिवस पर उनकी शहादत को याद कर गर्व महसूस करता हैं. जानते है शहीद हरिओम सिंह के परिवार से शहादत की कहानी.



1999 में तीन महीनों तक कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के खिलाफ चले ऑपरेशन विजय में सैकड़ों सेना के जवान शहीद हुए थे. देश की खातिर दुश्मनों से मुकाबला करते हुए ये वीर अपनी जान देकर शहीद हो गए थे. इन शहीद जवानों में एक जवान हरिओम सिंह भी थे. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को धूल चटा दी थी. कारगिल की लड़ाई में बरेली के हरिओम सिंह की शहादत के बाद उन्हें स्पेशल सर्विस मेडल दिया गया था. शहीद हरिओम सिंह को शहादत को देश नमन करता है.

शहादत की शौर्यगाथा

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी बताती हैं कि शहीद हरिओम ने 1986 में हवलदार के पद पर आर्मी में भर्ती हुए थे, जिसके बाद देश की सेवा का जज्बे को लिए हर वक्त तैयार रहते थे. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी ने बताया कि शहीद हरिओम को मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे. उन्होंने कहा कि वह एक शानदार फौजी थे, और उन्होंने अपनी अधिकतर ड्यूटी पहाड़ी और सियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाकों में सरहद की हिफाजत करते हुए पूरी की थी. उन्होंने बताया कि शहीद हरिओम सिंह ने तीन युद्ध लड़े जिनमें ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन पवन और अंतिम ऑपरेशन विजय था. कारगिल में हुए ऑपरेशन विजय के दौरान एक जुलाई 1999 में हवलदार हरिओम सिंह शहीद हो गए थे, और 4 जुलाई 1999 को उनके शहीद होने की खबर आई.

शहादत से पहले छुट्टी आए थे घर

कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शहीद हरिओम सिंह की पत्नी ने गुड्डो देवी ने बताया कि ऑपरेशन विजय से पहले वह छुट्टी पर गांव लौटे थे और अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिता रहे थे, पर युद्ध के चलते छुट्टी रद्द होने के बाद उनको ड्यूटी पर लौटना पड़ा. जहां वह कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते विजय गाथा लिखते हुए वहीं जंग में शहीद हो गए.

उन्होंने कहा कि जिस वक्त उनके पति शहीद हुए थे उस वक्त उनका बेटा प्रताप महज पांच साल का भी नहीं हुआ था और बेटी गर्भ में थी. पिता हरिओम सिंह की शहादत के बाद बेटी सुप्रिया ने जन्म लिया. 22 साल बाद बेटा प्रताप सिंह पिता हरिओम सिंह की शहादत में मिले पेट्रोल पंप की, मां गुड्डो देवी की देख भाल करता है. तो वहीं बेटी सुप्रिया सिंह पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है और पिता की तरह देश की सेवा करना चाहती हैं.


22वें कारगिल विजय दिवस के मौके पर शहीद हरिओम सिंह की पत्नी ने बताया कि पति की शहादत के बाद सरकार की तरफ से उनको एक पेट्रोल पंप बरेली में दिया गया है. साथ ही एक मकान भी उनके रहने के लिए सरकार की तरफ से मिला है. गुड्डो देवी बताती हैं कि पति की शहादत पर सरकार की तरफ से किए गए वादों में से अधिकतर वादे तो पूरे हुए पर कुछ बातें सिर्फ बातें बन कर रह गई हैं.


पति की याद में आंखें हो जाती हैं नम

शहीद हरिओम सिंह की पत्नी कहती है कि वैसे तो हर पल उनके पति शहीद हरिओम सिंह उनके साथ रहते हैं, पर जब भी वो उनको याद करती हैं उनकी आंखें नम हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि जीवन में उनकी कमी खलती है, तो वहीं उनकी शहादत पर उन्हें गर्व भी है कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया.


वहीं पिता के जिक्र पर उनके बेटे प्रताप सिंह का कहना है कि जब 1999 में उसके पिता शहीद हुए थे तो वह महज पांच साल के थे. प्रताप ने कहा कि उनकी कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती मगर मुझे गर्व है अपने पिता पर, जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी इस बार हुए पंचायत चुनाव में बदायूं की वजीरगंज ब्लॉक की ब्लॉक प्रमुख बनी हैं. उन्होंने बीजेपी पार्टी से ब्लॉक पूर्वी का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की.

बरेली: पूरे देश में कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में देश की खातिर सैकड़ों जवानों ने अपने प्राण न्योछावर करते हुए अपनी जान दे दी थी. कारगिल में शहीद हुए जवानों में से एक शहीद हरिओम सिंह का परिवार बरेली में रहता है. जो 22वीं कारगिल विजय दिवस पर उनकी शहादत को याद कर गर्व महसूस करता हैं. जानते है शहीद हरिओम सिंह के परिवार से शहादत की कहानी.



1999 में तीन महीनों तक कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के खिलाफ चले ऑपरेशन विजय में सैकड़ों सेना के जवान शहीद हुए थे. देश की खातिर दुश्मनों से मुकाबला करते हुए ये वीर अपनी जान देकर शहीद हो गए थे. इन शहीद जवानों में एक जवान हरिओम सिंह भी थे. जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों को धूल चटा दी थी. कारगिल की लड़ाई में बरेली के हरिओम सिंह की शहादत के बाद उन्हें स्पेशल सर्विस मेडल दिया गया था. शहीद हरिओम सिंह को शहादत को देश नमन करता है.

शहादत की शौर्यगाथा

उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की बिसौली तहसील के रहने वाले हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी बताती हैं कि शहीद हरिओम ने 1986 में हवलदार के पद पर आर्मी में भर्ती हुए थे, जिसके बाद देश की सेवा का जज्बे को लिए हर वक्त तैयार रहते थे. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी ने बताया कि शहीद हरिओम को मैदानी इलाके अच्छे नहीं लगते थे. उन्होंने कहा कि वह एक शानदार फौजी थे, और उन्होंने अपनी अधिकतर ड्यूटी पहाड़ी और सियाचिन जैसे जबरदस्त बर्फीले इलाकों में सरहद की हिफाजत करते हुए पूरी की थी. उन्होंने बताया कि शहीद हरिओम सिंह ने तीन युद्ध लड़े जिनमें ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन पवन और अंतिम ऑपरेशन विजय था. कारगिल में हुए ऑपरेशन विजय के दौरान एक जुलाई 1999 में हवलदार हरिओम सिंह शहीद हो गए थे, और 4 जुलाई 1999 को उनके शहीद होने की खबर आई.

शहादत से पहले छुट्टी आए थे घर

कारगिल विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए शहीद हरिओम सिंह की पत्नी ने गुड्डो देवी ने बताया कि ऑपरेशन विजय से पहले वह छुट्टी पर गांव लौटे थे और अपने परिवार के साथ छुट्टियां बिता रहे थे, पर युद्ध के चलते छुट्टी रद्द होने के बाद उनको ड्यूटी पर लौटना पड़ा. जहां वह कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तान के छक्के छुड़ाते विजय गाथा लिखते हुए वहीं जंग में शहीद हो गए.

उन्होंने कहा कि जिस वक्त उनके पति शहीद हुए थे उस वक्त उनका बेटा प्रताप महज पांच साल का भी नहीं हुआ था और बेटी गर्भ में थी. पिता हरिओम सिंह की शहादत के बाद बेटी सुप्रिया ने जन्म लिया. 22 साल बाद बेटा प्रताप सिंह पिता हरिओम सिंह की शहादत में मिले पेट्रोल पंप की, मां गुड्डो देवी की देख भाल करता है. तो वहीं बेटी सुप्रिया सिंह पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है और पिता की तरह देश की सेवा करना चाहती हैं.


22वें कारगिल विजय दिवस के मौके पर शहीद हरिओम सिंह की पत्नी ने बताया कि पति की शहादत के बाद सरकार की तरफ से उनको एक पेट्रोल पंप बरेली में दिया गया है. साथ ही एक मकान भी उनके रहने के लिए सरकार की तरफ से मिला है. गुड्डो देवी बताती हैं कि पति की शहादत पर सरकार की तरफ से किए गए वादों में से अधिकतर वादे तो पूरे हुए पर कुछ बातें सिर्फ बातें बन कर रह गई हैं.


पति की याद में आंखें हो जाती हैं नम

शहीद हरिओम सिंह की पत्नी कहती है कि वैसे तो हर पल उनके पति शहीद हरिओम सिंह उनके साथ रहते हैं, पर जब भी वो उनको याद करती हैं उनकी आंखें नम हो जाती हैं. उन्होंने कहा कि जीवन में उनकी कमी खलती है, तो वहीं उनकी शहादत पर उन्हें गर्व भी है कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया.


वहीं पिता के जिक्र पर उनके बेटे प्रताप सिंह का कहना है कि जब 1999 में उसके पिता शहीद हुए थे तो वह महज पांच साल के थे. प्रताप ने कहा कि उनकी कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती मगर मुझे गर्व है अपने पिता पर, जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. शहीद हरिओम सिंह की पत्नी गुड्डो देवी इस बार हुए पंचायत चुनाव में बदायूं की वजीरगंज ब्लॉक की ब्लॉक प्रमुख बनी हैं. उन्होंने बीजेपी पार्टी से ब्लॉक पूर्वी का चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की.

Last Updated : Jul 26, 2021, 7:06 AM IST
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