बरेली : विश्व भर में मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मातृ दिवस मनाया जाता है. मदर्स डे पहली बार वर्ष 1908 में मनाया गया था. तब से यह परंपरा चली आ रही है. मदर्स डे के इस मौके पर ईटीवी भारत की टीम ऐसी दास्तान बताने जा रही है, जिसमें मां की ममता और त्याग के बल बूते पर बेटे ने मुकाम हांसिल किया.
मां की ममता और लगन के बल बूते पर बरेली जिले के रहने वाले शुभम आज सरकारी सरकारी नौकरी कर रहे हैं. बरेली के सिविल लाइंस इलाके में रहने वाले 32 वर्षीय शुभम की महज 2 वर्ष की आयु में ही बीमारी की चपेट में आने से आंखों की रोशन चली गई थी. शुभम की आंखो की रोशनी जाने के बाद उनकी मां पूनम अग्रवाल ने बेटे को निराश नहीं होने दिया. शुभम की मां पूनम ने अपनी आवाज में किताबो में लिखे नोट्स रिकार्ड किए. पूनम के रिकार्ड किए गए नोट्स सुनकर शुभम ने पढ़ाई पूरी की और सफलता पाई. फिलहाल नेत्रहीन शुभम बैंक में क्लर्क के पद पर नौकरी कर रहे हैं.
साए की तरह शुभम के साथ रहतीं हैं उनकी पत्नी शालिनी अग्रवाल
बचपन में ही अपनी आंखों की रोशनी खो चुके शुभम की शादी हो चुकी है. उनकी पत्नी का नाम शालिनी अग्रवाल है, वह अपने पति का हर समय ध्यान रखतीं हैं. शालिनी अपने पति शुभम की दैनिक दिनचर्या में भी हाथ बंटाती हैं. फिलहाल शुभम और उनका परिवार खुशहाल जिंदगी गुजार रहा है. शुभम की पत्नी अपने पति के साथ खुश हैं, और अपनी सास पूनम अग्रवाल का भी ध्यान रखतीं हैं.
संगीत का शौक रखते हैं शुभम
बीमारी के चलते अपनी आंखों की रोशनी गवां चुके शुभम को संगीत का शौक है. अपने शौक को पूरा करने के लिए शुभम ने म्यूजिक की पढ़ाई भी की है. शुभम को जब भी समय मिलता है, वह अपनी मां और पत्ती के लिए गुनगुनाते हैं. शुभम का कहना है कि उनके लिए हर दिन मदर्स डे है. उन्होंने अपनी मां की बदौलत ही सफलता पाई है.
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