बरेली: लकड़ी को तराश कर उसको फर्नीचर का रूप देने वाले लकड़ी कारीगरों के चेहरे की चमक गायब हो गई है. कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के चलते फर्नीचर कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. बरेली में पिछले महीने से लॉकडाउन होने के कारण फर्नीचर बाजार ठप पड़ा है. फर्नीचर तैयार करने वाले कारीगरों के चूल्हे भी ठंडे होते नजर आ रहे हैं.
लगभग 25 हजार कारीगर करते हैं काम
बरेली में लकड़ी का फर्नीचर, बेंत का फर्नीचर और बांस का फर्नीचर बनाया जाता है. जिसको खरीदने के लिए बरेली ही नहीं बरेली के आसपास के जिलों के फर्नीचर प्रेमी भी यहां आकर फर्नीचर खरीदते हैं. बरेली में छोटे-बड़े सभी मिलाकर लगभग 25,000 लोग फर्नीचर बनाने के काम में लगे हुए हैं. कोई बेंत का फर्नीचर बनाता है तो कोई बांस का फर्नीचर और कोई लकड़ी का फर्नीचर बनाकर अपने परिवार का पेट पालता है. इस समय लॉकडाउन के चलते उनको परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है.
लॉकडाउन के चलते काम बन्द
बरेली में लखनऊ के चलते फर्नीचर बाजार पूरी तरह से बंद है. जिसके चलते फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों के पास काम नहीं है. कारपेंटरों के पास न तो दुकानदार आ रहे हैं और न ही ग्राहक. जिसके चलते कारपेंटर का काम करने वाले लोग घरों में खाली बैठे हैं. जिस कारखाने में 20 से अधिक लोग काम करते थे वहां 1-2 लोग ही काम कर रहे हैं. फर्नीचर बनाने वाले जो कारीगर सामान्य दिनों में हजार से 1500 रुपए प्रतिदिन कमा लिया करते थे, वह अब लॉकडाउन के चलते 100 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं.
कुछ को मिल रहा है थोड़ा काम
कभी-कभी कुछ कारीगरों के पास 100-200 रुपये का काम आ जाता है, जिससे वह अपने घर के खर्चे चला लेते हैं. अधिकतर फर्नीचर बनाने वाले कारीगर लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं. फर्नीचर के कारीगरों ने बताया कि घर में खाली बैठे होने के कारण और पैसे की जरूरत के चलते कभी-कभी काम आ भी जाता है तो बहुत कम पैसे में करना पड़ता है.
सरकार से मिलता है राशन
फर्नीचर बनाने वाले कारीगर ने बताया कि सरकार की तरफ से उनको राशन मिलता है, लेकिन बड़ा परिवार होने के चलते वह राशन भी पूरे महीने नहीं चल पाता है. राशन के अलावा और भी बहुत खर्चे होते हैं, जिनको चलाना आजकल बहुत मुश्किल हो रहा है.