बरेली: मामला जिले के फरीदपुर कस्बा स्थित गांव करपिया का है. यहां रहने वाले एक परिवार में 6 बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हो चुकी है और अब डेढ़ साल की बच्ची को भी कुपोषण ने अपनी चपेट में ले लिया है. जिसे जिला अस्पताल के कुपोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है. बच्ची जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. जिले में प्रशासनिक अफसरों की पहल भी कुपोषण पर लगाम नहीं लगा सकी है. यहां अफसरों ने कुपोषण के खात्मे के लिए कुपोषित गांवों को गोद लेने की पहल की थी, लेकिन जिले के 12 गांव अभी भी कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाए हैं.
कुपोषण से पीड़ित बच्ची ज्योति की मां सुखदेई ने बताया कि 12 भाई-बहनों में ज्योति सबसे छोटी है, कुपोषण से पहले ही छह बच्चों की मौत हो चुकी है. सुखदेई ने बताया कि बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी. परिवार की माली हालत बहुत खराब है. मजदूरी और तीन बीघे खेत से परिवार पल रहा है. ज्यादातर बच्चे जन्म के कुछ महीनों के अंदर ही मौत के मुंह में समा गए.
डॉक्टरों के मुताबिक महिला खुद भी एनीमिक है इस वजह से गर्भ में बच्चों को पर्याप्त पोषण न मिल पाने से वह जन्म से ही कुपोषण की चपेट में आ जाते होंगे. जन्म के बाद से ही बच्ची अक्सर बीमार रहती है, बीमारी की समझ न होने के कारण परिवार अब तक झोलाछाप डॉक्टर की दवा बच्ची को खिलाता रहा.
एनआरसी की डायटीशियन डॉक्टर रोजी जैदी ने बताया कि आमतौर पर डेढ़ साल के बच्चे चलने-फिरने में सक्षम होते हैं, मगर जन्म से ही कुपोषित होने से बच्ची खड़ी भी नहीं हो पा रही है. बच्ची की मां एनीमिक है. एनआरसी में भर्ती बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है. बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए. इस केस में ऐसा नहीं है. इस वजह से मां को रिकवर होने का वक्त नहीं मिल पाया, इसका असर बच्चों की सेहत पर भी पड़ा है.
बरेली जिले में अभी भी 11,153 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. जहां शहरी क्षेत्रों में 31 प्रतिशत बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 41.2 प्रतिशत बच्चे वृद्धिबाधित कुपोषण के शिकार हैं. इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 19.9 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 21.4 प्रतिशत बच्चे अल्प-पोषण के शिकार हैं. कम वजन के कुपोषण में यह अंतर ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में 29.1 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 38.2 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं.