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बरेली में कुपोषण का कहर, एक ही परिवार के 6 बच्चों की हो चुकी है मौत - कुपोषण का मामला

यूपी के बरेली में एक परिवार के 6 बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई थी. वहीं अब डेढ़ साल की बच्ची ज्योति भी कुपोषण की चपेट में आ गई है, जिसे जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है. डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची जन्म से ही कुपोषण से पीड़ित है और उसका इलाज चल रहा है.

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कुपोषण का कहर
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Published : Jan 28, 2020, 9:30 PM IST

बरेली: मामला जिले के फरीदपुर कस्बा स्थित गांव करपिया का है. यहां रहने वाले एक परिवार में 6 बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हो चुकी है और अब डेढ़ साल की बच्ची को भी कुपोषण ने अपनी चपेट में ले लिया है. जिसे जिला अस्पताल के कुपोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है. बच्ची जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. जिले में प्रशासनिक अफसरों की पहल भी कुपोषण पर लगाम नहीं लगा सकी है. यहां अफसरों ने कुपोषण के खात्मे के लिए कुपोषित गांवों को गोद लेने की पहल की थी, लेकिन जिले के 12 गांव अभी भी कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाए हैं.

कुपोषण का कहर.

कुपोषण से पीड़ित बच्ची ज्योति की मां सुखदेई ने बताया कि 12 भाई-बहनों में ज्योति सबसे छोटी है, कुपोषण से पहले ही छह बच्चों की मौत हो चुकी है. सुखदेई ने बताया कि बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी. परिवार की माली हालत बहुत खराब है. मजदूरी और तीन बीघे खेत से परिवार पल रहा है. ज्यादातर बच्चे जन्म के कुछ महीनों के अंदर ही मौत के मुंह में समा गए.

डॉक्टरों के मुताबिक महिला खुद भी एनीमिक है इस वजह से गर्भ में बच्चों को पर्याप्त पोषण न मिल पाने से वह जन्म से ही कुपोषण की चपेट में आ जाते होंगे. जन्म के बाद से ही बच्ची अक्सर बीमार रहती है, बीमारी की समझ न होने के कारण परिवार अब तक झोलाछाप डॉक्टर की दवा बच्ची को खिलाता रहा.

एनआरसी की डायटीशियन डॉक्टर रोजी जैदी ने बताया कि आमतौर पर डेढ़ साल के बच्चे चलने-फिरने में सक्षम होते हैं, मगर जन्म से ही कुपोषित होने से बच्ची खड़ी भी नहीं हो पा रही है. बच्ची की मां एनीमिक है. एनआरसी में भर्ती बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है. बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए. इस केस में ऐसा नहीं है. इस वजह से मां को रिकवर होने का वक्त नहीं मिल पाया, इसका असर बच्चों की सेहत पर भी पड़ा है.

बरेली जिले में अभी भी 11,153 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. जहां शहरी क्षेत्रों में 31 प्रतिशत बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 41.2 प्रतिशत बच्चे वृद्धिबाधित कुपोषण के शिकार हैं. इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 19.9 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 21.4 प्रतिशत बच्चे अल्प-पोषण के शिकार हैं. कम वजन के कुपोषण में यह अंतर ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में 29.1 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 38.2 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं.

बरेली: मामला जिले के फरीदपुर कस्बा स्थित गांव करपिया का है. यहां रहने वाले एक परिवार में 6 बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हो चुकी है और अब डेढ़ साल की बच्ची को भी कुपोषण ने अपनी चपेट में ले लिया है. जिसे जिला अस्पताल के कुपोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया है. बच्ची जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. जिले में प्रशासनिक अफसरों की पहल भी कुपोषण पर लगाम नहीं लगा सकी है. यहां अफसरों ने कुपोषण के खात्मे के लिए कुपोषित गांवों को गोद लेने की पहल की थी, लेकिन जिले के 12 गांव अभी भी कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाए हैं.

कुपोषण का कहर.

कुपोषण से पीड़ित बच्ची ज्योति की मां सुखदेई ने बताया कि 12 भाई-बहनों में ज्योति सबसे छोटी है, कुपोषण से पहले ही छह बच्चों की मौत हो चुकी है. सुखदेई ने बताया कि बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी. परिवार की माली हालत बहुत खराब है. मजदूरी और तीन बीघे खेत से परिवार पल रहा है. ज्यादातर बच्चे जन्म के कुछ महीनों के अंदर ही मौत के मुंह में समा गए.

डॉक्टरों के मुताबिक महिला खुद भी एनीमिक है इस वजह से गर्भ में बच्चों को पर्याप्त पोषण न मिल पाने से वह जन्म से ही कुपोषण की चपेट में आ जाते होंगे. जन्म के बाद से ही बच्ची अक्सर बीमार रहती है, बीमारी की समझ न होने के कारण परिवार अब तक झोलाछाप डॉक्टर की दवा बच्ची को खिलाता रहा.

एनआरसी की डायटीशियन डॉक्टर रोजी जैदी ने बताया कि आमतौर पर डेढ़ साल के बच्चे चलने-फिरने में सक्षम होते हैं, मगर जन्म से ही कुपोषित होने से बच्ची खड़ी भी नहीं हो पा रही है. बच्ची की मां एनीमिक है. एनआरसी में भर्ती बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है. बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए. इस केस में ऐसा नहीं है. इस वजह से मां को रिकवर होने का वक्त नहीं मिल पाया, इसका असर बच्चों की सेहत पर भी पड़ा है.

बरेली जिले में अभी भी 11,153 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. जहां शहरी क्षेत्रों में 31 प्रतिशत बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं, तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 41.2 प्रतिशत बच्चे वृद्धिबाधित कुपोषण के शिकार हैं. इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 19.9 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 21.4 प्रतिशत बच्चे अल्प-पोषण के शिकार हैं. कम वजन के कुपोषण में यह अंतर ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में 29.1 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 38.2 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं.

Intro:एंकर:-एक ही परिवार में छः लोगों की जिंदगी लीलने के बाद कुपोषण ने डेढ़ साल की बच्ची को भी अपनी चपेट में ले लिया बच्ची का वजन सामान्य से बहुत कम है ,जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती बच्ची जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है । आंगनबाड़ी केंद्र पर जांच के बाद बच्ची को एनआरसी में भर्ती कराया गया है ।


Body:Vo1:- फरीदपुर के गांव करपिया की रहने वाली बच्ची की माँ सुखदेवी ने बताया कि उसकी बच्ची जन्म से कुपोषित है । बच्ची के शरीर में जरूरी पोषक तत्वों की कमी होने की वजह से उसका पूरा शरीर सूखकर कांटा हो गया है। आंगनबाड़ी केंद्र पर जांच के बाद आरबीएसके की टीम ने बच्ची को जिला अस्पताल के पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया ।


Vo2:-बच्ची की मां सुखदेवी ने बताया कि 12 भाई - बहनों में बच्ची जोती सबसे छोटी है, कुपोषण से ही छ : भाई - बहनों की हो चुकी है मौत बच्ची की मां जोती ने बताया ने कि बहुत कम उम्र में ही उसकी शादी हो गई । परिवार की माली हालत बहुत खराब है , मजदूरी और तीन बीघे खेत से परिवार पल रहा है । जन्मे बच्चों में अब तक छः की मौत हो चुकी है । ज्यादातर बच्चे जन्म के कुछ महीनों के अंदर ही मौत के मुंह में समा गए ।


बाइट:-सुखदेवी माँ


 Vo3:-डॉक्टरों की मानें तो महिला खुद भी एनीमिक है इस वजह से गर्भ में बच्चों को पर्याप्त पोषण न मिल पाने से वह जन्म से ही कुपोषण की चपेट में आ जाते होंगे । जन्म के बाद से ही वह अक्सर बीमार रहती है , बीमारी की समझ न होने के कारण परिवार अब तक झोलाछाप की दवा बच्ची को खिलाता रहा । एनआरसी की डाइटीशियन की मानें तो आमतौर पर डेढ़ साल के बच्चे चलने - फिरने में सक्षम होते हैं , मगर जन्म से ही कुपोषित होने से बच्ची खड़ी भी नहीं हो पा रही । बच्ची की मां एनीमिक है । बच्चों के जन्म में कम समय अंतराल से न तो बच्चों को पोषण मिल पाता है न मां को रिकवर होने का समय । एनआरसी में भर्ती बच्ची की हालत में सुधार हो रहा है ।बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतराल होना चाहिए । इस केस में ऐसा नहीं है । इस वजह से मां को रिकवर होने का वक्त नहीं मिल पाता । इसका असर बच्चों की सेहत पर भी पड़ा है ।

बाईट:- डॉ रोज़ी ज़ैदी डायटीशियन




Conclusion:Fvo:-प्राथमिक तौर पर जब हम शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विभाजन को आधार बनाकर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (चक्र-4) का विश्लेषण करते हैं, तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषण और अल्प-पोषण की स्थिति में अंतर है.

शहरी क्षेत्रों में 31 प्रतिशत बच्चे ठिगनेपन के शिकार हैं , तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में 41 . 2 प्रतिशत बच्चे वृद्धिबाधित कुपोषण के शिकार हैं . इसी तरह अल्प - पोषण में भी थोड़ा अंतर दिखाई देता है . शहरी क्षेत्रों में 19 . 9 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 21 . 4 प्रतिशत बच्चे अल्प - पोषण के शिकार हैं . कम वज़न के कुपोषण में यह अंतर बड़ा है . शहरी क्षेत्रों में 29 . 1 प्रतिशत तो ग्रामीण क्षेत्रों में 38 . 2 प्रतिशत बच्चे कम वज़न के हैं।


रंजीत शर्मा।

9536666643

ईटीवी भारत,बरेली।

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