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जानिए क्या है कांवड़ियों की राम प्यारी, मंदिर परिसर में जाने से पहले ही प्रशासन करा लेता है जमा - बाराबंकी न्यूज

बाराबंकी के पौराणिक लोधेश्वर धाम में महाशिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में कांवड़िये दर्शन के लिए आते हैं. कांवड़ियों के पास खूबसूरत कांवड़, गंगाजल के साथ विशेष रूप से तैयार की गई लाठी होती है, जिसे राम प्यारी कहा जाता है.

दर्शन के लिए जाते कांवड़ियां.
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Published : Mar 4, 2019, 9:51 AM IST


बाराबंकी :महाशिवरात्रि के मौके पर बाराबंकी के पौराणिक लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक के लिए आने वाले कांवड़ियों के पास खूबसूरत कांवड़ और गंगाजल के साथ एक राम प्यारी भी होती है. चौक गए न, जी हां सही सुना आपने रामप्यारी. कांवड़ियों के हाथ में विशेष रूप से तैयार की गई लाठी होती है, जिसे राम प्यारी कहा जाता है.

दर्शन के लिए जाते कांवड़ियां.


कुछ वर्षों तक कावड़ियें अपनी इस रामप्यारी को मंदिर तक ले जाते थे, लेकिन पिछले चार वर्षों से इसे अपने साथ ले जाने की इजाजत नहींहै.कोई भी कांवड़िया इसके साथ मंदिर परिसर में तो नहीं जा रहा, इसको लेकर पुलिस पूरी तरह चौकन्नी रहती है.

पचासों कोस दूर उरई, कन्नौज, बिठूर, फिरोजाबाद, जालौन, अलीगढ़, कानपुर और उन्नाव से पैदल चलकर कांवड़िये इसी राम प्यारी का सहारा लेकर भगवान भोले के दरबार पहुंचते हैं. कहीं थकते हैतो राम प्यारी का सहारा, रास्ते में कांटे और पत्थर मिले उन्हें भी इसी से हटाया जाता है.

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रास्ते में जंगली जीव दिखे तो फिर राम प्यारी भगाने में मददगार होती है. इसी के सहारे ये कांवड़िये पूरा सफर तय करते हैं. कुछ वर्षों तक तो मंदिर परिसर तक इस रामप्यारी को भी कांवड़िये अपने साथ ले जाते रहें, लेकिन तकरीबन पांच वर्ष पहले मेला परिसर में प्रशासनिक अव्यवस्था देख कांवड़िये बिगड़ गए और उन्होंने जमकर बवाल किया.

बवाल में कांवड़ियों ने इस रामप्यारी का जमकर प्रयोग किया. उसके बाद प्रशासन ने इस लाठी को जमा कराना शुरू कर दिया. प्रशासन ने महादेवा मंदिर से तकरीबन 3 सौ मीटर पहले बने बोहनिया तालाब पर एक कैम्प बनाया, जहां ये रामप्यारी जमा कर ली जाती है. इसके लिए बाकायदा कांवड़ियों को टोकन दिया जाता है. जलाभिषेक करके आने के बाद टोकन देने पर उनकी रामप्यारी को वापस कर दिया जाता है.


बाराबंकी :महाशिवरात्रि के मौके पर बाराबंकी के पौराणिक लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक के लिए आने वाले कांवड़ियों के पास खूबसूरत कांवड़ और गंगाजल के साथ एक राम प्यारी भी होती है. चौक गए न, जी हां सही सुना आपने रामप्यारी. कांवड़ियों के हाथ में विशेष रूप से तैयार की गई लाठी होती है, जिसे राम प्यारी कहा जाता है.

दर्शन के लिए जाते कांवड़ियां.


कुछ वर्षों तक कावड़ियें अपनी इस रामप्यारी को मंदिर तक ले जाते थे, लेकिन पिछले चार वर्षों से इसे अपने साथ ले जाने की इजाजत नहींहै.कोई भी कांवड़िया इसके साथ मंदिर परिसर में तो नहीं जा रहा, इसको लेकर पुलिस पूरी तरह चौकन्नी रहती है.

पचासों कोस दूर उरई, कन्नौज, बिठूर, फिरोजाबाद, जालौन, अलीगढ़, कानपुर और उन्नाव से पैदल चलकर कांवड़िये इसी राम प्यारी का सहारा लेकर भगवान भोले के दरबार पहुंचते हैं. कहीं थकते हैतो राम प्यारी का सहारा, रास्ते में कांटे और पत्थर मिले उन्हें भी इसी से हटाया जाता है.

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रास्ते में जंगली जीव दिखे तो फिर राम प्यारी भगाने में मददगार होती है. इसी के सहारे ये कांवड़िये पूरा सफर तय करते हैं. कुछ वर्षों तक तो मंदिर परिसर तक इस रामप्यारी को भी कांवड़िये अपने साथ ले जाते रहें, लेकिन तकरीबन पांच वर्ष पहले मेला परिसर में प्रशासनिक अव्यवस्था देख कांवड़िये बिगड़ गए और उन्होंने जमकर बवाल किया.

बवाल में कांवड़ियों ने इस रामप्यारी का जमकर प्रयोग किया. उसके बाद प्रशासन ने इस लाठी को जमा कराना शुरू कर दिया. प्रशासन ने महादेवा मंदिर से तकरीबन 3 सौ मीटर पहले बने बोहनिया तालाब पर एक कैम्प बनाया, जहां ये रामप्यारी जमा कर ली जाती है. इसके लिए बाकायदा कांवड़ियों को टोकन दिया जाता है. जलाभिषेक करके आने के बाद टोकन देने पर उनकी रामप्यारी को वापस कर दिया जाता है.

Intro:बाराबंकी , 03 मार्च । महाशिवरात्रि के मौके पर यहां के पौराणिक लोधेश्वर धाम में जलाभिषेक करने आने वाले कांवड़ियों के पास खूबसूरत कांवड़ और गंगाजल के साथ एक राम प्यारी भी होती है । चौक गए ना जी हां सही सुना आपने रामप्यारी । कुछ वर्षों तक कावड़िये अपनी इस रामप्यारी को मंदिर तक ले जाते थे लेकिन पिछले चार वर्षों से रामप्यारी को अपने साथ मंदिर तक ले जाने की इजाजत नही है । कोई भी कांवड़िया राम प्यारी के साथ अंदर तक तो नही जा रहा इसको लेकर पुलिस पूरी तरह चौकन्नी रहती है ।


Body:कांधे पर कांवड़ लेकर निकले ये शिवभक्त यहां के महादेवा स्थित लोधेश्वर धाम जा रहे हैं । कांवड़ियों के हाथ मे एक लाठी भी होती है । विशेष ढंग से तैयार की गई इसी लाठी को राम प्यारी बोला जाता है । पचासों कोस दूर उरई, कन्नौज, बिठूर, फिरोजाबाद,जालौन अलीगढ़,कानपुर और उन्नाव से पैदल चलकर कांवड़िये इसी राम प्यारी का सहारा लेकर भगवान भोले के दरबार पहुंचते हैं । कहीं थके तो राम प्यारी का सहारा लिया, रास्ते मे कांटे और पत्थर मिले उन्हें भी इसी रामप्यारी से हटाया । अगर जंगली जीव दिखे तो फिर रामप्यारी का प्रयोग उन्हें भगाने में मददगार हुई । इसी के सहारे ये कांवड़िये कब घर से चले और कब भोले शंकर के दरबार पहुंच गए इन्हें पता ही नही चलता । कुछ वर्षों तक तो मंदिर परिसर तक इस रामप्यारी को भी कांवड़िये अपने साथ ले जाते रहे लेकिन तकरीबन पांच वर्ष पहले मेला परिसर में प्रशासनिक अव्यवस्था देख कांवड़िये बिगड़ गए और उन्होंने जमकर बवाल किया । बवाल में कांवड़ियों ने इस रामप्यारी का जमकर प्रयोग किया । बस उसके बाद प्रशासन ने इस लाठी को जमा कराना शुरू कर दिया । प्रशासन ने महादेवा मंदिर से तकरीबन 3 सौ मीटर पहले बने बोहनिया तालाब पर एक कैम्प बनाया जहां ये रामप्यारी जमा कर ली जाती है । इसके लिए बाकायदा कांवड़ियों को टोकन दिया जाता है । जलाभिषेक करके आने के बाद टोकन देने पर उनकी रामप्यारी को वापस कर दिया जाता है ।
बाईट- कुलदीप, रामप्यारी जमा करने वाला कर्मचारी
बाईट- आरएस गौतम , एडिशनल एसपी


Conclusion:रिपोर्ट-अलीम शेख बाराबंकी
9839421515
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