बाराबंकी: आपराधिक प्रवृत्ति में सुधार करने और रोजगारपरक बनाने के लिए सूबे की जेलों में निरुद्ध बंदियों को हुनरमंद बनाया जा रहा है. कहीं कम्प्यूटर सिखाया जा रहा है तो कहीं सिलाई. कहीं मेकैनिक की ट्रेनिंग दी जा रही है तो कहीं कारपेंटरी की ट्रेनिंग. यही नहीं अध्यात्म और योगा के जरिए भी उनमें आपराधिक सुधार की भावना जगाई जा रही है. लेकिन, बाराबंकी जेल प्रशासन ने एक नई पहल की है. यहां के जेल अधीक्षक ने यहां के बंदियों को स्ट्राबेरी की खेती में पारंगत किया है. इन बंदियों ने अपनी मेहनत और लगन से स्ट्राबेरी की फसल से पूरे परिसर को महका दिया है.
कारागार में निरुद्ध बंदी इन दिनों स्ट्राबेरी की फसल उगा रहे हैं. दरअसल, बंदियों में सुधार और उन्हें रोजगारपरक बनाने की दिशा में चलाई जा रही शासन की योजना के तहत जेल अधीक्षक ने कुछ अलग करने की ठानी और यहां उन्नत खेती की सम्भावना देखी. जेल अधीक्षक ने स्टडी किया और कुछ संस्थाओं से सम्पर्क कर उन्होंने अपने बंदियों को स्ट्राबेरी की खेती में पारंगत करने का फैसला किया. हिमाचल प्रदेश से बीज मंगवाए और 35 बंदियों को खेती की ट्रेनिंग दिलाई. बंदियों की मेहनत और लगन से आज उनकी फसल लहलहा रही है. जेल प्रशासन की इस पहल को लेकर बंदियों में खासा उत्साह है.
वैसे तो स्ट्राबेरी पहाड़ी इलाकों में उगाई जाने वाली खेती है. लेकिन, ठंड के महीने में मैदानी इलाकों में भी इसकी जबरदस्त खेती की जा सकती है. जेल अधीक्षक और जेलर के निर्देशन में बंदियों ने एक बीघे खेत में बढ़िया बड तैयार किए और अक्टूबर में खेती शुरू की. जेल की गौशाला में ही तैयार की गई जैविक खाद का प्रयोग किया गया. कीटनाशक के रूप में जेल में ही तैयार मैटेरियल का प्रयोग किया गया. नतीजा ये हुआ कि महज ढाई महीने में ही बेहतरीन फल आ गए.
अभी स्ट्राबेरी की खेती को प्रायोगिक रूप से शुरू किया गया है. लेकिन, आगे इसकी व्यावसायिक खेती भी की जाएगी. बाजार में इन बंदियों के हाथों उगाई गई स्ट्राबेरी को बेचा जाएगा. उससे होने वाली आमदनी को जेल की कोऑपरेटिव संस्था में जमा किया जाएगा. ये रकम बंदियों के कल्याण पर खर्च की जाएगी.
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वैसे तो बाराबंकी जेल में 1600 बंदी निरुद्ध हैं. इसमें स्ट्राबेरी की खेती के लिए 35 बंदियों का चयन किया गया. ये वो बंदी हैं जो आजीवन कारावास और 10 वर्ष या उससे ज्यादा की सजा काट रहे हैं. शासन की मंशा है कि जेलों में निरुद्ध बंदियों में सुधार की भावना पैदा करने के साथ-साथ उनको रोजगारपरक बनाकर मुख्यधारा से जोड़ा जाए, ताकि जब वे जेल से बाहर जाएं तो वे सामान्य जिंदगी बिताते हुए अपना और अपने परिवार का भरण पोषण आसानी से कर सकें.