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बाराबंकी: कटान की बलि चढ़ रहे गरीबों के घर और मकान, प्रशासन के इंतजाम नाकाफी

घाघरा की कटान और बाढ़ के कारण बाराबंकी जिले के तटीय क्षेत्रों के गांवों की स्थिति काफी विकट है. यह स्थिति धीरे-धीरे और भी भयावह होती जा रही है. प्रशासनिक तंत्र समय यदि रहते यदि इस पर विचार नहीं करता है, तो ग्रामीणों की स्थिति आने वाले समय में और भी प्रतिकूल होती जाएगी.

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Published : Sep 23, 2019, 9:43 PM IST

नदी ने किया बेसहारा.

बाराबंकी: जिले में घाघरा नदी के तटीय इलाकों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. घाघरा के कटान की वजह से जिले के कई गांवों का अस्तित्व समाप्त हो गया है. जिले का टेपरा गांव भी उन्हीं गांवों में से है, जहां सबसे ज्यादा तबाही हुई है. लोगों के घर खेती और फसलें घाघरा नदी के प्रकोप की भेंट चढ़ गई हैं. वहीं प्रशासन द्वारा दी जाने वाली सहायता पर ग्रामीण निर्भर हैं. चारों तरफ पानी लग जाने के कारण बीमारियां भी फैल रही है. छोटे-छोटे बच्चे बाढ़ के खतरे से अनजान किनारों पर टहल रहे हैं.

नदी ने किया बेसहारा.

बाराबंकी जिले का टेपरा गांव इस वक्त घाघरा की कटान से प्रभावित गांवों में से एक है. यहां पर लोगों के घर, मकान, खेत, खलिहान और फसलें बर्बाद हो चुकी हैं. नदी का बहाव इतना तेज है कि कुछ भी अपने आगोश में लेने को आतुर है. डरे सहमे ग्रामीण बैठकर अपनी बर्बादी का मंजर देख रहे हैं. वहीं सरकारी दावे सिर्फ सरकारी ही साबित हो रहे हैं. ग्रामीणों को जिस लिहाज से सहायता मिलनी चाहिए उतनी सहायता पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच रही है, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश भी है.

इसे भी पढ़ें- कुशीनगर: बाढ़ की समस्या बरकरार, विभाग का बचाव कार्य जारी

बाढ़ पीड़ित गीता देवी ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिला उनका दो मकान बह चुका है. उनके दोनों बेटों के मकान बह जाने से रहने के लिए छत तक नहीं है. खिड़की और दरवाजा उन्होंने निकाल लिया है. जो मकान उनके पति ने अपनी मेहनत से बनाया था वह भी आधा बह चुका है. खाने को जो कुछ थोड़ा बहुत मिला है, वह भी नाकाफी है.

बाराबंकी: कई गांवों में बाढ़ का साया, जलभराव से जनजीवन अस्त-व्यस्त

वहीं अपर जिलाधिकारी संदीप गुप्ता का कहना है कि राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है. उन्होंने कहा कि घाघरा खतरे के निशान से नीचे है, लेकिन यह बात सच है कि जब घाघरा में पानी कम होता है, तो कटान तेज हो जाती है. पानी कम होने के बावजूद भी अभी भी 28 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं, और पानी निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है. बाढ़ से कटे हुए घरों को चिन्हित कर जिन परिवारों के खेत खलिहान और फसलें बर्बाद हुई हैं, उन्हें उस लिहाज से उचित मुआवजा दिए जाने की योजना है. निश्चित रूप से लोगों का नुकसान हुआ है और प्रशासन उनकी पूरी मदद कर रहा है और आगे भी करेगा.

बाराबंकी: जिले में घाघरा नदी के तटीय इलाकों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. घाघरा के कटान की वजह से जिले के कई गांवों का अस्तित्व समाप्त हो गया है. जिले का टेपरा गांव भी उन्हीं गांवों में से है, जहां सबसे ज्यादा तबाही हुई है. लोगों के घर खेती और फसलें घाघरा नदी के प्रकोप की भेंट चढ़ गई हैं. वहीं प्रशासन द्वारा दी जाने वाली सहायता पर ग्रामीण निर्भर हैं. चारों तरफ पानी लग जाने के कारण बीमारियां भी फैल रही है. छोटे-छोटे बच्चे बाढ़ के खतरे से अनजान किनारों पर टहल रहे हैं.

नदी ने किया बेसहारा.

बाराबंकी जिले का टेपरा गांव इस वक्त घाघरा की कटान से प्रभावित गांवों में से एक है. यहां पर लोगों के घर, मकान, खेत, खलिहान और फसलें बर्बाद हो चुकी हैं. नदी का बहाव इतना तेज है कि कुछ भी अपने आगोश में लेने को आतुर है. डरे सहमे ग्रामीण बैठकर अपनी बर्बादी का मंजर देख रहे हैं. वहीं सरकारी दावे सिर्फ सरकारी ही साबित हो रहे हैं. ग्रामीणों को जिस लिहाज से सहायता मिलनी चाहिए उतनी सहायता पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच रही है, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश भी है.

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बाढ़ पीड़ित गीता देवी ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिला उनका दो मकान बह चुका है. उनके दोनों बेटों के मकान बह जाने से रहने के लिए छत तक नहीं है. खिड़की और दरवाजा उन्होंने निकाल लिया है. जो मकान उनके पति ने अपनी मेहनत से बनाया था वह भी आधा बह चुका है. खाने को जो कुछ थोड़ा बहुत मिला है, वह भी नाकाफी है.

बाराबंकी: कई गांवों में बाढ़ का साया, जलभराव से जनजीवन अस्त-व्यस्त

वहीं अपर जिलाधिकारी संदीप गुप्ता का कहना है कि राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है. उन्होंने कहा कि घाघरा खतरे के निशान से नीचे है, लेकिन यह बात सच है कि जब घाघरा में पानी कम होता है, तो कटान तेज हो जाती है. पानी कम होने के बावजूद भी अभी भी 28 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं, और पानी निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है. बाढ़ से कटे हुए घरों को चिन्हित कर जिन परिवारों के खेत खलिहान और फसलें बर्बाद हुई हैं, उन्हें उस लिहाज से उचित मुआवजा दिए जाने की योजना है. निश्चित रूप से लोगों का नुकसान हुआ है और प्रशासन उनकी पूरी मदद कर रहा है और आगे भी करेगा.

Intro:बाराबंकी, 23 सितंबर। इस वक्त जिले में भयानक रूप से बाढ़ का प्रकोप, घाघरा नदी के तटीय क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. घाघरा नदी उत्तर प्रदेश के जिन क्षेत्रों से बहती है ,सटे हुए गांवों में तबाही का मंजर भी देखने को हर साल मिलता है . घाघरा का स्वभाव है कटान करना, और यही वजह है कि जिले के तमाम गांवों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया है. टेपरा गांव भी उन्हीं गांवों में से है, जहां सबसे ज्यादा तबाही हुई है. लोगों के घर खेती और फसलें घाघरा नदी के प्रकोप की भेंट चढ़ गई है. प्रशासन द्वारा दी जाने वाली सहायता पर ग्रामीण निर्भर है. चारों तरफ पानी लग जाने के कारण बीमारियां भी फैल रही है. छोटे-छोटे बच्चे बाढ़ के खतरे से अनजान किनारों पर टहल रहे हैं.


Body:बाराबंकी जिले का टेपरा गांव इस वक्त घाघरा की कटान से प्रभावित गांव में से एक है. जहां पर लोगों के घर- मकान ,खेत - खलिहान और फसलें बर्बाद हो चुकी हैं. घाघरा नदी के कटान में बह गई हैं. नदी का बहाव इतना तेज है कि कुछ भी अपने आगोश में लेने को आतुर है . डरे सहमे ग्रामीण बेबसी में बैठ कर अपनी बर्बादी का मंजर देख रहे हैं. मायूसी इस कदर छा गई है कि लोग अपनी बेबसी भी बयान नहीं कर पा रहे हैं. सरकारी दावे तो बस सरकारी ही साबित हो रहे हैं. जिस लिहाज से उन्हें सहायता मिलनी चाहिए पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंच रही है. लगातार लोगों का आना जाना तो हो रहा है . लेकिन सहायता ठीक प्रकार से नहीं मिल रही है जिससे ग्रामीणों में आक्रोश भी हैं.
छोटे-छोटे बच्चे घाघरा के किनारों पर अपने मकान के पास खड़े हैं. बच्चों को यह भी नहीं मालूम है कि अगले पल क्या होगा. उनका जो बचा हुआ मकान जिसमें वह रह रहे हैं आने वाले दिनों में बच्चे का भी या नहीं इसका अंदाजा नहीं है. बड़े-बड़े दावे लगातार किए जाते हैं लेकिन घाघरा की कटान से प्रभावित इन परिवारों के लिए स्थाई व्यवस्था आखिर कब होगी.
बहुत आग्रह करने पर गीता देवी ने बताया कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिला उनका दो मकान बह चुका है, उनके दोनों बेटे के मकान बह जाने से रहने के भी लाले पड़ गए हैं. खिड़की और दरवाजा उन्होंने निकाल लिया है. जो मकान उनके पति ने अपनी मेहनत से बनाया था वह भी आधा बह चुका है. खाने को जो कुछ थोड़ा बहुत मिला है वह भी नाकाफी है.
अपर जिला अधिकारी संदीप गुप्ता का कहना है कि राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है .और घाघरा खतरे के निशान से ऊपर है. लेकिन यह बात सही है कि जब घाघरा में पानी कम होता है, तो कटान तेज हो जाती है. पानी कम होने के बावजूद भी अभी भी 28 गांव प्रभावित है, और पानी निकालने का कोई व्यवस्था नहीं है ,यह पानी धीरे-धीरे ही कम होगा. बाढ़ से कटे हुए घरों को चिन्हित करके, जिन परिवारों के खेत खलिहान और फसलें बर्बाद हुई हैं, उन्हें उस लिहाज से उचित मुआवजा दिए जाने की योजना है. निश्चित रूप से लोगों का नुकसान हुआ है ,और प्रशासन उनकी पूरी मदद कर रहा है और आगे भी करेगा.


Conclusion:घाघरा की कटान और बाढ़ के कारण तराई क्षेत्रों के गांव की स्थिति काफी विकट है, और धीरे-धीरे यह और भयावह होती जा रही है. प्रशासनिक तंत्र समय रहते यदि इसपर विचार नहीं करता है ,तो ग्रामीणों की स्थिति आने वाले समय में और भी प्रतिकूल होती जाएगी. ऐसे में आवश्यकता है स्थाई निदान और व्यवस्था की. जिस प्रकार से घाघरा नदी ने अपना क्षेत्र बढ़ाया है ,उस प्रकार से लग रहा है कि, इन ग्रामीणों का आने वाले समय में यहां रहना ठीक नहीं होगा, जिसका यही विकल्प है कि इन्हें कहीं और बसाया जाए.


bite -

1- गीता देवी , बाढ़ एवं कटान से पीड़ित, टेपरां गांव, सिरौलीगौसपुर तहसील, बाराबंकी.

2- संदीप गुप्ता ,अपर जिलाधिकारी ,बाराबंकी

रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907.
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