ETV Bharat / state

पांडवकालीन हैं लोधेश्वर महादेव, जिनकी चारों युगों में हुई है पूजा - puja on sawan

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर की काफी मान्यता है. कहा जाता है कि सतयुग में भगवान वाराह ने महादेव की इसी शिवलिंग स्वरूप की पूजा की थी, जिसके कारण लोगों की इस मंदिर के प्रति काफी मान्यताएं हैं.

महाभारत कालीन है प्राचीन लोधेश्वर महादेव मंदिर.
author img

By

Published : Jul 29, 2019, 4:15 PM IST

बाराबंकीः जिले में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर की काफी मान्यता है. सावन में भगवान महादेव की पूजा करने के लिए महीनों भर से यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है.

महाभारत कालीन है प्राचीन लोधेश्वर महादेव मंदिर.

जानें क्या है लोधेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता
सतयुग में भगवान वाराह ने महादेव के इस शिवलिंग स्वरूप की पूजा की थी. द्वापर में भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश ने भगवान शिव के इस लिंग स्वरूप की आराधना की थी.

लोधेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास-
कलयुग में खेती कर रहे लोधेराम अवस्थी से सिंचाई के दौरान फावड़ा चलाने से शिवलिंग पर प्रहार हुआ, जिससे रक्त की धार बहने लगी. लोगों ने सोचा की घाघरा के समीप होने के कारण कोई जलीय जीव है, लेकिन बाद में दूध की धार बहने लगी और लोधेराम अवस्थी को भगवान शिव ने दर्शन दिया. तभी से इस शिवलिंग को लोधेश्वर महादेव शिवलिंग के नाम से जाना जाता है.

लोधेश्वर महादेव मंदिर की खासियत-
शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. यहां पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से भक्तों का आगमन होता है. सावन के महीने और शिवरात्रि के पवित्र दिन में यहां पर भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है.

बाराबंकीः जिले में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर की काफी मान्यता है. सावन में भगवान महादेव की पूजा करने के लिए महीनों भर से यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है.

महाभारत कालीन है प्राचीन लोधेश्वर महादेव मंदिर.

जानें क्या है लोधेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता
सतयुग में भगवान वाराह ने महादेव के इस शिवलिंग स्वरूप की पूजा की थी. द्वापर में भगवान श्री राम के पुत्र लव और कुश ने भगवान शिव के इस लिंग स्वरूप की आराधना की थी.

लोधेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास-
कलयुग में खेती कर रहे लोधेराम अवस्थी से सिंचाई के दौरान फावड़ा चलाने से शिवलिंग पर प्रहार हुआ, जिससे रक्त की धार बहने लगी. लोगों ने सोचा की घाघरा के समीप होने के कारण कोई जलीय जीव है, लेकिन बाद में दूध की धार बहने लगी और लोधेराम अवस्थी को भगवान शिव ने दर्शन दिया. तभी से इस शिवलिंग को लोधेश्वर महादेव शिवलिंग के नाम से जाना जाता है.

लोधेश्वर महादेव मंदिर की खासियत-
शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. यहां पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से भक्तों का आगमन होता है. सावन के महीने और शिवरात्रि के पवित्र दिन में यहां पर भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है.

Intro: बाराबंकी, 29 जुलाई । पौराणिक लोधेश्वर महादेव मंदिर जिसे चारों युगों में गया है पूजा. सतयुग में भगवान वाराह द्वारा, त्रेता युग में लव कुश द्वारा, द्वापर युग में पांडवों द्वारा और कलयुग में लोधी राम अवस्थी के द्वारा पूजा गया ,और तभी से लोधेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. साल में 4 बार यहां पर मेला लगता है. सावन में भगवान महादेव की पूजा करने का विशेष महत्व है , महीने भर यहां पर भक्तों का ताता लगा रहता है. घाघरा नदी के जल से भगवान महादेव का जलाभिषेक होता है तभी पूजा संपूर्ण मानी जाती है.


Body:बाराबंकी जिला भगवान वाराह के कारण जाना जाता है, और उन्हीं के नाम पर इसका नाम बाराबंकी है. सतयुग में भगवान वाराह ने महादेव के इसी शिवलिंग स्वरूप की पूजा की थी. द्वापर में भगवान श्री राम के पुत्र लव कुश द्वारा भगवान शिव के इस लिंग स्वरूप की आराधना की गई थी. वही द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भगवान महादेव की अर्चना की गई.
कलयुग में अपनी खेती कर रहे लोधेराम अवस्थी के द्वारा सिंचाई के दौरान फावड़ा चलाने से शिवलिंग पर प्रहार हुआ,जिससे रक्त की धार बहने लगी.लोगों ने सोचा की घाघरा के समीप होने के कारण कोई जलीय जीव है, लेकिन बाद में उस स्थान से दूध की धार बहने लगी ,और लोधेराम अवस्थी को भगवान शिव ने दर्शन दिया.तभी से इस शिवलिंग को लोधेश्वर महादेव शिवलिंग के नाम से जाना जाता है.
भक्तों की मानें तो इस शिवलिंग के स्पर्श मात्र से ही उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. यहां पर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से भक्तों का आगमन होता है. सावन के महीने और शिवरात्रि के पवित्र दिन में यहां पर भक्तों का हुजूम देखने को मिलता है.
इस शिवलिंग का संबंध पारिजात वृक्ष और कुंतेश्वर महादेव से भी है. माना जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इसी शिवलिंग की पूजा की थी. भगवान श्री कृष्ण और उनके अनन्य अर्जुन के द्वारा इंद्र के नंदनवन से पारिजात वृक्ष की एक शाखा लाकर लगाई गई थी, जिसमें सुनहरे रंग के पुष्प होते हैं और उसी से माता कुंती के द्वारा महादेव की पूजा की गई.


Conclusion: भारत आस्था और भक्ति भाव वाला देश है यहां पर देवताओं ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है. उत्तर प्रदेश का यह बाराबंकी जिला दैवीय आशीर्वाद और उपस्थिति से परिपूर्ण है. उन्हीं में से एक भगवान लोधेश्वर महादेव का यह शिवलिंग भक्तों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है. पौराणिक महत्व होने के कारण यहां पर भक्त अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने के लिए आते ही रहते हैं. सावन के इस पवित्र महीने में भगवान भोलेनाथ सभी का कल्याण और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.



bite

1- निलेश कुमार श्रीवास्तव ,आईआईटी कानपुर
2- जानवी सक्सेना, छात्रा लखनऊ
3- अमित कुमार सिन्हा , कानपुर
4- सरोज सक्सेना, बाराबंकी.
5- स्वामी आदित्यनाथ तिवारी, पुजारी, लोधेश्वर महादेव मंदिर, बाराबंकी.



रिपोर्ट-  आलोक कुमार शुक्ला , रिपोर्टर बाराबंकी, 96284 76907
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.