बाराबंकी: जिले में बढ़ती बाल भिक्षावृत्ति की प्रव्रत्ति पर लगाम लगाने के लिए बाराबंकी पुलिस ने विशेष अभियान शुरू किया है. इसके तहत एक विशेष टीम रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, सार्वजनिक चौराहों, मजार, मस्जिद और मंदिरों के आसपास जाकर भिक्षा मांगने वाले छोटे बच्चों को इससे मुक्त करा रही है. शासन की मंशा है कि इन बच्चों को इस बुराई से दूर कर उन्हें मुख्य धारा में लाया जाए.
क्या करती है टीम
ये टीम घूमघूम कर भिक्षा मांग रहे ऐसे बच्चों को तलाशती है और फिर उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है. भिक्षावृत्ति में लगे इन बच्चों के अभिभावकों को बुलाकर उन्हें समझाया जाता है. उनकी समस्याओं का समाधान किया जाता है. अगर बच्चा अनाथ है तो उसे बाल सुधार गृह में भेज दिया जाता है.
टीम में होते हैं ये सदस्य
स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट, एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट और चाइल्ड लाइन के सदस्यों से एक स्पेशल टीम का गठन किया गया है, जो लगातार अभियान चला रही है. बाल भिक्षावृत्ति की रोकथाम हेतु कानूनी प्राविधान बाल भिक्षावृत्ति की रोकथाम के लिए कानून बनाये गए हैं.
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम 2015 एवं किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) आदर्श नियम 2016. इस अधिनियम की धारा 2(8) के मुताबिक, भीख मांगना से अभिप्राय है कि किसी लोक स्थान पर भिक्षा की याचना करना या उसे प्राप्त करना बाल. भिक्षावृत्ति की रोकथाम के लिए जिलों में बाल संरक्षण इकाई गठित की जाती हैं.
क्यों नहीं लग पा रही लगाम
जानकारों का मानना है कि कुछ जातियां ऐसी हैं, जिनका पेशा ही भीख मांगना है. घर के हर सदस्य यही काम करते हैं. लिहाजा बच्चे भी बचपन से ही इसमें लग जाते हैं. कहीं-कहीं कुछ अभिभावक अपने बच्चों से जानबूझकर भीख मंगवाते हैं. कुछ ऐसे भी मामले होते हैं, जिसमे गरीबी के चलते बच्चे इसमें लिप्त हो जाते हैं. शासन भीख मांगने वाले ऐसे बच्चों को इस बुराई से रोक कर उन्हें तमाम सुविधाएं देता है ताकि ये मुख्यधारा में आ सकें.
निश्चय ही बाल भिक्षावृत्ति किसी भी सभ्य समाज के लिए एक बदनुमा दाग है. इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए न केवल पुलिस और प्रशासन को बल्कि समाज के सभी वर्गों के लोगों को आगे आना होगा.