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मार्फिन तस्करों के गांव की बदली हवा, कभी कहलाता था मिनी दुबई

कभी मिनी दुबई के नाम से जाना जाने वाला बाराबंकी के टिकरा गांव के हालात बदलने लगे हैं. अफीम से मार्फीन बनाकर तस्करी करने वाले गांव के लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं. पुलिस की कोशिश रंग ला रही है.

टिकरा गांव के बदलने लगे हालात
टिकरा गांव के बदलने लगे हालात
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Published : Dec 28, 2020, 6:44 PM IST

बाराबंकी: उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के कई सूबों में चर्चित बाराबंकी का टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. तमाम लोग इसे मिनी दुबई के नाम से भी जानते हैं. दशकों पहले अफीम से मार्फीन बना कर तस्करी यहां की पहचान बन गई. गांव के युवा इस धंधे में लग गए, जिससे गांव बदनाम हो गया. यहां के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए पुलिस कप्तान ने नई मुहिम शुरू की है. पुलिस गांव में बदलाव की बयार लेकर आई है.

बदलाव की बयार से गांव के लोगों को काफी उम्मीदें हैं
तस्करी के मामले में कुख्यात था टिकरा
जैदपुर थाना क्षेत्र का टिकरा गांव अफीम और मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. हालांकि अब कुछ ही लोग हैं जो इस धंधे से जुड़े हैं, लेकिन गांव की पुरानी पहचान से यहां के बुजुर्ग और नवजवान आज भी शर्मसार होते हैं और गांव पर लगे इस दाग को धुलने की जद्दोजहद कर रहे हैं.सत्तर के दशक से शुरू हुई तस्करी

सत्तर के दशक में बाराबंकी जिले में पोस्ता की जबरदस्त खेती होती थी. इससे अफीम निकलती थी .टिकरा और आस-पास के गांवों के किसान भी पोस्ता की खेती करते थे. न जाने कहां से कुछ लोगों ने अफीम से मार्फीन बनाना सीख लिया और फिर यहां के तमाम लोगों ने इस गलत धंधे को अपना कारोबार बना लिया.

टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है
टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है
लोग कहने लगे मिनी दुबई

गांव के कुछ लोगों ने अफीम से मार्फीन बनाकर उसकी तस्करी शुरू कर दी. धीरे-धीरे यहां से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता,पंजाब, हरियाणा और पड़ोसी देश नेपाल तक मार्फीन पहुंचने लगी. तस्करों की आमद शुरू हुई तो धीरे-धीरे गांव चर्चित होने लगा. लोग इसे मिनी दुबई कहने लगे. एक जमाने मे मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था. कहा तो यहां तक जाता है कि उसी दौर में यहां के एक व्यक्ति ने हेलीकॉप्टर खरीदने का आवेदन तक कर दिया था, लेकिन अब हालात दूसरे हैं.

बदनामी के दाग से शर्मसार

गांव की पुरानी पहचान के चलते आज भी गांव के लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. मेहमान तक इस गांव में आने से कतराते हैं. जब तब यहां पुलिस की रेड होती है और कई बेकसूरों को भी उनका शिकार होना पड़ता है. तमाम लोग इस बदनामी के दाग से यहां से पलायन भी कर गए हैं.

टिकरा गांव से मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था
टिकरा गांव से मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था
मुख्यधारा से जुड़ेंगे टिकरा समेत आस-पास के गांव

पुलिस कप्तान ने टिकरा और आस-पास के कई गांवों चंदौली, मंगरवल, टेरा के हालात समझे और यहां बदलाव लाने की सोची. यहां की महिलाओं और युवाओं को इस दलदल से निकाल कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की ठानी है. पुलिस कप्तान ने यहां के निवासियों में देशप्रेम का गीत गाकर उनमें नए जोश का संचार कर उन्हें मुख्यधारा से जुड़ने का आवाहन किया.

गांव वालों को बदलाव से खासी उम्मीदें

पुलिस कप्तान द्वारा शुरू किए गए बदलाव की बयार से गांव के लोगों को काफी उम्मीदें हैं. इन्हें लगने लगा है कि गांव के कुछ लोगों द्वारा गांव पर लगाए गए बदनामी के दाग से उन्हें निजात मिल जाएगी और उन्हें गांव का नाम बताने में शर्मसार नहीं होना पड़ेगा. यहां के भटके हुए लोगों को रोजगार से जोड़कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की पुलिस कप्तान की यह मुहिम वाकई काबिले तारीफ है. अब देखने वाली बात यह होगी कि गांव के लोग खासकर युवा इस मुहिम से अपने आप को कितना जोड़ पाते हैं.

बाराबंकी: उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के कई सूबों में चर्चित बाराबंकी का टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. तमाम लोग इसे मिनी दुबई के नाम से भी जानते हैं. दशकों पहले अफीम से मार्फीन बना कर तस्करी यहां की पहचान बन गई. गांव के युवा इस धंधे में लग गए, जिससे गांव बदनाम हो गया. यहां के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए पुलिस कप्तान ने नई मुहिम शुरू की है. पुलिस गांव में बदलाव की बयार लेकर आई है.

बदलाव की बयार से गांव के लोगों को काफी उम्मीदें हैं
तस्करी के मामले में कुख्यात था टिकराजैदपुर थाना क्षेत्र का टिकरा गांव अफीम और मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. हालांकि अब कुछ ही लोग हैं जो इस धंधे से जुड़े हैं, लेकिन गांव की पुरानी पहचान से यहां के बुजुर्ग और नवजवान आज भी शर्मसार होते हैं और गांव पर लगे इस दाग को धुलने की जद्दोजहद कर रहे हैं.सत्तर के दशक से शुरू हुई तस्करी

सत्तर के दशक में बाराबंकी जिले में पोस्ता की जबरदस्त खेती होती थी. इससे अफीम निकलती थी .टिकरा और आस-पास के गांवों के किसान भी पोस्ता की खेती करते थे. न जाने कहां से कुछ लोगों ने अफीम से मार्फीन बनाना सीख लिया और फिर यहां के तमाम लोगों ने इस गलत धंधे को अपना कारोबार बना लिया.

टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है
टिकरा गांव मार्फीन तस्करी के लिए कुख्यात रहा है
लोग कहने लगे मिनी दुबई

गांव के कुछ लोगों ने अफीम से मार्फीन बनाकर उसकी तस्करी शुरू कर दी. धीरे-धीरे यहां से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता,पंजाब, हरियाणा और पड़ोसी देश नेपाल तक मार्फीन पहुंचने लगी. तस्करों की आमद शुरू हुई तो धीरे-धीरे गांव चर्चित होने लगा. लोग इसे मिनी दुबई कहने लगे. एक जमाने मे मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था. कहा तो यहां तक जाता है कि उसी दौर में यहां के एक व्यक्ति ने हेलीकॉप्टर खरीदने का आवेदन तक कर दिया था, लेकिन अब हालात दूसरे हैं.

बदनामी के दाग से शर्मसार

गांव की पुरानी पहचान के चलते आज भी गांव के लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. मेहमान तक इस गांव में आने से कतराते हैं. जब तब यहां पुलिस की रेड होती है और कई बेकसूरों को भी उनका शिकार होना पड़ता है. तमाम लोग इस बदनामी के दाग से यहां से पलायन भी कर गए हैं.

टिकरा गांव से मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था
टिकरा गांव से मार्फीन तस्करी का नेटवर्क यहीं से हैंडल होता था
मुख्यधारा से जुड़ेंगे टिकरा समेत आस-पास के गांव

पुलिस कप्तान ने टिकरा और आस-पास के कई गांवों चंदौली, मंगरवल, टेरा के हालात समझे और यहां बदलाव लाने की सोची. यहां की महिलाओं और युवाओं को इस दलदल से निकाल कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की ठानी है. पुलिस कप्तान ने यहां के निवासियों में देशप्रेम का गीत गाकर उनमें नए जोश का संचार कर उन्हें मुख्यधारा से जुड़ने का आवाहन किया.

गांव वालों को बदलाव से खासी उम्मीदें

पुलिस कप्तान द्वारा शुरू किए गए बदलाव की बयार से गांव के लोगों को काफी उम्मीदें हैं. इन्हें लगने लगा है कि गांव के कुछ लोगों द्वारा गांव पर लगाए गए बदनामी के दाग से उन्हें निजात मिल जाएगी और उन्हें गांव का नाम बताने में शर्मसार नहीं होना पड़ेगा. यहां के भटके हुए लोगों को रोजगार से जोड़कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की पुलिस कप्तान की यह मुहिम वाकई काबिले तारीफ है. अब देखने वाली बात यह होगी कि गांव के लोग खासकर युवा इस मुहिम से अपने आप को कितना जोड़ पाते हैं.

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