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वकालत छोड़कर शुरू की फूलों की खेती, आज किसानों के लिए रोल मॉडल हैं मुईनुद्दीन - Gladolius Cultivation in barabanki

यूपी के बाराबंकी में मुईनुद्दीन फूलों की खेती हर साल लाखों रुपया मुनाफा कमा रहे हैं. देवां ब्लॉक के दफेदारपुरवा में लगभग 25 बीघे में फूलों की खेती करने वाले मुईनुद्दीन को प्रधानमंत्री सम्मानित कर चुके हैं. आइए जानते हैं कि फूलों की खेती से कैसे मुनाफा कमाएं....

बाराबंकी में फूलों की खेती.
बाराबंकी में फूलों की खेती.
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Published : Dec 25, 2021, 3:31 PM IST

बाराबंकीः भले ही खेती को घाटे का सौदा कहा जाता हो लेकिन तकनीकों के जरिये खेती की जाए तो ये फायदे का सौदा साबित होती है. जिले के मुईनुद्दीन ने ये साबित किया है. मुईनुद्दीन फूलों की खेती से न केवल हर साल लाखों रुपया मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरणा बने हुए हैं. लीक से हटकर शुरू की गई खेती ने मुईनुद्दीन को कई बड़े पुरुस्कार भी दिलाये हैं. सीएम योगी से लगाकर पीएम मोदी तक मुईनुद्दीन के खेती के कायल हैं.

बाराबंकी में फूलों की खेती.



देवां ब्लॉक के दफेदारपुरवा के रहने वाले मुईनुद्दीन के उगाए रंग-बिरंगे फूलों की खूबसूरती राजधानी लखनऊ तक महसूस की जाती है. कानून की डिग्री लेने के बाद मुईनुद्दीन ने कुछ नया करने की ठानी और वकालत करने की बजाय खेती पर अपना ध्यान लगाया. परम्परागत खेती से हटकर उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया. शुरुआत में परिवार के लोगों ने मुईनुद्दीन के फैसले का विरोध किया लेकिन बाद में मान गए. इसके बाद अपनी मेहनत और लगन से मुईनुद्दीन साबित कर दिया कि खेती घाटे का सौदा नहीं है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मुईनुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2002 में सबसे पहले कच्चे एक बीघे में ग्लैडोलियस की खेती शुरू की और 15 हजार पौधे लगाए. चार से पांच महीनों के अंदर 40 से 45 हजार का मुनाफा हुआ तो हिम्मत और बढ़ गई. उन्होंने बताया कि आज 25 एकड़ में फूलों की खेती करते हैं.

मुईनुद्दीन ने बताया कि वह कई वर्षों तक ने ग्लैडोलियस की खेती की. उन्होंने बताया कि ग्लैडोलियस स्टिक लखनऊ और दिल्ली तक लेकर बेचने जाते थे. इस दौरान उन्हें कई बड़ी प्रदर्शनियों को देखने का मौका मिला और फूलों उगाने वाले कई एक्सपर्ट्स से मुलाकात हुई. इस दौरान उन्होंने जरबेरा फूल देखा और उसे उगाने का मन बनाया. मुईनुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2009 में उन्होंने हालैण्ड में उगाये जाने वाले जरबेरा की खेती करने का फैसला किया. विदेशी पौधा होने के चलते जरबेरा के लिए यहां का मौसम अनुकूल नहीं है. इसके लिए पॉली हाउस की आवश्यकता थी लिहाजा उन्होंने पॉली हाउस लगाया. मुईनुद्दीन ने बताया कि सूबे का उनका पहला पॉली हाउस था. क्लाइमेट अनुकूल न होने के बावजूद उनकी मेहनत रंग लाई और जरबेरा की फसल लहलहा उठी.

इसे भी पढ़ें-किसानों ने की शुरू की फूलों की खेती, परंपरागत फसलों से हुआ मोह भंग

गौरतलब है कि लीक से हटकर की गई फूलों की खेती ने न केवल मुईनुद्दीन को मुनाफा दिलाया बल्कि सम्मान भी मिला. मुईनुद्दीन को प्रधानमंत्री के हाथों इन्हें दो बार बेस्ट फार्मर का सम्मान मिल चुका है. इसके अलावा कई प्रदेशों की सरकारें भी इन्हें सम्मानित कर चुकी हैं.

मुईनुद्दीन की फूलों की खेती देखकर गांव के तमाम किसान भी प्रभावित हुए तो उन्होंने उन किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रेरित किया. आज मुईनुद्दीन की प्रेरणा से जिले के तमाम किसान फूलों की खेती कर हर साल लाखों कमा रहे हैं. आज हालात ये हैं कि सूबे में फूलों की खेती के मामले में बाराबंकी का खासा नाम है.

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बाराबंकीः भले ही खेती को घाटे का सौदा कहा जाता हो लेकिन तकनीकों के जरिये खेती की जाए तो ये फायदे का सौदा साबित होती है. जिले के मुईनुद्दीन ने ये साबित किया है. मुईनुद्दीन फूलों की खेती से न केवल हर साल लाखों रुपया मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि दूसरे किसानों को भी प्रेरणा बने हुए हैं. लीक से हटकर शुरू की गई खेती ने मुईनुद्दीन को कई बड़े पुरुस्कार भी दिलाये हैं. सीएम योगी से लगाकर पीएम मोदी तक मुईनुद्दीन के खेती के कायल हैं.

बाराबंकी में फूलों की खेती.



देवां ब्लॉक के दफेदारपुरवा के रहने वाले मुईनुद्दीन के उगाए रंग-बिरंगे फूलों की खूबसूरती राजधानी लखनऊ तक महसूस की जाती है. कानून की डिग्री लेने के बाद मुईनुद्दीन ने कुछ नया करने की ठानी और वकालत करने की बजाय खेती पर अपना ध्यान लगाया. परम्परागत खेती से हटकर उन्होंने फूलों की खेती करने का फैसला किया. शुरुआत में परिवार के लोगों ने मुईनुद्दीन के फैसले का विरोध किया लेकिन बाद में मान गए. इसके बाद अपनी मेहनत और लगन से मुईनुद्दीन साबित कर दिया कि खेती घाटे का सौदा नहीं है.

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए मुईनुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2002 में सबसे पहले कच्चे एक बीघे में ग्लैडोलियस की खेती शुरू की और 15 हजार पौधे लगाए. चार से पांच महीनों के अंदर 40 से 45 हजार का मुनाफा हुआ तो हिम्मत और बढ़ गई. उन्होंने बताया कि आज 25 एकड़ में फूलों की खेती करते हैं.

मुईनुद्दीन ने बताया कि वह कई वर्षों तक ने ग्लैडोलियस की खेती की. उन्होंने बताया कि ग्लैडोलियस स्टिक लखनऊ और दिल्ली तक लेकर बेचने जाते थे. इस दौरान उन्हें कई बड़ी प्रदर्शनियों को देखने का मौका मिला और फूलों उगाने वाले कई एक्सपर्ट्स से मुलाकात हुई. इस दौरान उन्होंने जरबेरा फूल देखा और उसे उगाने का मन बनाया. मुईनुद्दीन ने बताया कि वर्ष 2009 में उन्होंने हालैण्ड में उगाये जाने वाले जरबेरा की खेती करने का फैसला किया. विदेशी पौधा होने के चलते जरबेरा के लिए यहां का मौसम अनुकूल नहीं है. इसके लिए पॉली हाउस की आवश्यकता थी लिहाजा उन्होंने पॉली हाउस लगाया. मुईनुद्दीन ने बताया कि सूबे का उनका पहला पॉली हाउस था. क्लाइमेट अनुकूल न होने के बावजूद उनकी मेहनत रंग लाई और जरबेरा की फसल लहलहा उठी.

इसे भी पढ़ें-किसानों ने की शुरू की फूलों की खेती, परंपरागत फसलों से हुआ मोह भंग

गौरतलब है कि लीक से हटकर की गई फूलों की खेती ने न केवल मुईनुद्दीन को मुनाफा दिलाया बल्कि सम्मान भी मिला. मुईनुद्दीन को प्रधानमंत्री के हाथों इन्हें दो बार बेस्ट फार्मर का सम्मान मिल चुका है. इसके अलावा कई प्रदेशों की सरकारें भी इन्हें सम्मानित कर चुकी हैं.

मुईनुद्दीन की फूलों की खेती देखकर गांव के तमाम किसान भी प्रभावित हुए तो उन्होंने उन किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रेरित किया. आज मुईनुद्दीन की प्रेरणा से जिले के तमाम किसान फूलों की खेती कर हर साल लाखों कमा रहे हैं. आज हालात ये हैं कि सूबे में फूलों की खेती के मामले में बाराबंकी का खासा नाम है.

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