बाराबंकी: 'हरा सोना' यानी पिपरमिंट (मेंथा) की खेती के लिए बाराबंकी का सूबे ही नहीं, देश में खासा नाम है. पूरे भारत के उत्पादन का करीब 70 फीसदी मेंथा ऑयल का उत्पादन यहीं होता है. जिले में मेंथा ऑयल का करीब चार हजार करोड़ रुपये का सालाना निर्यात होता है. तीन दशकों से मेंथा की खेती कर यहां के किसान खासा लाभ ले रहे हैं, लेकिन इस बार हुई असमय बारिश ने इनकी फसल बर्बाद कर दी.
एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में होती है खेती
तकरीबन तीन दशक पहले परम्परागत खेती से हटकर कुछ लोगों ने मेंथा की खेती शुरू की. धीरे-धीरे ये खेती इतनी फैली कि इसने 'जायद' की प्रमुख फसल का रूप ले लिया. आज इस खेती को जिले में 'हरा सोना की खेती' बोला जाता है. तकरीबन एक लाख 10 हजार हेक्टेयर पर साढ़े तीन लाख किसानों द्वारा ये खेती की जा रही है. देश के कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले बाराबंकी में पैदा होता है. इससे निकलने वाले मेंथा ऑयल को बेचकर जिले के किसान खासा लाभ कमाते रहे हैं, लेकिन इस बार बेवक्त बारिश ने मेंथा की फसल बर्बाद कर दी. मेंथा का डिस्टिलेशन करने का समय आया तो बारिश हो गई. तमाम किसानों की फसलें खेत में ही सड़ गई.
असमय बारिश से फसल हुई बर्बाद
दरअसल, पहले 'तौकते' फिर 'यास' तूफान से हुई बारिश ने मेंथा की फसल बर्बाद कर दी. रही सही कसर प्री-मानसून ने पूरी कर दी. नतीजा ये हुआ कि तकरीबन 50 फीसदी फसल बर्बाद हो गई. किसान इस फसल के जरिये अच्छा लाभ कमाते थे, लेकिन इस बार फसल बर्बाद होने से उनकी कमर टूट गई है.
आज तक नहीं मिल पाया कृषि का दर्जा
मेंथा की खेती को कृषि का दर्जा नहीं मिल पाया है. लिहाजा न तो इस फसल का बीमा हो पाता है और न ही इस फसल को लेकर कोई कृषि अनुदान. हालांकि किसान पिछले कई वर्षों से इसे कृषि का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं. बीमा न हो पाने से फसल बर्बाद होने पर किसानों को सीधा नुकसान होता है.
किसानों ने लगाई सरकार से गुहार
खराब हुई फसल से परेशान किसानों ने सीएम योगी से गुहार लगाई है कि सरकार इस फसल के लिए कोई नीति बनाए, जिससे होने वाले नुकसान पर मुआवजा मिल सके.
कैसे होती है मेंथा यानी पिपरमिंट की खेती
अप्रैल महीने में खेतों में पिपरमिंट की जड़ों की रोपाई की जाती है. फसल में पानी ज्यादा लगता है. लिहाजा हर 15 दिन पर इसकी सिंचाई की जाती है. पानी देते रहने से इसकी पत्तियां हरी बनी रहती हैं. इन्हीं पत्तियों से तेल निकलता है. लगभग तीन महीने में ये फसल तैयार हो जाती है. पिपरमिंट को खेत से काटने के बाद इसे एक दिन खेत में पड़े रहने दिया जाता है. ताकि इसका पानी वाष्पित हो जाय. फिर विशेष प्रकार की बनी टंकियों के जरिये आसवन यानी डिस्टिलेशन कर इससे तेल निकाला जाता है.
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तेल निकालने के लिए दो टंकी होती हैं. एक में पिपरमिंट के पौधे भर दिए जाते हैं तो दूसरे में पानी. फिर इन टंकियों को आग के जरिये उबाला जाता है. तकरीबन 3 से 4 घण्टे तक ये प्रक्रिया चलती है. पौधे वाली टंकी की भाप दूसरी टंकी की सप्रेटा में जाती है, जिसे एक बर्तन में निकाल लेते हैं. ठंडा होने पर तेल ऊपर आ जाता है और पानी नीचे बैठ जाता है. जिन पौधों में अच्छी पत्तियां होती हैं उनमें तेल ज्यादा निकलता है.
मेंथा ऑयल के उत्पादन में भारत की 75 फीसदी भागीदारी
विश्व में मेंथा ऑयल का कुल उत्पादन तकरीबन 16 हजार टन है. इसमें अकेले भारत की भागीदारी करीब 75 फीसदी है. इस 75 फीसदी उत्पादन का 70 फीसदी उत्पादन केवल बाराबंकी करता है, जिसके चलते सरकार को खासा राजस्व मिलता है. फसल खराब होने से किसानों का नुकसान हुआ ही, सरकार का भी नुकसान हुआ. ऐसे में सरकार को इस फसल के लिए कोई ठोस नीति बनानी होगी ताकि किसानों के साथ-साथ सरकार को नुकसान न उठाना पड़े.