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बच्ची की मौत के मामले में चिकित्सा अधिकारी सिरौलीगौसपुर दोषी - बाराबंकी खबर

बाराबंकी में 10 दिन पूर्व इलाज के अभाव में एक बच्ची की मृत्यु के मामले में शासन ने प्रथमदृष्टया अस्पताल के चिकित्साधिकारी को दोषी पाया है.शासन ने बड़ी कार्यवाही करते हुए आरोपी डॉक्टर से 15 दिन के अंदर उक्त दोष के लिए स्पष्टीकरण देने को कहा है.

6 माह की मासूम बेटी के साथ पिता
6 माह की मासूम बेटी के साथ पिता
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Published : Jun 9, 2021, 5:51 AM IST

बाराबंकी: बाराबंकी में 10 दिन पूर्व इलाज के अभाव में एक बच्ची की मृत्यु के मामले में शासन ने प्रथमदृष्टया अस्पताल के चिकित्साधिकारी को दोषी पाया है. शासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आरोपी डॉक्टर से 15 दिन के अंदर उक्त दोष के लिए स्पष्टीकरण देने को कहा है. निर्धारित अवधि में स्पष्टीकरण न दिये जाने पर ये माना जायेगा कि आरोपी डॉक्टर को इस सम्बंध में कुछ नहीं कहना है और तब उपलब्ध तथ्यों के आधार पर यथोचित निर्णय ले लिया जाएगा.

30 मई को बच्ची की हो गई थी मौत

बताते चलें कि बदोसराय कोतवाली क्षेत्र के तासीपुर गांव के रहने वाले संदीप शुक्ला की 06 माह की मासूम बेटी नित्या 30 मई को तख्त से गिरकर घायल हो गई थी. संदीप बेटी को लेकर 100 बेड के संयुक्त चिकित्सालय सिरौलीगौसपुर लेकर पहुंचा था मगर वहां कोई भी डॉक्टर नही मिला था. जिसका नतीजा ये हुआ कि उसकी दुधमुंही बच्ची की मौत हो गई थी. पीड़ित संदीप रो-रोकर डॉक्टरों पर आरोप लगाता रहा.

सीएमओ के बयान से आहत हुए थे लोग

इस खबर के बाद हड़कम्प मच गया था. डॉक्टरों की लापरवाही को लेकर लोग आक्रोशित हो उठे थे. हैदरगढ़ से पूर्व विधायक सुन्दरलाल दीक्षित समेत कई राजनीतिक दलों के लोग भी वहां पहुंचे थे. मामले को बिगड़ता देख जिला प्रशासन ने सीएमओ डॉ बीकेएस चौहान से इस बाबत पूछा तो स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मच गया था. लिहाजा सीएमओ ने एक प्रेस नोट जारी कर सफाई दी. सीएमओ के इस प्रेस नोट ने आग में घी का काम किया. सीएमओ ने घटना को गलत बताते हुए लिखा कि बच्ची छत से गिर गई थी और वो मृत अवस्था मे लाई गई थी. सीएमओ के इस बयान ने जिले को हिलाकर रख दिया.

स्वास्थ्य विभाग की हुई थी फजीहत

दरअसल सीएमओ ने बयान दिया था कि बच्ची छत से गिर गई थी लेकिन पीड़ित छप्पर में रहता है, उसके घर छत ही नहीं है. इस बयान से स्वास्थ्य विभाग की काफी फजीहत हुई.

दो टीमों ने की जांच

जिला प्रशासन ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए दो टीमें गठित की. एक टीम एसडीएम सुरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में जांच करने पहुंची थी तो दूसरी टीम एसीएमओ डॉ सतीश चंद्रा और डॉ केएनएम त्रिपाठी के नेतृत्व में जांच करने पहुंची थी.

जिलाधिकारी ने जांच रिपोर्ट शासन को भेजी

दोनों टीमो द्वारा जांच रिपोर्ट जिला प्रशाशन को सौंपी गई. उसके बाद जिला प्रशासन ने 02 जून को ये जांच रिपोर्ट शासन को भेजी थी.

शासन ने की कार्यवाही

जांच रिपोर्ट के आधार पर शासन ने चिकित्साधिकारी सिरौलीगौसपुर को प्रथमदृष्टया दोषी माना. मंगलवार को शासन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि ब्राड डेथ रजिस्टर का अवलोकन किया गया जिसमें पीड़ित संदीप कुमार शुक्ला और उसकी बच्ची नित्या के साथ मौजूदगी के साक्ष्य मिले. घटना के समय मौके पर मौजूद मुकेश चपरासी, मोहम्मद अली फार्मेसिस्ट मौजूद थे जिनके द्वारा लड़की को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया गया था. उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि चिकित्साधिकारी डॉ अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा अपनी इमरजेंसी ड्यूटी में शिथिलता बरती गई है ,जिसके लिए वह प्रथमदृष्टया उत्तरदायी हैं.

15 दिन में दे आरोपी डॉ अपना स्पष्टीकरण

उपर्युक्त के संबंध में 100 बेड के संयुक्त चिकित्सालय सिरौलीगौसपुर के चिकित्साधिकारी डॉ अनिल कुमार श्रीवास्तव को एतद्द्वारा निर्देशित किया जाता है कि उक्त दोष के लिए अपना लिखित स्पष्टीकरण 15 दिनों के अंदर शासन को उपलब्ध कराने का कष्ट करें .यदि निर्धारित अवधि में उनका उत्तर प्राप्त नहीं होता है वो यह समझा जाएगा कि उनको इस संबंध में कुछ नहीं कहना है और उपलब्ध अभिलेखों और तथ्यों के आधार पर यथोचित निर्णय ले लिया जाएगा.




बाराबंकी: बाराबंकी में 10 दिन पूर्व इलाज के अभाव में एक बच्ची की मृत्यु के मामले में शासन ने प्रथमदृष्टया अस्पताल के चिकित्साधिकारी को दोषी पाया है. शासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आरोपी डॉक्टर से 15 दिन के अंदर उक्त दोष के लिए स्पष्टीकरण देने को कहा है. निर्धारित अवधि में स्पष्टीकरण न दिये जाने पर ये माना जायेगा कि आरोपी डॉक्टर को इस सम्बंध में कुछ नहीं कहना है और तब उपलब्ध तथ्यों के आधार पर यथोचित निर्णय ले लिया जाएगा.

30 मई को बच्ची की हो गई थी मौत

बताते चलें कि बदोसराय कोतवाली क्षेत्र के तासीपुर गांव के रहने वाले संदीप शुक्ला की 06 माह की मासूम बेटी नित्या 30 मई को तख्त से गिरकर घायल हो गई थी. संदीप बेटी को लेकर 100 बेड के संयुक्त चिकित्सालय सिरौलीगौसपुर लेकर पहुंचा था मगर वहां कोई भी डॉक्टर नही मिला था. जिसका नतीजा ये हुआ कि उसकी दुधमुंही बच्ची की मौत हो गई थी. पीड़ित संदीप रो-रोकर डॉक्टरों पर आरोप लगाता रहा.

सीएमओ के बयान से आहत हुए थे लोग

इस खबर के बाद हड़कम्प मच गया था. डॉक्टरों की लापरवाही को लेकर लोग आक्रोशित हो उठे थे. हैदरगढ़ से पूर्व विधायक सुन्दरलाल दीक्षित समेत कई राजनीतिक दलों के लोग भी वहां पहुंचे थे. मामले को बिगड़ता देख जिला प्रशासन ने सीएमओ डॉ बीकेएस चौहान से इस बाबत पूछा तो स्वास्थ्य विभाग में हड़कम्प मच गया था. लिहाजा सीएमओ ने एक प्रेस नोट जारी कर सफाई दी. सीएमओ के इस प्रेस नोट ने आग में घी का काम किया. सीएमओ ने घटना को गलत बताते हुए लिखा कि बच्ची छत से गिर गई थी और वो मृत अवस्था मे लाई गई थी. सीएमओ के इस बयान ने जिले को हिलाकर रख दिया.

स्वास्थ्य विभाग की हुई थी फजीहत

दरअसल सीएमओ ने बयान दिया था कि बच्ची छत से गिर गई थी लेकिन पीड़ित छप्पर में रहता है, उसके घर छत ही नहीं है. इस बयान से स्वास्थ्य विभाग की काफी फजीहत हुई.

दो टीमों ने की जांच

जिला प्रशासन ने इस पूरे प्रकरण की जांच के लिए दो टीमें गठित की. एक टीम एसडीएम सुरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में जांच करने पहुंची थी तो दूसरी टीम एसीएमओ डॉ सतीश चंद्रा और डॉ केएनएम त्रिपाठी के नेतृत्व में जांच करने पहुंची थी.

जिलाधिकारी ने जांच रिपोर्ट शासन को भेजी

दोनों टीमो द्वारा जांच रिपोर्ट जिला प्रशाशन को सौंपी गई. उसके बाद जिला प्रशासन ने 02 जून को ये जांच रिपोर्ट शासन को भेजी थी.

शासन ने की कार्यवाही

जांच रिपोर्ट के आधार पर शासन ने चिकित्साधिकारी सिरौलीगौसपुर को प्रथमदृष्टया दोषी माना. मंगलवार को शासन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि ब्राड डेथ रजिस्टर का अवलोकन किया गया जिसमें पीड़ित संदीप कुमार शुक्ला और उसकी बच्ची नित्या के साथ मौजूदगी के साक्ष्य मिले. घटना के समय मौके पर मौजूद मुकेश चपरासी, मोहम्मद अली फार्मेसिस्ट मौजूद थे जिनके द्वारा लड़की को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया गया था. उक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि चिकित्साधिकारी डॉ अनिल कुमार श्रीवास्तव द्वारा अपनी इमरजेंसी ड्यूटी में शिथिलता बरती गई है ,जिसके लिए वह प्रथमदृष्टया उत्तरदायी हैं.

15 दिन में दे आरोपी डॉ अपना स्पष्टीकरण

उपर्युक्त के संबंध में 100 बेड के संयुक्त चिकित्सालय सिरौलीगौसपुर के चिकित्साधिकारी डॉ अनिल कुमार श्रीवास्तव को एतद्द्वारा निर्देशित किया जाता है कि उक्त दोष के लिए अपना लिखित स्पष्टीकरण 15 दिनों के अंदर शासन को उपलब्ध कराने का कष्ट करें .यदि निर्धारित अवधि में उनका उत्तर प्राप्त नहीं होता है वो यह समझा जाएगा कि उनको इस संबंध में कुछ नहीं कहना है और उपलब्ध अभिलेखों और तथ्यों के आधार पर यथोचित निर्णय ले लिया जाएगा.




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