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महाभारत काल में बसे इस गांव में मौजूद है 5000 साल पुराना कल्पवृक्ष - कुंतेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी

बाराबंकी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर किंतूर गांव स्थित है. मान्यता है कि ये गांव महाभारत काल में बसाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडु पुत्र यहीं आकर रुके थे. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि गांव में स्थिति कुंतेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना माता कुंती ने की थी.

स्पेशल रिपोर्ट
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Published : Nov 4, 2020, 5:39 PM IST

बाराबंकी: जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर किंतूर गांव में महाभारत कालीन इतिहास के साक्ष्य आज भी किसी ना किसी रूप में देखने को मिलते हैं. मान्यता है कि किंतूर गांव को महाभारत काल में बसाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडु पुत्र यहीं आकर रुके थे. जिसके बाद इस गांव का नाम माता कुंती के नाम पर किंतूर पड़ा.

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कुंतेश्वर महादेव
माता कुंती ने यहां की थी शिवलिंग की स्थापना लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले का बड़ा ही स्वर्णिम इतिहास रहा है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बदोसराय के पूर्वी छोर पर स्थित किंतूर गांव का एक खास महत्त्व है. माना जाता है कि महाभारत काल में माता कुंती के साथ पांचों पांडवों ने इस गांव में कुछ समय निवास किया था. लोगों का कहना है कि पांडव पुत्रों ने यहां निवास के दौरान अपनी माता कुंती की पूजा करने के लिए एक शिवलिंग की स्थापना की थी जो आज कुंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.
स्पेशल रिपोर्ट

इस मंदिर की बड़ी ही रोचक कहानी हैं, कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर हर रोज रात 12 बजे कोई अदृश्य शक्ति सबसे पहले पूजा अर्चना करती है. स्थानीय लोगों की मानें तो वह अदृश्य शक्ति कोई और नहीं माता कुंती ही हैं जो रोज भगवान शिव का पूजन अर्चन करने आती हैं और रोज सुबह जल चढ़ाती हैं.

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5000 साल पुराना वृक्ष


समुद्र मंथन के समय हुई थी पारिजात की उत्पत्ति
मंदिर से थोड़ी दूर एक विशाल पारिजात वृक्ष भी है. इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है. इस पेड़ के बारे में भी कई मान्यताएं हैं. इसे स्वर्ग का पेड़ भी कहा जाता है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों में एक परिजात वृक्ष भी था. देवराज इंद्र ने इसे स्वर्ग में स्थापित किया था. कहते हैं इस पेड़ को अर्जुन स्वर्ग से लाए थे और माता कुंती इसके फूलों से शिवजी का अभिषेक करती थीं. इस मंदिर से जुड़ी दूसरी मान्यता यह है कि भगवान कृष्ण इस वृक्ष को अपनी रानी सत्यभामा के लिए स्वर्ग से लाए थे. महत्व इतना कि इसके छूने मात्र से ही थकान मिट जाती है.

45 फिट की ऊंचाई और 50 फिट मोटाई वाले इस पारिजात की आयु 5 हजार वर्ष मानी जाती है. इसमें फल नहीं होते और यही वजह है कि इसके जैसे पेड़ और कहीं नहीं हैं और न ही इसकी कलम लगती है. इसके फूल बहुत खूबसूरत होते हैं. धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल बहुत पसंद हैं. इसके फूल तोड़े नहीं जाते हैं जो फूल अपने आप गिरते हैं उन्हीं का उपयोग किया जाता है.

पारिजात के फूलों का महत्व
पारिजात के फूलों के बारे में भी कई मान्यतायें हैं. कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि देवलोक से इस वृक्ष के फूल लेकर भगवान कृष्ण के पास आए. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने वे फूल पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मिणी को दे दिए. इसके बाद नारद मुनि भगवान कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे सारी बात बताई. सत्यभामा को ये सुनकर गुस्सा आ गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से पारिजात का पेड़ लाने की जिद की. तमाम विरोधों के बाद भगवान कृष्ण देवराज इंद्र से इस पेड़ को लेकर स्वर्ग से धरती पर लेकर आए. उसी वक्त भगवान इंद्र ने परिजात को श्राप दे दिया कि दिन में इसका फूल नहीं खिलेगा और तभी से इसका फूल दिन में नहीं खिलता है. शाम को खिलने वाला फूल सुबह तक मुरझा जाता है.

बाराबंकी: जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर किंतूर गांव में महाभारत कालीन इतिहास के साक्ष्य आज भी किसी ना किसी रूप में देखने को मिलते हैं. मान्यता है कि किंतूर गांव को महाभारत काल में बसाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडु पुत्र यहीं आकर रुके थे. जिसके बाद इस गांव का नाम माता कुंती के नाम पर किंतूर पड़ा.

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कुंतेश्वर महादेव
माता कुंती ने यहां की थी शिवलिंग की स्थापना लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले का बड़ा ही स्वर्णिम इतिहास रहा है. जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर बदोसराय के पूर्वी छोर पर स्थित किंतूर गांव का एक खास महत्त्व है. माना जाता है कि महाभारत काल में माता कुंती के साथ पांचों पांडवों ने इस गांव में कुछ समय निवास किया था. लोगों का कहना है कि पांडव पुत्रों ने यहां निवास के दौरान अपनी माता कुंती की पूजा करने के लिए एक शिवलिंग की स्थापना की थी जो आज कुंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. जिसके दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.
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इस मंदिर की बड़ी ही रोचक कहानी हैं, कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर हर रोज रात 12 बजे कोई अदृश्य शक्ति सबसे पहले पूजा अर्चना करती है. स्थानीय लोगों की मानें तो वह अदृश्य शक्ति कोई और नहीं माता कुंती ही हैं जो रोज भगवान शिव का पूजन अर्चन करने आती हैं और रोज सुबह जल चढ़ाती हैं.

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5000 साल पुराना वृक्ष


समुद्र मंथन के समय हुई थी पारिजात की उत्पत्ति
मंदिर से थोड़ी दूर एक विशाल पारिजात वृक्ष भी है. इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है. इस पेड़ के बारे में भी कई मान्यताएं हैं. इसे स्वर्ग का पेड़ भी कहा जाता है. कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों में एक परिजात वृक्ष भी था. देवराज इंद्र ने इसे स्वर्ग में स्थापित किया था. कहते हैं इस पेड़ को अर्जुन स्वर्ग से लाए थे और माता कुंती इसके फूलों से शिवजी का अभिषेक करती थीं. इस मंदिर से जुड़ी दूसरी मान्यता यह है कि भगवान कृष्ण इस वृक्ष को अपनी रानी सत्यभामा के लिए स्वर्ग से लाए थे. महत्व इतना कि इसके छूने मात्र से ही थकान मिट जाती है.

45 फिट की ऊंचाई और 50 फिट मोटाई वाले इस पारिजात की आयु 5 हजार वर्ष मानी जाती है. इसमें फल नहीं होते और यही वजह है कि इसके जैसे पेड़ और कहीं नहीं हैं और न ही इसकी कलम लगती है. इसके फूल बहुत खूबसूरत होते हैं. धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल बहुत पसंद हैं. इसके फूल तोड़े नहीं जाते हैं जो फूल अपने आप गिरते हैं उन्हीं का उपयोग किया जाता है.

पारिजात के फूलों का महत्व
पारिजात के फूलों के बारे में भी कई मान्यतायें हैं. कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि देवलोक से इस वृक्ष के फूल लेकर भगवान कृष्ण के पास आए. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने वे फूल पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मिणी को दे दिए. इसके बाद नारद मुनि भगवान कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे सारी बात बताई. सत्यभामा को ये सुनकर गुस्सा आ गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से पारिजात का पेड़ लाने की जिद की. तमाम विरोधों के बाद भगवान कृष्ण देवराज इंद्र से इस पेड़ को लेकर स्वर्ग से धरती पर लेकर आए. उसी वक्त भगवान इंद्र ने परिजात को श्राप दे दिया कि दिन में इसका फूल नहीं खिलेगा और तभी से इसका फूल दिन में नहीं खिलता है. शाम को खिलने वाला फूल सुबह तक मुरझा जाता है.

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