ETV Bharat / state

हथकरघा दिवस विशेष: कभी गरीबी का अस्त्र और स्वदेशी पहचान रहा हथकरघा उद्योग तोड़ रहा है दम - एक जिला एक उत्पाद

राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे. राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर देखिए विशेष रिपोर्ट.

दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
author img

By

Published : Aug 7, 2021, 11:56 AM IST

बाराबंकी: देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था (economy) में हथकरघा उत्पादों (Hathakaragha products) का महत्वपूर्ण योगदान है. लेकिन पिछले दो दशकों ने हथकरघा उद्योग बदहाली के दौर से गुजर रहा है. इस उद्योग को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hathakaragha Day) की शुरुआत की गई थी. उस वक्त इससे जुड़े बुनकरों (bunkar) को लगा था कि उनके हालात बदल जाएंगे लेकिन 06 वर्ष बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं. अब तो हथकरघों से सुनाई देने वाली आवाजें भी बंद होती जा रही हैं.

बुनकरों का प्रमुख जरिया हथकरघा

राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में तकरीबन 57 हजार बुनकर हैं. पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. जैदपुर, शहाबपुर, सफदरगंज, रामपुर, सआदतगंज, मनौली, बांसा, अनखा और अछेचा समेत जिले के दर्जनों कस्बों के बुनकर हथकरघे के जरिए ही अपने परिवारों की रोजी रोटी चलाते थे, लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे.

दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
अच्छे थे पुराने दिन
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बुनकर (weavers) बताते हैं कि पहले इसी करघे से वे अच्छी खासी आमदनी करते थे. परिवार के गुजर बसर के साथ साथ बच्चों के शादी-ब्याह करने और घर बनवाने तक का सारा खर्च इसी हथकरघे से पूरा करते थे, लेकिन इधर एक दशक से ये उद्योग चौपट हो गया है. हालात ये हैं कि अब पेट पालना भी मुश्किल हो गया है.
काम बंद करना बन गया मजबूरी
बदहाली के पीछे इनका मानना है. कि दिनों दिन धागा महंगा होता जा रहा है. लागत और मेहनत की तुलना में उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल पाता लिहाजा काम बंद करना मजबूरी हो गई है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
बाजार की अनुपलब्धता ने तोड़ी कमर
हथकरघा उद्योग की बदहाली के पीछे धागे की कीमतें बढ़ने के अलावा और भी कई वजहें हैं. हथकरघे की जगह अब पावरलूम लेने लगे हैं. इसके अलावा उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार का न होना एक बड़ी वजह है. बुनकरों का कहना है कि पहले जिले में कई बड़ी सट्टी बाजारें लगती थीं. सट्टी बाजार के एक दिन पहले ही मालेगांव, इंदौर, काठगोदाम, टांडा समेत तमाम दूर दराज के बड़े व्यापारी आ जाते थे और आढ़तियों के यहां से तमाम माल खरीदते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
सरकार चला रही योजनाएं
ऐसा नहीं है कि हथकरघा उद्योग के संवर्धन के लिए सरकार प्रयासरत नहीं है. बुनकरों के लिए कई योजनाएं हैं. इसके अलावा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए यहां के उत्पाद स्टोल यानी दुपट्टा को एक जिला एक उत्पाद (ODOP)के तहत चयनित भी किया गया है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने शुरू किया था हथकरघा दिवस
साल 2014 में मोदी सरकार बनते ही बदहाल होते जा रहे बुनकरों के हालात सुधारने की कोशिशें शुरू हुईं. हथकरघा उद्योग को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए पीएम मोदी ने "राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" मनाए जाने की घोषणा की. इसके लिए हर वर्ष सात अगस्त का दिन तय हुआ. सात अगस्त का दिन तय करने के पीछे भी एक खास उद्देश्य था. दरअसल सात अगस्त 1905 को स्वतंत्रता संघर्ष के लिए देश मे स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी. स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 07 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाए जाने का फैसला किया गया. पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस वर्ष 2015 में मनाया गया.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
आत्मनिर्भर और स्वदेशी को बढ़ावा
इस दिवस को मनाए जाने के पीछे पीएम मोदी की मंशा है कि इसके जरिये हथकरघा उद्योग के महत्व और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में इसके योगदान को लोग जाने और इसके जरिये आत्मनिर्भर होकर स्वदेशी अपनाएं.
गरीबी से लड़ने का अस्त्र है हथकरघा
वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने चेन्नई में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के मौके पर "भारतीय हथकरघा" लोगों का अनावरण किया था और कहा था कि हथकरघा गरीबी से लड़ने में उसी तरह एक अस्त्र साबित हो सकता है, जिस तरह स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान स्वदेशी आंदोलन था.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
देश मे तीसरे स्थान पर है यूपी का हथकरघा उद्योग
सूबे में खेती के बाद अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का खास स्थान है. आंकड़ों की मानें तो देश मे कुल बुनकरों की संख्या का एक चौथाई बुनकर उत्तर प्रदेश में हैं. रोजगार और उत्पादन की दृष्टि से यूपी का हथकरघा उद्योग देश मे तीसरे स्थान पर है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
प्रदेश में हथकरघा विकास के लिए संचालित योजनाएं
हथकरघा उद्योग के विकास के लिए सूबे में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें क्लस्टर विकास कार्यक्रम, विपणन प्रोत्साहन, पीएम जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, हथकरघा विपणन सहायता योजना, प्रधानमंत्री हथकरघा बुनकर मुद्रा योजना हैं.ये सही है कि सरकार हथकरघा उद्योग को बढाने के लिए खासी गम्भीर है. इसके लिए तमाम योजनाएं भी चला रही है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते बुनकरों को इनका लाभ नहीं मिल पाता. ऐसे में जरूरी है कि बुनकरों तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए तभी सरकार की मंशा सार्थक होगी.

बाराबंकी: देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था (economy) में हथकरघा उत्पादों (Hathakaragha products) का महत्वपूर्ण योगदान है. लेकिन पिछले दो दशकों ने हथकरघा उद्योग बदहाली के दौर से गुजर रहा है. इस उद्योग को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hathakaragha Day) की शुरुआत की गई थी. उस वक्त इससे जुड़े बुनकरों (bunkar) को लगा था कि उनके हालात बदल जाएंगे लेकिन 06 वर्ष बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं. अब तो हथकरघों से सुनाई देने वाली आवाजें भी बंद होती जा रही हैं.

बुनकरों का प्रमुख जरिया हथकरघा

राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में तकरीबन 57 हजार बुनकर हैं. पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. जैदपुर, शहाबपुर, सफदरगंज, रामपुर, सआदतगंज, मनौली, बांसा, अनखा और अछेचा समेत जिले के दर्जनों कस्बों के बुनकर हथकरघे के जरिए ही अपने परिवारों की रोजी रोटी चलाते थे, लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे.

दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
अच्छे थे पुराने दिन
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बुनकर (weavers) बताते हैं कि पहले इसी करघे से वे अच्छी खासी आमदनी करते थे. परिवार के गुजर बसर के साथ साथ बच्चों के शादी-ब्याह करने और घर बनवाने तक का सारा खर्च इसी हथकरघे से पूरा करते थे, लेकिन इधर एक दशक से ये उद्योग चौपट हो गया है. हालात ये हैं कि अब पेट पालना भी मुश्किल हो गया है.
काम बंद करना बन गया मजबूरी
बदहाली के पीछे इनका मानना है. कि दिनों दिन धागा महंगा होता जा रहा है. लागत और मेहनत की तुलना में उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल पाता लिहाजा काम बंद करना मजबूरी हो गई है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
बाजार की अनुपलब्धता ने तोड़ी कमर
हथकरघा उद्योग की बदहाली के पीछे धागे की कीमतें बढ़ने के अलावा और भी कई वजहें हैं. हथकरघे की जगह अब पावरलूम लेने लगे हैं. इसके अलावा उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार का न होना एक बड़ी वजह है. बुनकरों का कहना है कि पहले जिले में कई बड़ी सट्टी बाजारें लगती थीं. सट्टी बाजार के एक दिन पहले ही मालेगांव, इंदौर, काठगोदाम, टांडा समेत तमाम दूर दराज के बड़े व्यापारी आ जाते थे और आढ़तियों के यहां से तमाम माल खरीदते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
सरकार चला रही योजनाएं
ऐसा नहीं है कि हथकरघा उद्योग के संवर्धन के लिए सरकार प्रयासरत नहीं है. बुनकरों के लिए कई योजनाएं हैं. इसके अलावा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए यहां के उत्पाद स्टोल यानी दुपट्टा को एक जिला एक उत्पाद (ODOP)के तहत चयनित भी किया गया है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने शुरू किया था हथकरघा दिवस
साल 2014 में मोदी सरकार बनते ही बदहाल होते जा रहे बुनकरों के हालात सुधारने की कोशिशें शुरू हुईं. हथकरघा उद्योग को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए पीएम मोदी ने "राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" मनाए जाने की घोषणा की. इसके लिए हर वर्ष सात अगस्त का दिन तय हुआ. सात अगस्त का दिन तय करने के पीछे भी एक खास उद्देश्य था. दरअसल सात अगस्त 1905 को स्वतंत्रता संघर्ष के लिए देश मे स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी. स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 07 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाए जाने का फैसला किया गया. पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस वर्ष 2015 में मनाया गया.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
आत्मनिर्भर और स्वदेशी को बढ़ावा
इस दिवस को मनाए जाने के पीछे पीएम मोदी की मंशा है कि इसके जरिये हथकरघा उद्योग के महत्व और देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में इसके योगदान को लोग जाने और इसके जरिये आत्मनिर्भर होकर स्वदेशी अपनाएं.
गरीबी से लड़ने का अस्त्र है हथकरघा
वर्ष 2015 में पीएम मोदी ने चेन्नई में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के मौके पर "भारतीय हथकरघा" लोगों का अनावरण किया था और कहा था कि हथकरघा गरीबी से लड़ने में उसी तरह एक अस्त्र साबित हो सकता है, जिस तरह स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान स्वदेशी आंदोलन था.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
देश मे तीसरे स्थान पर है यूपी का हथकरघा उद्योग
सूबे में खेती के बाद अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का खास स्थान है. आंकड़ों की मानें तो देश मे कुल बुनकरों की संख्या का एक चौथाई बुनकर उत्तर प्रदेश में हैं. रोजगार और उत्पादन की दृष्टि से यूपी का हथकरघा उद्योग देश मे तीसरे स्थान पर है.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
दम तोड़ रहा हथकरघा उद्योग.
प्रदेश में हथकरघा विकास के लिए संचालित योजनाएं
हथकरघा उद्योग के विकास के लिए सूबे में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें क्लस्टर विकास कार्यक्रम, विपणन प्रोत्साहन, पीएम जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, हथकरघा विपणन सहायता योजना, प्रधानमंत्री हथकरघा बुनकर मुद्रा योजना हैं.ये सही है कि सरकार हथकरघा उद्योग को बढाने के लिए खासी गम्भीर है. इसके लिए तमाम योजनाएं भी चला रही है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते बुनकरों को इनका लाभ नहीं मिल पाता. ऐसे में जरूरी है कि बुनकरों तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाए तभी सरकार की मंशा सार्थक होगी.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.