बाराबंकी: देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था (economy) में हथकरघा उत्पादों (Hathakaragha products) का महत्वपूर्ण योगदान है. लेकिन पिछले दो दशकों ने हथकरघा उद्योग बदहाली के दौर से गुजर रहा है. इस उद्योग को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hathakaragha Day) की शुरुआत की गई थी. उस वक्त इससे जुड़े बुनकरों (bunkar) को लगा था कि उनके हालात बदल जाएंगे लेकिन 06 वर्ष बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं. अब तो हथकरघों से सुनाई देने वाली आवाजें भी बंद होती जा रही हैं.
बुनकरों का प्रमुख जरिया हथकरघा
राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में तकरीबन 57 हजार बुनकर हैं. पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. जैदपुर, शहाबपुर, सफदरगंज, रामपुर, सआदतगंज, मनौली, बांसा, अनखा और अछेचा समेत जिले के दर्जनों कस्बों के बुनकर हथकरघे के जरिए ही अपने परिवारों की रोजी रोटी चलाते थे, लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे.
हथकरघा दिवस विशेष: कभी गरीबी का अस्त्र और स्वदेशी पहचान रहा हथकरघा उद्योग तोड़ रहा है दम - एक जिला एक उत्पाद
राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे. राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर देखिए विशेष रिपोर्ट.
बाराबंकी: देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था (economy) में हथकरघा उत्पादों (Hathakaragha products) का महत्वपूर्ण योगदान है. लेकिन पिछले दो दशकों ने हथकरघा उद्योग बदहाली के दौर से गुजर रहा है. इस उद्योग को सामाजिक और आर्थिक स्तर पर सशक्त बनाने के लिए वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (National Hathakaragha Day) की शुरुआत की गई थी. उस वक्त इससे जुड़े बुनकरों (bunkar) को लगा था कि उनके हालात बदल जाएंगे लेकिन 06 वर्ष बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं. अब तो हथकरघों से सुनाई देने वाली आवाजें भी बंद होती जा रही हैं.
बुनकरों का प्रमुख जरिया हथकरघा
राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में तकरीबन 57 हजार बुनकर हैं. पिछले करीब 6 दशकों से हथकरघा यहां के बुनकरों का एक खास उद्योग था. जैदपुर, शहाबपुर, सफदरगंज, रामपुर, सआदतगंज, मनौली, बांसा, अनखा और अछेचा समेत जिले के दर्जनों कस्बों के बुनकर हथकरघे के जरिए ही अपने परिवारों की रोजी रोटी चलाते थे, लेकिन बदलते वक्त में इस उद्योग को नजर लग गई. पहले जहां एक-एक कस्बे में सैकड़ों करघे चलने की आवाजें आती थीं वहीं अब गिने चुने करघे ही बचे हैं. मजबूरन रोजी रोटी के लिए ज्यादातर बुनकर दूसरे कारोबार में लग गए और तमाम लोग मजदूरी करने लगे.