बाराबंकी: पराली जलाना किसानों की मजबूरी है. खेती के अवशेष जलाने से महज 8 फीसदी प्रदूषण होता है. वहीं, फैक्ट्रियों, मिलों और दूसरे कारणों से 92 फीसदी प्रदूषण होता है. बावजूद इसके सरकारों ने किसानों को ही दोषी बनाकर रख दिया है. ये बड़ा बयान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढूनी ने दिया. किसान नेता शनिवार को बाराबंकी में मीडिया से मुखातिब थे. इस मौके पर उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में किसानों का शोषण दूसरे प्रदेशों से ज्यादा है. लिहाजा किसानों को बचाने के लिए वे एक बड़ा आंदोलन करने जा रहे हैं.
किसानों को अपने आंदोलन से जोड़ने के लिए जगह-जगह जा रहे किसान यूनियन (चढूनी) गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढूनी शनिवार को बाराबंकी पहुंचे. इस दौरान पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने प्रदेश की वर्तमान सरकार पर जमकर हमला बोला. किसान नेता ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में किसानों का शोषण दूसरे प्रदेशों की तुलना में सबसे ज्यादा है. यहां किसानों को किसी भी फसल पर एमएसपी नहीं मिल रही है. किसानों का तमाम गन्ना मूल्य बकाया है. यहां के किसानों का गन्ना रेट कम है. फसल खराब होने पर मुआवजा देने में यहां की सरकार पीछे है.
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पराली को लेकर उन्होंने बड़ा बयान दिया. किसान नेता चढूनी ने कहा कि किसानों को पराली जलाने का कोई शौक नहीं, कुछ फसलों के लिए पराली जलाना मजबूरी है. सरकार अगर किसानों को मशीनें उपलब्ध कराए तो पराली नहीं जलाई जाएगी. लेकिन, सरकार आज तक मशीनें नहीं उपलब्ध करा पाई. इस दौरान उन्होंने कहा कि सरकारों ने प्रदूषण के लिए किसानों को ही दोषी मान रखा है. उन्होंने कहा कि खेती के अवशेष जलने से 8 फीसदी प्रदूषण होता है. जबकि, 92 फीसदी प्रदूषण फैक्ट्रियों, वाहनों और दूसरी वजहों से होता है. सरकारें इन पर कार्रवाई नहीं कर रहीं.
किसान नेता ने पराली की समस्या से 8 फीसदी होने वाले प्रदूषण का हल भी सुझाया. उन्होंने कहा कि एक एकड़ खेत की पराली से 800 यूनिट बिजली बनाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में 121 शुगर मिले हैं. इनमें बिजली के प्लांट भी लगे हैं. इनको और मोडिफाई करके बिजली बनाई जा सकती है. इससे कोयला तो बचेगा ही साथ ही पराली की समस्या से छुटकारा भी मिल जाएगा. किसान नेता ने कहा कि इन्हीं सब मुद्दों को लेकर वे एक बड़ा आंदोलन करने जा रहे हैं.
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