बाराबंकी: भले ही विश्व संगीत दिवस मनाने की शुरुआत फ्रांस से हुई हो, लेकिन हिन्दुस्तान के संगीत की जो पहचान है, वो शायद ही किसी देश की हो. शास्त्रीय संगीत के आगे पाश्चात्य संगीत फीका नजर आता है. लोग इस संगीत को सीखने के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा देते हैं. बाराबंकी के प्रभात दीक्षित ऐसे ही कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी आधी से ज्यादा उम्र संगीत में गुजार दी. हालांकि इन्हें दु:ख भी है कि संगीतकारों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अभी तक कोई सरकारी नीति नहीं बन पाई है.
20 साल से सिखा रहे संगीत
पिछले 20 वर्षों से प्रभात दीक्षित संगीत की शिक्षा दे रहे हैं. बचपन से ही गाने का शौक था. लिहाजा उसी में रम गए. टेबल बजाते-बजाते ढोलक बजाना सीख गए और आज ढोलक की ताल उनके हिसाब से चलती है. यही नहीं, उन्होंने ढोलक की तालों को गिनतियों में परिवर्तित कर कई नई विधाएं तैयार कर डालीं. शौक बढ़ा तो भातखंडे संगीत विद्यालय में कोर्स कर डाला और फिर संगीत के प्रचार प्रसार के लिए बच्चों को सिखाना शुरू कर दिया.
पांच हजार बच्चों को सिखा चुके संगीत
नगर के घण्टाघर के समीप सन् 1998 से अपने घर में ही इन्होंने बच्चों को संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी. अब तक करीब पांच हजार बच्चों को संगीत सिखा चुके प्रभात ढोलक के साथ हारमोनियम बजाने में भी माहिर हैं. लखनऊ स्थित भातखण्डे में भी ये ढोलक सिखाने जाते हैं. इनके सिखाए बच्चों ने टैलेंट हंट, फोक जलवा जैसे कई बड़े प्लेटफार्मों पर अपना जलवा बिखेरा है.
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बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं प्रभात
प्रभात दीक्षित कई गुणों के धनी हैं. खुद लिखते हैं और फिर उसी के हिसाब से संगीत भी तैयार करते हैं. यही वजह है कि वर्ष 2012 में चुनाव आयोग ने इनके गाये मतदाता जागरण गीत को अपने प्रचार में शामिल किया. हर वर्ष जब विश्व संगीत दिवस आता है, इन्हें संगीतकारों की दशा याद आ जाती है. प्रभात को दु:ख है कि संगीतकारों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए अभी तक कोई सरकारी नीति नहीं बन सकी है.