बांदा : वीरों की भूमि कहे जाने वाले बुंदेलखंड की महिलाएं भी कम साहसी नहीं हैं. इस नए दौर में बुंदेली महिलाओं का क्रांतिकारी रवैया कई रूपों में सामने आता है. चाहे वह गुलाबी गैंग के रूप में हो या बेलन फौज की शक्ल में. अत्याचार और शोषण के खिलाफ दमदार आवाज उठाने में बुंदेली महिलायें कभी पीछे नहीं रहती हैं.
आज तक लोगों ने महिलाओं को बेलन से केवल रोटी बेलते देखा है, लेकिन बुंदेलखंड में महिलाओं की इस फौज ने बेलन को ही अपना हथियार बना लिया है. यही हथियार लेकर यह महिलाएं निकल पड़ी हैं कई जन समस्याओं के निराकरण और भ्रष्ट सिस्टम का सर फोड़ने के लिए. इस फौज की कमांडर हैं दो बार बांदा की पार्षद रह चुकीं पुष्पा गोस्वामी. इन्होंने साल 2006 में विधुत विभाग के चीफ इंजीनियर के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया था. इसके आंदोलन के दौरान चीफ इंजीनियर ने पुष्पा जी से अभद्रता कर दी थी, जिस पर पुष्पा गोस्वामी ने पास के समोसे की दूकान से बेलन उठा लिया और इंजीनियर की पिटाई करने पर उतारू हो गईं. बस यहीं से नींव पड़ी उस फौज की जिसे सारा इलाका आज बेलन फौज के नाम से जानता है.
इस संगठन का मुख्यालय बांदा में है और बेलन फौज बांदा, महोबा, हमीरपुर व चित्रकूट जिलों की मध्य और निम्न मध्यवर्गीय महिलाओं का समूह है.इनका मुख्य फोकस महिलाओं पर होने वाले अत्याचार जैसे घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, छेड़छाड़ आदि के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करना है. साथ ही पानी, बिजली, सड़क, घूसखोरी आदि की समस्याओं को भी यह उठाती हैं. आज की तारीख में संगठन में एक हजार सक्रिय सदस्यों में से अधिकतर महिलाएं घरेलू व कामकाजी हैं. यह घर के कामों को जल्दी से निपटाकर आंदोलन के लिए एकजुट होती हैं.
बेलन फौज के आंदोलन भी बड़े रोचक होते हैं. अपनी बात मनवाने के लिए इनके आंदोलन में पानी की टंकी पर चढ़ जाना, कार्यालय के गेट पर ताला जड़ देना और कर्मचारियों एवं अधिकारियों को चूड़ी पहनाना और गाड़ी की चाबी निकाल लेना आदि शामिल हैं. साथ ही जरूरत पड़ने पर बेलन से बेईमानों की पिटाई, इस संगठन का आखिरी अस्त्र होता है. इनके आंदोलनों के चलते कई भ्रष्ट कर्मियों पर कार्रवाई भी हो चुकी है. बेलन फौज किसी भी तरह की आर्थिक सहायता भी नहीं लेती है, बल्कि सदस्यों के जुटाए धन से ही इनकी जरूरतें पूरी होती हैं.
बेलन फौज की कमांडर पुष्पा गोस्वामी लोकतंत्र में इस तरह के उग्र आंदोलनों को गलत नहीं मानतीं हैं. वह कहती हैं कि हम किसी प्रकार की हिंसा का सहारा नहीं लेते हैं. हमें अबला समझा जाता है तब मजबूरी में हमें अपने आप को पुरुषों से सशक्त दिखाने के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ते हैं. वहीं क्षेत्र की महिलाओं में भी बेलन फौज के प्रति खासी लोकप्रियता है. महिलायें बताती हैं कि कई महिलाओं को बेलन फौज की मदद से इन्साफ मिला है और कई महिलाओं की मदद भी की गयी है. इन महिलाओं का मानना है कि अपने गृहस्थ जीवन के लिए समर्पित बेलन फौज का मजलूमों के लिए समय निकालना और उनकी मदद करना बड़ा काम है.