ETV Bharat / state

बलरामपुर: महिला जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल - बलरामपुर महिला जिला अस्पताल

सरकार बदलने के बाद भी सरकारी अस्पतालों की स्थिति में सुधार आता नहीं दिख रहा है. उत्तर प्रदेश में बलरामपुर के महिला जिला अस्पताल में भी कोरोना वायरस का असर दिख रहा है. इस अस्पताल में अव्यवस्थाएं चरम पर हैं. कोरोना वायरस संक्रमण काल के दौरान भी प्रसूताएं और गंभीर रोगों से ग्रसित मरीज अस्पताल के बाहर लेटे दिख रहे हैं.

balrampur news
बदहाल अस्पताल
author img

By

Published : Aug 16, 2020, 5:13 PM IST

बलरामपुर: जिले की आधी आबादी को बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए महारानी इंद्र कुंवरि जिला महिला चिकित्सालय की स्थापना जिले के गठन के बाद की गई थी. लेकिन अपने स्थापना के वर्षों से ही यह चिकित्सालय लगातार अधिकारियों की उपेक्षा का सामना कर रहा है. इस अस्पताल में अव्यवस्थाएं चरम पर हैं. कोरोना वायरस संक्रमण काल के दौरान भी प्रसूताएं और गंभीर रोगों से ग्रसित मरीज लेटे दिख रहे हैं. वार्डों की स्थिति कुछ इस कदर है कि क्षमता से ज्यादा मरीज वार्डों में देखे जाते हैं.

बलरामपुर महिला जिला अस्पताल.


वहीं केंद्र व राज्य सरकार के अधीनस्थ चलने वाली जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत प्रसूताओं और नवजातओं को 48 घंटे अस्पताल में भर्ती रखने का नियम है, लेकिन इस अस्पताल में मरीजों को 2 से 10 घंटों के भीतर ही छोड़ दिया जाता है.

अस्पताल में अव्यवस्थाओं का अंबार
ईटीवी भारत की टीम जब जिला महिला चिकित्सालय पहुंची तो वहां पर अव्यवस्थाओं का अंबार दिखा. मुख्य भवन के प्रवेश द्वार के दोनों किनारे प्रसूताएं अपने नवजात बच्चों के साथ लेटी या बैठी हुई दिखाई दीं. अस्पताल के बाहर बैठी प्रसूताओं ने बताया कि उन्हें वार्ड से बाहर निकाल दिया गया है और घर भेजने की तैयारी है. कई प्रसूताओं ने तो अपने डिलीवरी के 12 घंटे भी पूरे नहीं किए थे, लेकिन वार्ड इंचार्ज द्वारा उन्हें घर भेज दिया गया.

जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत 48 घंटे रखने का नियम
बलरामपुर जिले के सदर ब्लाक के नारायणपुर ग्रामसभा से आई छोटका ने 10 अगस्त को शाम 8:00 बजे बच्चे को जन्म दिया था, लेकिन वह हमें अपने बच्चे के साथ वार्ड के बाहर लॉबी में बैठी दिखाई दी. उनके साथ उनकी भाभी आरती व पति सुभाष भी आसपास ही दिखाई दिए. जब हमने इन लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां बिटिया का जन्म 8 बजे शाम के आसपास हुआ था. वार्ड में कुछ देर रखने के बाद आज सुबह ही हमें बाहर भेज दिया गया और अब हम अपने घर जाने की तैयारी कर रहे हैं.

जब हमने आरती से हमने पूछा कि जननी शिशु सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रसूता को 48 घंटे तक अस्पताल में रखने का नियम है फिर भी आपको डॉक्टर ने क्यों नहीं यहां रोका तो उन्होंने कहा कि हमें किसी ने रोका नहीं, बल्कि वार्ड से बाहर कर दिया गया. वार्ड के इंचार्ज ने हमें बाहर जाने को कहा तो हम लोग बाहर आकर सुबह से लेटे हुए हैं. हमें खाने-पीने की सुविधा तक नहीं प्रदान की गई है.

'बेटे की स्थिति है नाजुक'
मझौवा से आई सईदुलनिशा भी वार्ड के बाहर नीचे फर्श पर बैठी दिखाई दीं. उन्होंने बताया कि 10 तारीख को 12 बजे दोपहर में उन्होंने बेटे को जन्म दिया था. सुबह तकरीबन 9 बजे वार्ड से इंचार्ज ने बाहर कर दिया, जबकि इनका बेटा एसएनसीयू में भर्ती है. वह उल्टा पैदा हुआ था और उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है.

'बेड की है कमी'
अस्पताल की लचर व्यवस्था पर महिला चिकित्सालय की सीएमएस डॉ. विनीता राय कहना है कि हमारे यहां महज 30 बेड हैं. जहां पर प्रसूताओं को सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. जब कोई ज्यादा सीरियस मरीज आ जाता है तो हमें मजबूरन बेड खाली करवाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत यह एसओपी है कि किसी भी जच्चा-बच्चा को 48 घंटे तक मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा जाए. लेकिन हमारे यहां दबाव ज्यादा है और बेड की सुविधाएं कम तो इसलिए कम सीरियस मरीजों को डॉक्टरों की सलाह के बाद उनके घर भेज दिया जाता है.

हम आपको बताते चलें कि जिला महिला चिकित्सालय में हर रोज औसतन 10 नवजातों का जन्म होता है. इसके साथ ही जिले भर से यहां क्रिटिकल कन्डीशन में आने वाले नवजातों के लिए एसएनसीयू भी स्थापित है. जिसे उत्तर प्रदेश में दूसरा रैंक हासिल है. इसके बावजूद भी यहां पर तमाम सुविधाओं की कमी है. यह अस्पताल जिला अस्पताल नहीं बल्कि एक सीएचसी के मानक पर रन किया जा रहा है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

बलरामपुर: जिले की आधी आबादी को बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए महारानी इंद्र कुंवरि जिला महिला चिकित्सालय की स्थापना जिले के गठन के बाद की गई थी. लेकिन अपने स्थापना के वर्षों से ही यह चिकित्सालय लगातार अधिकारियों की उपेक्षा का सामना कर रहा है. इस अस्पताल में अव्यवस्थाएं चरम पर हैं. कोरोना वायरस संक्रमण काल के दौरान भी प्रसूताएं और गंभीर रोगों से ग्रसित मरीज लेटे दिख रहे हैं. वार्डों की स्थिति कुछ इस कदर है कि क्षमता से ज्यादा मरीज वार्डों में देखे जाते हैं.

बलरामपुर महिला जिला अस्पताल.


वहीं केंद्र व राज्य सरकार के अधीनस्थ चलने वाली जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत प्रसूताओं और नवजातओं को 48 घंटे अस्पताल में भर्ती रखने का नियम है, लेकिन इस अस्पताल में मरीजों को 2 से 10 घंटों के भीतर ही छोड़ दिया जाता है.

अस्पताल में अव्यवस्थाओं का अंबार
ईटीवी भारत की टीम जब जिला महिला चिकित्सालय पहुंची तो वहां पर अव्यवस्थाओं का अंबार दिखा. मुख्य भवन के प्रवेश द्वार के दोनों किनारे प्रसूताएं अपने नवजात बच्चों के साथ लेटी या बैठी हुई दिखाई दीं. अस्पताल के बाहर बैठी प्रसूताओं ने बताया कि उन्हें वार्ड से बाहर निकाल दिया गया है और घर भेजने की तैयारी है. कई प्रसूताओं ने तो अपने डिलीवरी के 12 घंटे भी पूरे नहीं किए थे, लेकिन वार्ड इंचार्ज द्वारा उन्हें घर भेज दिया गया.

जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत 48 घंटे रखने का नियम
बलरामपुर जिले के सदर ब्लाक के नारायणपुर ग्रामसभा से आई छोटका ने 10 अगस्त को शाम 8:00 बजे बच्चे को जन्म दिया था, लेकिन वह हमें अपने बच्चे के साथ वार्ड के बाहर लॉबी में बैठी दिखाई दी. उनके साथ उनकी भाभी आरती व पति सुभाष भी आसपास ही दिखाई दिए. जब हमने इन लोगों से बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे यहां बिटिया का जन्म 8 बजे शाम के आसपास हुआ था. वार्ड में कुछ देर रखने के बाद आज सुबह ही हमें बाहर भेज दिया गया और अब हम अपने घर जाने की तैयारी कर रहे हैं.

जब हमने आरती से हमने पूछा कि जननी शिशु सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रसूता को 48 घंटे तक अस्पताल में रखने का नियम है फिर भी आपको डॉक्टर ने क्यों नहीं यहां रोका तो उन्होंने कहा कि हमें किसी ने रोका नहीं, बल्कि वार्ड से बाहर कर दिया गया. वार्ड के इंचार्ज ने हमें बाहर जाने को कहा तो हम लोग बाहर आकर सुबह से लेटे हुए हैं. हमें खाने-पीने की सुविधा तक नहीं प्रदान की गई है.

'बेटे की स्थिति है नाजुक'
मझौवा से आई सईदुलनिशा भी वार्ड के बाहर नीचे फर्श पर बैठी दिखाई दीं. उन्होंने बताया कि 10 तारीख को 12 बजे दोपहर में उन्होंने बेटे को जन्म दिया था. सुबह तकरीबन 9 बजे वार्ड से इंचार्ज ने बाहर कर दिया, जबकि इनका बेटा एसएनसीयू में भर्ती है. वह उल्टा पैदा हुआ था और उसकी स्थिति नाजुक बनी हुई है.

'बेड की है कमी'
अस्पताल की लचर व्यवस्था पर महिला चिकित्सालय की सीएमएस डॉ. विनीता राय कहना है कि हमारे यहां महज 30 बेड हैं. जहां पर प्रसूताओं को सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. जब कोई ज्यादा सीरियस मरीज आ जाता है तो हमें मजबूरन बेड खाली करवाना पड़ता है. उन्होंने बताया कि जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत यह एसओपी है कि किसी भी जच्चा-बच्चा को 48 घंटे तक मेडिकल ऑब्जर्वेशन में रखा जाए. लेकिन हमारे यहां दबाव ज्यादा है और बेड की सुविधाएं कम तो इसलिए कम सीरियस मरीजों को डॉक्टरों की सलाह के बाद उनके घर भेज दिया जाता है.

हम आपको बताते चलें कि जिला महिला चिकित्सालय में हर रोज औसतन 10 नवजातों का जन्म होता है. इसके साथ ही जिले भर से यहां क्रिटिकल कन्डीशन में आने वाले नवजातों के लिए एसएनसीयू भी स्थापित है. जिसे उत्तर प्रदेश में दूसरा रैंक हासिल है. इसके बावजूद भी यहां पर तमाम सुविधाओं की कमी है. यह अस्पताल जिला अस्पताल नहीं बल्कि एक सीएचसी के मानक पर रन किया जा रहा है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.