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हां दादी मैं तेरे साथ कब्र में भी चलूंगी...! - सड़क हादसे में प्रवासी मजदूर की मौत

कोरोना संकटकाल प्रवासी मजदूरों पर कहर बनकर टूट रहा है. हृदय विदारक घटनाओं से लॉकडाउन हर रोज नई दर्द भरी कहानियों की इबारत लिख रहा है. ताजा मामला यूपी के बलरामपुर का है, जहां एक दादी और 3 वर्षीय मासूम पोती की सड़क हादसे में मौत हो गई. परिजनों ने दोनों शवों को एक साथ एक ही कब्र में आपस-पास दफना दिया.

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इशरतजहां और उनकी पोती सौम्या.
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Published : May 19, 2020, 3:45 PM IST

Updated : May 21, 2020, 3:08 PM IST

बलरामपुरः जिले के पनवापुर गांव के रहने वाले रईस अहमद पिछले 10 वर्ष से अहमदाबाद में रहकर मजदूरी किया करते थे. लॉकडाउन शुरू होने से करीब दो हफ्ते पहले मां इशरतजहां को इलाज के लिए अहमदाबाद बुला लिया था. उनके साथ अहमद की 3 वर्षीय भतीजी सौम्या भी इशरत के साथ जिद्द करके अहमदाबाद चली आई. परिजन बताते हैं कि सौम्या जब उनके साथ कहीं जाने की जिद करती तो इशरत अक्सर सौम्या से पूछती थी कि 'क्या कब्र में भी पीछा नहीं छोड़ेगी' तो सौम्या कहती थी कि 'हां साथ ही चलूंगी'.

प्रवासी मजदूरों की कहानी.

लॉकडाउन शुरू हुआ तो करीब 50 दिन जैसे-तैसे परिवार के कट गए, लेकिन जब बचाकर रखे गए पैसे खत्म हो गए तो अहमद के सामने परेशानियां आ खड़ी हुई. किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर अपनी मां और 3 वर्षीय सौम्या को एक डीसीएम बुक कराकर गांव के 30 लोगों के साथ पनवापुर गांव के लिए भेज दिया. अभी डीसीएम कानपुर देहात ही पहुंची ही थी कि सड़क हादसे की शिकार हो गई. इस सड़क हादसे में इशरतजहां और सौम्या की मौत हो गई.

इसे भी पढ़ें- कानपुर देहात: DCM ने ट्रक को मारी टक्कर, 2 की मौत 60 घायल

मृतिका इशरत जहां के पति अकबर अली दादी और पोती के बीच के रिश्ते को याद करके भावुक हो जाते हैं. वह कहते हैं दादी-पोती के बीच इतना प्यार था कि सौम्या, इशरत का पीछा नहीं छोड़ती थी. दादी जहां भी जाती पोती सौम्या भी उसके साथ चल दिया करती थी. अक्सर इशरत पूछती कि क्या वह मेरे साथ क्रब में भी चलेगी तो सौम्या मासूम सा चेहरा बनाकर हां चलूंगी कह देती थी.

सड़क हादसे में हुई मौत के बाद परिजनों ने दादी-पोती के शव को कब्रिस्तान में अगल-बगल एक साथ दफना दिया गया. ऐसी ही कई जिंदगियों को निगल रहे कोरोना वायरस से जंग को तो हम जीत लेगें, लेकिन लॉकडाउन में असमय जा रही बेगुनाहों की जान और दिल को झकझोर देने वाली मार्मिक घटनाएं, इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएंगी. जब याद आएंगी तो दिलों को कचोटती रहेंगी.

बलरामपुरः जिले के पनवापुर गांव के रहने वाले रईस अहमद पिछले 10 वर्ष से अहमदाबाद में रहकर मजदूरी किया करते थे. लॉकडाउन शुरू होने से करीब दो हफ्ते पहले मां इशरतजहां को इलाज के लिए अहमदाबाद बुला लिया था. उनके साथ अहमद की 3 वर्षीय भतीजी सौम्या भी इशरत के साथ जिद्द करके अहमदाबाद चली आई. परिजन बताते हैं कि सौम्या जब उनके साथ कहीं जाने की जिद करती तो इशरत अक्सर सौम्या से पूछती थी कि 'क्या कब्र में भी पीछा नहीं छोड़ेगी' तो सौम्या कहती थी कि 'हां साथ ही चलूंगी'.

प्रवासी मजदूरों की कहानी.

लॉकडाउन शुरू हुआ तो करीब 50 दिन जैसे-तैसे परिवार के कट गए, लेकिन जब बचाकर रखे गए पैसे खत्म हो गए तो अहमद के सामने परेशानियां आ खड़ी हुई. किसी तरह पैसों का जुगाड़ कर अपनी मां और 3 वर्षीय सौम्या को एक डीसीएम बुक कराकर गांव के 30 लोगों के साथ पनवापुर गांव के लिए भेज दिया. अभी डीसीएम कानपुर देहात ही पहुंची ही थी कि सड़क हादसे की शिकार हो गई. इस सड़क हादसे में इशरतजहां और सौम्या की मौत हो गई.

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मृतिका इशरत जहां के पति अकबर अली दादी और पोती के बीच के रिश्ते को याद करके भावुक हो जाते हैं. वह कहते हैं दादी-पोती के बीच इतना प्यार था कि सौम्या, इशरत का पीछा नहीं छोड़ती थी. दादी जहां भी जाती पोती सौम्या भी उसके साथ चल दिया करती थी. अक्सर इशरत पूछती कि क्या वह मेरे साथ क्रब में भी चलेगी तो सौम्या मासूम सा चेहरा बनाकर हां चलूंगी कह देती थी.

सड़क हादसे में हुई मौत के बाद परिजनों ने दादी-पोती के शव को कब्रिस्तान में अगल-बगल एक साथ दफना दिया गया. ऐसी ही कई जिंदगियों को निगल रहे कोरोना वायरस से जंग को तो हम जीत लेगें, लेकिन लॉकडाउन में असमय जा रही बेगुनाहों की जान और दिल को झकझोर देने वाली मार्मिक घटनाएं, इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएंगी. जब याद आएंगी तो दिलों को कचोटती रहेंगी.

Last Updated : May 21, 2020, 3:08 PM IST
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