ETV Bharat / state

बलरामपुर: कैसे बढ़ेगा जिले में पर्यटन का डाटा, जब कागजों से विकास बाहर ही नहीं आता!

यूपी के बलरामपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. यहां करीब 80 हजार हेक्टेयर में वन्य क्षेत्र है. अधिकारियों की उदासीनता के चलते पर्यटन कागजों तक सिमट कर रह गया है. यहां पर पर्यटन को बढ़ावा मिलने से क्षेत्रीय विकास में तेजी आएगी. साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकता है.

बलरामपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं.
author img

By

Published : Oct 20, 2019, 9:42 AM IST

बलरामपुर: कहने को जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन यह महज कागजों में ही नजर आती हैं. यहां पर तकरीबन 80 हजार हेक्टेयर में वन्य क्षेत्र का फैलाव है. सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण है, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग है, जिसके अंतर्गत बलरामपुर जिले में कई बंधे और सरोवर आते हैं. साथ ही कई ऐसे स्थल हैं, जिन्हें चिह्नित कर नेचुरल टूरिज्म की संभावनाओं को काफी बल दिया जा सकता है. आला अधिकारियों की उदासीनता के कारण जिले का पर्यटन महज देवीपाटन शक्तिपीठ और कागजों तक सिमट कर रह गया है.

बलरामपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं.

क्या-क्या हैं संभावनाएं
अरावली पर्वत श्रृंखला और नेपाल राष्ट्र के नीचे बसे बलरामपुर जिले में 465 वर्ग किलोमीटर में सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग, भांभर रेंज जैसे विस्तृत जंगल और अभ्यारण स्थित हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण बलरामपुर जिले में तमाम तरह की नेचुरल टूरिज्म की संभावनाएं हैं. यहां पर कई ताल और सरोवर हैं, जहां ठंड के मौसम में तमाम प्रजातियों के पक्षी और जीव देश-विदेश से रुकने के लिए आते हैं. अगर जंगलों और सरोवरों के आस-पास यात्री सुविधाओं को विकसित किया जाए और उन्हें बेहतर ट्रांसपोर्ट के साथ साथ ठहरने-खाने पीने की व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाई जाए तो नेचर राफ्टिंग और नेचर वाकिंग को बढ़ावा मिल सकता है.

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी बलरामपुर जिला काफी विकसित है. बलरामपुर से ही कटकर अलग हुए श्रावस्ती जिले में सहेट-महेट और जेतवन स्थित है. यहां पर जैन और बौद्ध धर्म की दो महान विभूतियों ने तपस्या की थी. भगवान बुद्ध ने यहां पर तपस्या की थी, तो वहीं जैन धर्म के तीर्थंकर का जन्म यहीं पर हुआ था. इसके अलावा बलरामपुर जिले में देवीपाटन शक्तिपीठ, मां बिजलेश्वरी देवी मंदिर, उतरौला में ज्वाला महारानी मंदिर तो जंगल के बीच स्थित रहिया देवी मंदिर में धार्मिक पर्यटन की तमाम संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं.

इसे भी पढ़ें:- विश्व पर्यटन दिवस: मुराद पूरी होने पर अकबर ने बसाई थी फतेहपुर सीकरी

अगर सांस्कृतिक पर्यटन की बात करें तो इस मामले में भी बलरामपुर काफी धनी नजर आता है. बलरामपुर जिले के 50 गांवों में थारू जनजाति निवास करती है. थारू जनजाति की अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत रही है, जो अब धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण विलुप्त हो रही है. अगर सरकार इस पर ध्यान दे तो यहां पर सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे न केवल थारू जनजाति को लाभ होगा, बल्कि इनकी सांस्कृतिक विरासत भी फलने फूलने लगेगी.


प्रभागीय वन अधिकारी ने दी जानकारी
प्रभागीय वन अधिकारी रजनीकांत मित्तल ने बताया कि इको टूरिज्म, कल्चर टूरिज्म, स्पिरिचुअल टूरिज्म के लिए बलरामपुर जिले में काफी संभावनाएं हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि यहां पर यह सारी चीजें मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि विकास के लिए लगातार काम कर रहे हैं. तमाम तरह के प्रस्ताव शासन स्तर पर भेजे जा चुके हैं. कुछ में अप्रूवल भी आ गया है. जल्द से काम शुरू करवाकर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा, जिससे जिले में पर्यटक आने के लिए आकर्षित हो और पर्यटन के डाटा में सुधार लाया जा सके.

बलरामपुर: कहने को जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन यह महज कागजों में ही नजर आती हैं. यहां पर तकरीबन 80 हजार हेक्टेयर में वन्य क्षेत्र का फैलाव है. सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण है, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग है, जिसके अंतर्गत बलरामपुर जिले में कई बंधे और सरोवर आते हैं. साथ ही कई ऐसे स्थल हैं, जिन्हें चिह्नित कर नेचुरल टूरिज्म की संभावनाओं को काफी बल दिया जा सकता है. आला अधिकारियों की उदासीनता के कारण जिले का पर्यटन महज देवीपाटन शक्तिपीठ और कागजों तक सिमट कर रह गया है.

बलरामपुर में पर्यटन की अपार संभावनाएं.

क्या-क्या हैं संभावनाएं
अरावली पर्वत श्रृंखला और नेपाल राष्ट्र के नीचे बसे बलरामपुर जिले में 465 वर्ग किलोमीटर में सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग, भांभर रेंज जैसे विस्तृत जंगल और अभ्यारण स्थित हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण बलरामपुर जिले में तमाम तरह की नेचुरल टूरिज्म की संभावनाएं हैं. यहां पर कई ताल और सरोवर हैं, जहां ठंड के मौसम में तमाम प्रजातियों के पक्षी और जीव देश-विदेश से रुकने के लिए आते हैं. अगर जंगलों और सरोवरों के आस-पास यात्री सुविधाओं को विकसित किया जाए और उन्हें बेहतर ट्रांसपोर्ट के साथ साथ ठहरने-खाने पीने की व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाई जाए तो नेचर राफ्टिंग और नेचर वाकिंग को बढ़ावा मिल सकता है.

धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी बलरामपुर जिला काफी विकसित है. बलरामपुर से ही कटकर अलग हुए श्रावस्ती जिले में सहेट-महेट और जेतवन स्थित है. यहां पर जैन और बौद्ध धर्म की दो महान विभूतियों ने तपस्या की थी. भगवान बुद्ध ने यहां पर तपस्या की थी, तो वहीं जैन धर्म के तीर्थंकर का जन्म यहीं पर हुआ था. इसके अलावा बलरामपुर जिले में देवीपाटन शक्तिपीठ, मां बिजलेश्वरी देवी मंदिर, उतरौला में ज्वाला महारानी मंदिर तो जंगल के बीच स्थित रहिया देवी मंदिर में धार्मिक पर्यटन की तमाम संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं.

इसे भी पढ़ें:- विश्व पर्यटन दिवस: मुराद पूरी होने पर अकबर ने बसाई थी फतेहपुर सीकरी

अगर सांस्कृतिक पर्यटन की बात करें तो इस मामले में भी बलरामपुर काफी धनी नजर आता है. बलरामपुर जिले के 50 गांवों में थारू जनजाति निवास करती है. थारू जनजाति की अपनी ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत रही है, जो अब धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण विलुप्त हो रही है. अगर सरकार इस पर ध्यान दे तो यहां पर सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है. इससे न केवल थारू जनजाति को लाभ होगा, बल्कि इनकी सांस्कृतिक विरासत भी फलने फूलने लगेगी.


प्रभागीय वन अधिकारी ने दी जानकारी
प्रभागीय वन अधिकारी रजनीकांत मित्तल ने बताया कि इको टूरिज्म, कल्चर टूरिज्म, स्पिरिचुअल टूरिज्म के लिए बलरामपुर जिले में काफी संभावनाएं हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि यहां पर यह सारी चीजें मौजूद हैं. उन्होंने कहा कि विकास के लिए लगातार काम कर रहे हैं. तमाम तरह के प्रस्ताव शासन स्तर पर भेजे जा चुके हैं. कुछ में अप्रूवल भी आ गया है. जल्द से काम शुरू करवाकर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा, जिससे जिले में पर्यटक आने के लिए आकर्षित हो और पर्यटन के डाटा में सुधार लाया जा सके.

Intro:कहने को तो बलरामपुर जिले में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन यह महज काग़ज़ों में ही नज़र आती हैं। यहां पर तकरीबन 80,000 हेक्टेयर में वन्य क्षेत्र का फैलाव है। सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण है। सुहेलवा वन्यजीव प्रभाग है, जिसके अंतर्गत बलरामपुर जिले में कई बंधे और कई सरोवर आते हैं। इसके साथ ही कई ऐसे स्थल हैं, जिन्हें चिन्हित करके नेचुरल टूरिज्म की संभावनाओं को काफी बल दिया जा सकता है। अगर यात्री सुविधाओं को बढ़ाया जा सके तो पर्यटन के मानचित्र में बलरामपुर का डाटा भी सुधर सकता है। लेकिन आला-अधिकारियों की उदासीनता व शासन की हिलाहवाली के कारण बलरामपुर जिले का पर्यटन महज देवीपाटन शक्तिपीठ व काग़ज़ों तक सिमट कर ही रह गया है।


Body:क्या क्या हैं संभावनाएं :-
अरावली पर्वत श्रृंखला और नेपाल राष्ट्र के ठीक नीचे बसे बलरामपुर जिले में 465 वर्ग किलोमीटर में सुहेलदेव वन्य जीव अभ्यारण, सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग, भाँभर रेंज जैसे विस्तृत जंगल और अभ्यारण स्थित है। पहाड़ी इलाका होने के कारण बलरामपुर जिले में तमाम तरह की नेचुरल टूरिज्म की संभावनाएं हैं। इसके साथ यहां पर आधा दर्जन ऐसे ताल व सरोवर हैं, जहां पर ठंड के मौसम में तमाम प्रजातियों के पक्षी व जीव देश-विदेश से रुकने के लिए आते हैं। अगर जंगलों और सरोवरों के आसपास यात्री सुविधाओं को विकसित किया जाए और उन्हें बेहतर टांसपोर्ट के साथ साथ ठहरने-खाने पीने की व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाई जाए तो नेचर राफ्टिंग और नेचर वाकिंग की बढ़ावा मिल सकता है।
वहीं, धार्मिक पर्यटन के लिहाज से भी बलरामपुर जिला काफी विकसित है। बलरामपुर से ही कटकर अलग हुए है श्रावस्ती जिले में सहेट-महेट और जेतवन स्थित है। जहां पर जैन और बौद्ध धर्म के दो महान विभूतियों ने तपस्या की थी। भगवान बुद्ध ने यहां पर तपस्या की थी तो वहीं जैन धर्म के तीर्थंकर का जन्म यहीं पर हुआ था। इसके अलावा बलरामपुर जिले में देवीपाटन शक्तिपीठ, मां बिजलेश्वरी देवी मंदिर, उतरौला में ज्वाला महारानी मंदिर तो जंगल के बीचोंबीच स्थित रहिया देवी मंदिर में धार्मिक पर्यटन की तमाम संभावनाएं तलाशी जा सकती है।
अगर, सांस्कृतिक पर्यटन की बात करें तो इस मामले में भी बलरामपुर काफी धनी नजर आता है। बलरामपुर जिले के 50 गांवों में थारू जनजाति का निवास करती हैं। थारू जनजाति की अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत रही है। जो अब धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण विलुप्त हो रही है। आधुनिकता दीमक की तरह इसे भी चाट रहा है। अगर सरकार इन ध्यान दें तो संस्कृति के आदान-प्रदान के लिए यहां पर सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। जिससे न केवल थारू जनजाति को लाभ होगा। बल्कि इनकी सांस्कृतिक विरासत भी फलने फूलने लगेगी।


Conclusion:इस बारे में बात करते हुए सुहेलदेव वन्यजीव प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी रजनीकांत मित्तल बताते हैं कि इको टूरिज्म, कल्चरल टूरिज्म, स्प्रिचुअल टूरिज्म के लिए बलरामपुर जिले में काफी संभावनाएं हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि यहां पर यह सारी चीजें मौजूद है।
वह कहते हैं कि हमने विकसित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। तमाम तरह के प्रस्ताव शासन स्तर पर भेजे जा चुके हैं। कुछ में अप्रूवल भी आ गया है। जल्द से जल्द काम शुरू करवा कर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार भी किया जाएगा। जिससे बलरामपुर जिले में पर्यटक आने के लिए आकर्षित हो और पर्यटन के डाटा में सुधार लाया जा सके।

अधिकारी कुछ भी कहे लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी बलरामपुर जिला विकास के मामले में तो नीति आयोग के काम करने के बाद थोड़ा बहुत आगे बढ़ रहा है। लेकिन पर्यटन के मामले में जस का तस वही खड़ा है। यहां पर पर्यटन को बढ़ावा मिलने से न केवल क्षेत्रीय विकास में तेजी आ सकती हैं। बल्कि यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकता है। जिसके लिए लोग बड़े पैमाने पर पलायन करते हैं। बलरामपुर जिले की गरीबी को दूर करने में भी पर्यटन काफी मददगार साबित हो सकता है। जब पर्यटक आएंगे और उन्हें सुविधाएं मिलेंगी तो खुद ब खुद आसपास के क्षेत्रों में रहने वालों के लिए व्यापार और अन्य चीजों की संभावनाएं भी पैदा होंगी। जिससे तमाम समस्याओं का खुद-ब-खुद हल निकल सकेगा।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.