बलरामपुर: सावन माह में यूं तो हर शिव मंदिर हर शिवाला गुलजार रहता है, लेकिन इस शिव मंदिर की खासियत और महत्वता कुछ और हैं. लोक मान्यताओं के अनुसार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे द्वैतवन क्षेत्र के मिडकिया ग्रामसभा में बाबा विभूतिनाथ के धाम से कोई खाली हाथ नहीं जाता.
मंदिर के प्रति लोगों की मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार इस शिव मंदिर की स्थापना महाभारत काल में कुंती पुत्र भीम द्वारा की गई थी. उस समय पांडव पुत्र कुछ दिनों के लिए यहां पर वनवास के दौरान रुके थे. यहीं से उनका वनवास खत्म होकर अज्ञातवास शुरू हुआ. इसलिए इस मंदिर में आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि परिसर में स्थित सरोवर के जल और सफेद कमल के फूल से अभिषेक करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.
शिवरात्रि पर होती है लाखों की भीड़
क्योंकि ये एक शिव मंदिर है, जाहिर सी बात है कि यहां सावन में पर भक्तों की भीड़ भी होगी, लेकिन मंदिर के पुजारी की मानें तो यहां हर सावन में पर लाखों लोगों की भीड़ होती है. शिवरात्री के दिन विभूति नाथ मंदिर में लाखों भक्त शिव का जलाभिषेक करते हैं.
विभूति नाथ मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी और यहीं से वाहनों अज्ञातवास के लिए चले गए थे. मंदिर के उत्तर में स्थित सरोवर है जहां युधिष्ठिर और यक्ष के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिससे प्रसन्न होकर सभी भाइयों को जीवनदान दिया था और पांडव पुत्रों को अज्ञातवास के लिए विराट नगरी का पता बताया था.
यह सब पता चलने पर दुर्योधन और कर्ण पांडवों को खोजते हुए द्वैत बनाए थे और विभूति नाथ मंदिर के आसपास रमणीय स्थान देखकर कुछ समय तक यहां रुककर तपस्या भी की थी. उन्होंने पानी की किल्लत को देखते हुए भगवान शिव से पानी के लिए प्रार्थना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदिर के पास दो जल स्त्रोत उत्पन्न किए थे. कहा जाता है कि इन जल स्त्रोतों से आज भी पानी निकलता रहता है और इसका पानी कभी भी समाप्त नहीं होता जबकि दोनों स्थानों पर जल स्रोत के स्थान पर महज छोटे-छोटे गड्ढे हैं.
विभूति नाथ मंदिर हजारों साल पुराना है. इसकी स्थापना पांडव पुत्रों द्वारा की गई थी. इस मंदिर में न केवल मुगलों के कई आक्रमण खेले बल्कि इतिहास की कई गाथाओं को अपने अंदर समेटे हुए है.
-शिवनाथ गिरि, मंदिर के महंत