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इस मंदिर में होती हैं मनोकामनाएं पूरी, शिवलिंग पर जलाभिषेक के लिए आते हैं लाखों भक्त

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में स्थित विभूति नाथ मंदिर में हर साल सावन में लाखों की संख्या में भक्त मंदिर में स्थापित 4 फुट ऊंचे शिवलिंग का जलाभिषेक करने आते हैं. ये मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं के लिए प्रसिद्ध है और लोगों में इसके प्रति काफी मान्यताएं हैं.

विभूति नाथ मंदिर में लाखों की संख्या में आते हैं भक्त.
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Published : Jul 28, 2019, 10:12 AM IST

बलरामपुर: सावन माह में यूं तो हर शिव मंदिर हर शिवाला गुलजार रहता है, लेकिन इस शिव मंदिर की खासियत और महत्वता कुछ और हैं. लोक मान्यताओं के अनुसार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे द्वैतवन क्षेत्र के मिडकिया ग्रामसभा में बाबा विभूतिनाथ के धाम से कोई खाली हाथ नहीं जाता.

मंदिर के प्रति लोगों की मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार इस शिव मंदिर की स्थापना महाभारत काल में कुंती पुत्र भीम द्वारा की गई थी. उस समय पांडव पुत्र कुछ दिनों के लिए यहां पर वनवास के दौरान रुके थे. यहीं से उनका वनवास खत्म होकर अज्ञातवास शुरू हुआ. इसलिए इस मंदिर में आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि परिसर में स्थित सरोवर के जल और सफेद कमल के फूल से अभिषेक करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

विभूति नाथ मंदिर में लाखों की संख्या में आते हैं भक्त.

शिवरात्रि पर होती है लाखों की भीड़
क्योंकि ये एक शिव मंदिर है, जाहिर सी बात है कि यहां सावन में पर भक्तों की भीड़ भी होगी, लेकिन मंदिर के पुजारी की मानें तो यहां हर सावन में पर लाखों लोगों की भीड़ होती है. शिवरात्री के दिन विभूति नाथ मंदिर में लाखों भक्त शिव का जलाभिषेक करते हैं.

विभूति नाथ मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी और यहीं से वाहनों अज्ञातवास के लिए चले गए थे. मंदिर के उत्तर में स्थित सरोवर है जहां युधिष्ठिर और यक्ष के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिससे प्रसन्न होकर सभी भाइयों को जीवनदान दिया था और पांडव पुत्रों को अज्ञातवास के लिए विराट नगरी का पता बताया था.

यह सब पता चलने पर दुर्योधन और कर्ण पांडवों को खोजते हुए द्वैत बनाए थे और विभूति नाथ मंदिर के आसपास रमणीय स्थान देखकर कुछ समय तक यहां रुककर तपस्या भी की थी. उन्होंने पानी की किल्लत को देखते हुए भगवान शिव से पानी के लिए प्रार्थना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदिर के पास दो जल स्त्रोत उत्पन्न किए थे. कहा जाता है कि इन जल स्त्रोतों से आज भी पानी निकलता रहता है और इसका पानी कभी भी समाप्त नहीं होता जबकि दोनों स्थानों पर जल स्रोत के स्थान पर महज छोटे-छोटे गड्ढे हैं.

विभूति नाथ मंदिर हजारों साल पुराना है. इसकी स्थापना पांडव पुत्रों द्वारा की गई थी. इस मंदिर में न केवल मुगलों के कई आक्रमण खेले बल्कि इतिहास की कई गाथाओं को अपने अंदर समेटे हुए है.
-शिवनाथ गिरि, मंदिर के महंत

बलरामपुर: सावन माह में यूं तो हर शिव मंदिर हर शिवाला गुलजार रहता है, लेकिन इस शिव मंदिर की खासियत और महत्वता कुछ और हैं. लोक मान्यताओं के अनुसार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे द्वैतवन क्षेत्र के मिडकिया ग्रामसभा में बाबा विभूतिनाथ के धाम से कोई खाली हाथ नहीं जाता.

मंदिर के प्रति लोगों की मान्यताएं
मान्यताओं के अनुसार इस शिव मंदिर की स्थापना महाभारत काल में कुंती पुत्र भीम द्वारा की गई थी. उस समय पांडव पुत्र कुछ दिनों के लिए यहां पर वनवास के दौरान रुके थे. यहीं से उनका वनवास खत्म होकर अज्ञातवास शुरू हुआ. इसलिए इस मंदिर में आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है कि परिसर में स्थित सरोवर के जल और सफेद कमल के फूल से अभिषेक करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है.

विभूति नाथ मंदिर में लाखों की संख्या में आते हैं भक्त.

शिवरात्रि पर होती है लाखों की भीड़
क्योंकि ये एक शिव मंदिर है, जाहिर सी बात है कि यहां सावन में पर भक्तों की भीड़ भी होगी, लेकिन मंदिर के पुजारी की मानें तो यहां हर सावन में पर लाखों लोगों की भीड़ होती है. शिवरात्री के दिन विभूति नाथ मंदिर में लाखों भक्त शिव का जलाभिषेक करते हैं.

विभूति नाथ मंदिर का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी और यहीं से वाहनों अज्ञातवास के लिए चले गए थे. मंदिर के उत्तर में स्थित सरोवर है जहां युधिष्ठिर और यक्ष के बीच शास्त्रार्थ हुआ था, जिससे प्रसन्न होकर सभी भाइयों को जीवनदान दिया था और पांडव पुत्रों को अज्ञातवास के लिए विराट नगरी का पता बताया था.

यह सब पता चलने पर दुर्योधन और कर्ण पांडवों को खोजते हुए द्वैत बनाए थे और विभूति नाथ मंदिर के आसपास रमणीय स्थान देखकर कुछ समय तक यहां रुककर तपस्या भी की थी. उन्होंने पानी की किल्लत को देखते हुए भगवान शिव से पानी के लिए प्रार्थना की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदिर के पास दो जल स्त्रोत उत्पन्न किए थे. कहा जाता है कि इन जल स्त्रोतों से आज भी पानी निकलता रहता है और इसका पानी कभी भी समाप्त नहीं होता जबकि दोनों स्थानों पर जल स्रोत के स्थान पर महज छोटे-छोटे गड्ढे हैं.

विभूति नाथ मंदिर हजारों साल पुराना है. इसकी स्थापना पांडव पुत्रों द्वारा की गई थी. इस मंदिर में न केवल मुगलों के कई आक्रमण खेले बल्कि इतिहास की कई गाथाओं को अपने अंदर समेटे हुए है.
-शिवनाथ गिरि, मंदिर के महंत

Intro:सावन माह में यूं तो हर शिव मंदिर हर शिवाला गुलजार रहता है। लेकिन इस शिव मंदिर की खासियत और महत्वता कुछ और है लोक मान्यताओं के अनुसार हिमालय पर्वत की तलहटी में बसे द्वैतवन क्षेत्र के मिडकिया ग्रामसभा में बाबा विभूतिनाथ के धाम से कोई खाली हाथ नहीं जाता। मान्यताओं के अनुसार इस शिव मंदिर की स्थापना महाभारत काल में कुंती पुत्र भीम द्वारा की गई थी। उस समय पांडव पुत्र कुछ दिनों के लिए यहां पर वनवास के दौरान रुके थे। यहीं से उनका खत्म होकर अज्ञातवास शुरू हुआ था।


Body:उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती और बलरामपुर जिले के बॉर्डर पर स्थित प्राचीन द्वैतवन क्षेत्र जोकि कि अब सुहेलवा वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत आता है। यही के मिडकिया ग्रामसभा में विभूतिनाथ मंदिर आसपास के शिव भक्तों के लिए आस्था का अद्वितीय केंद्र है। विभूति नाथ मंदिर में हर सावन मास, सोमवार, बुधवार, तेरस, अमावस्या, कजरीतीज, मरमास और शिवरात्रि पर लाखों भक्तों की भीड़ लगती है। इस दौरान शिव भक्ति यहां पर जलाभिषेक करते हैं।
यहां ऐसी मान्यता है कि परिसर में स्थित सरोवर के जल और सफेद कमल के फूल से अभिषेक करने पर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। शायद यही वजह है कि पूरे सावन में यहां पर लाखों भक्तों की भीड़ जमा होती है।
क्या है इतिहास :- विभूति नाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोग बताते हैं की इस शिवलिंग की स्थापना पांडव पुत्र भीम ने अपने वनवास के अंतिम चरण में की थी और यहीं से वाहनों अज्ञातवास के लिए चले गए थे लोग बताते हैं कि विभूति नाथ के उत्तर में स्थित सरोवर कहा जाता है यहीं पर युधिष्ठिर और यक्ष के बीच शास्त्रार्थ हुआ था जिससे प्रसन्न होकर सभी भाइयों को जीवनदान दिया था और पांडव पुत्रों को अज्ञातवास के लिए विराट नगरी का पता बताया था।
मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि यह सब पता चलने पर दुर्योधन और कर्ण पांडवों को खोजते हुए द्वैत बनाए थे और विभूति नाथ मंदिर के आसपास रमणीय स्थान देखकर कुछ समय तक यहां रुककर तपस्या भी की थी पानी की किल्लत को देखते हुए भगवान शिव से पानी के लिए प्रार्थना की थी इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मंदिर के पास दो जल स्त्रोत उत्पन्न किए थे जिनमें से आज भी पानी निकलता रहता है और इसका पानी कभी भी समाप्त नहीं होता जबकि दोनों स्थानों पर जल स्रोत के स्थान पर महज छोटे-छोटे गड्ढ़े हैं।


Conclusion:मंदिर के महंत शिवनाथ गिरी बताते हैं कि यशोमंदिर हजारों साल पुराना है। इसकी स्थापना पांडव पुत्रों द्वारा की गई थी। इस मंदिर में न केवल मुगलों के कई आक्रमण खेले बल्कि इतिहास की कई गाथाओं को अपने अंदर समेटे हुए है।
वह बताते हैं कि यहां पर हर सावन तथा अन्य शिव उत्सव पर भारी भीड़ होती है। भक्त यहीं के शिव और पार्वती सरोवर से जलभर कर भगवान विभूति नाथ को अर्पण करते हैं। यहां पर जो भी आता है वह खाली हाथ नहीं जाता।
वहीं मंदिर की महत्वता बताते हुए मुख्य व्यवस्थापक ओम नाथ पुरी उर्फ पांडे बाबा कहते हैं कि इस मंदिर पर मुगलों द्वारा कई बार आक्रमण किया गया। इस मंदिर पर न केवल इल्तुतमिश ने आक्रमण करवाया बल्कि औरंगजेब और रजिया सुल्तान ने भी कई बार आक्रमण किया था। बाबा विभूति नाथ के श्राप से ग्रसित होकर रजिया ने न केवल यक्ष सरोवर की साफ-सफाई करवाई थी। बल्कि वह श्राप से बाहर निकलने के लिए रोजाना 7 बार भगवान शिव को जल भी अर्पित करती थी।
वह कहते हैं कि आक्रमण की बात इसी से पता चल जाती है क्योंकि शिवलिंग पर कई जगह कटे के निशान है। लोग बताते हैं कि जब आक्रमण किया गया था। तब शिवलिंग के ऊपर आरा चलाया गया था। जिसके बाद खून की धार बह निकली थी।

बाईट :-
01 :- शिवनाथ गिरी, मंदिर के महंत
02 :- ओम नाथ पुरी उर्फ पांडे बाबा, व्यवस्थापक
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