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लॉकडाउन: विधवा रीना-गीता की ये है कहानी, कुछ ऐसे कट रही जिंदगानी

कोरोना संकट में जारी लॉकडाउन से कई परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है. खासकर रोज कमाने खाने वाले परिवार ज्यादा परेशान हैं. इसी तरह कुछ बलिया में देखने को मिला. जहां दो विधवा महिलाएं रीना और गीता सिलाई का काम कर गुजर बसर कर रही थीं, लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें संकट में लाकर खड़ा कर दिया.

लॉकडाउन ने रोकी विधवा महिलाओं के सिलाई मशीन की रफ्तार.
लॉकडाउन ने रोकी विधवा महिलाओं के सिलाई मशीन की रफ्तार.
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Published : Apr 28, 2020, 4:34 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

बलिया: लॉकडाउन का एक महीना से ज्यादा का वक्त बीत गया है. इस एक महीने के बीतने पर धीरे-धीरे लोगों का सब्र टूटता जा रहा है. मजदूर और छोटे-मोटे काम कर जीविका कमाकर परिवार का पेट पालने वाले वर्ग को अब काफी समस्या होने लगी है. खास तौर से विधवा महिलाओं के सामने तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा है. बलिया में भी कुछ ऐसी विधवा महिलाएं हैं जो सिलाई का काम कर अपने परिवार को चलाती रही हैं, लेकिन लॉकडाउन ने उनके सिलाई मशीन के पहिए की रफ्तार को ग्रहण लगा दिया.

बलिया की दो महिलाओं पर लॉकडाउन का असर

लॉकडाउन ने लगाया खुशियों पर ग्रहण

जिले में गुदरी बाजार इलाके की रहने वाली रीना देवी अपने दो बच्चों और बूढ़ी सास के साथ रहती हैं. बढ़ती महंगाई के बीच चार लोगों का यह परिवार थोड़ी आमदनी में ही खुश था, लेकिन कोरोना संकट में जारी लॉकडाउन से न केवल घर की खुशियों को ग्रहण लगा है, बल्कि कमाई का जरिया भी बंद हो गया. पति की मृत्यु के बाद से ही रीना के कंधो पर घर की जिम्मेदारी आ गई, बचपन में सीखी सिलाई कड़ाई को अपना हथियार बनाकर वह परिवार की गाड़ी को चलाना शुरू किया, लेकिन अब लॉकडाउन में सिलाई का काम न आने पर परिवार की जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो रहा है.

विधवा महिलाओं के सामने गृहस्थी चलाने का संकट

रीना बताती हैं कि घर गृहस्थी सहित अन्य काम सिलाई से ही चल पाता था. लॉकडाउन के शुरुआत में तो हालात सामान्य थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा है, समस्या गहराती जा रही. वह लेडीज कपड़े सिलकर महीने में लगभग 3,000 रुपये तक कमा लेती थीं, लेकिन अब उनके जैसी तमाम अन्य महिलाएं भी खासा परेशान हैं. उनकी सरकार से मांग है कि उन जैसी महिलाओं को मास्क बनाने का काम दें, जिससे घर का खर्चा और गृहस्थी चलाने के लिए कुछ रुपये मिल सकें.

रीना की तरह गीता गुप्ता भी लॉकडाउन में हैं खासा परेशान

रीना की तरह गीता गुप्ता भी विधवा हैं. घर में तीन बेटियां और सास की जिम्मेदारी का भार गीता पर ही है. गीता भी रीना की तरह सिलाई का काम करती हैं, लेकिन कोरोना वायरस के कारण मुफलिसी ने ऐसा घेरा कि न तो सिलाई मशीन चल पा रही है और न घर के खर्चे. पति की मृत्यु के बाद से गीता ने सिलाई का काम शुरू किया. तीन बेटियों की पढ़ाई और सास की बीमारी की चिंता गीता को अंदर ही अंदर खाए जा रही है. लॉकडाउन में टेलरिंग का काम बंद है, ऐसे में घर की जरूरतें पूरी कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है.

प्रशासन से मास्क तैयार करने की रखी मांग

गीता ने बताया कि सरकार की ओर से राशन उपलब्ध हो गया है, लेकिन सिर्फ रोटी खाने से पेट नहीं भरता, उसके साथ सब्जियों की भी जरूरत होती है. गीता ने बताया कि थोड़ा बहुत सिलाई और लोगों के सहयोग से घर चल जाता था, लेकिन अब लॉकडाउन की वजह से सिलाई का ऑर्डर नहीं आ रहा है. गीता ने भी जिला प्रशासन से मांग रखी है कि विधवा महिलाओं को घर चलाने के लिए मास्क तैयार करने का काम उपलब्ध कराया जाए.

बलिया: लॉकडाउन का एक महीना से ज्यादा का वक्त बीत गया है. इस एक महीने के बीतने पर धीरे-धीरे लोगों का सब्र टूटता जा रहा है. मजदूर और छोटे-मोटे काम कर जीविका कमाकर परिवार का पेट पालने वाले वर्ग को अब काफी समस्या होने लगी है. खास तौर से विधवा महिलाओं के सामने तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा है. बलिया में भी कुछ ऐसी विधवा महिलाएं हैं जो सिलाई का काम कर अपने परिवार को चलाती रही हैं, लेकिन लॉकडाउन ने उनके सिलाई मशीन के पहिए की रफ्तार को ग्रहण लगा दिया.

बलिया की दो महिलाओं पर लॉकडाउन का असर

लॉकडाउन ने लगाया खुशियों पर ग्रहण

जिले में गुदरी बाजार इलाके की रहने वाली रीना देवी अपने दो बच्चों और बूढ़ी सास के साथ रहती हैं. बढ़ती महंगाई के बीच चार लोगों का यह परिवार थोड़ी आमदनी में ही खुश था, लेकिन कोरोना संकट में जारी लॉकडाउन से न केवल घर की खुशियों को ग्रहण लगा है, बल्कि कमाई का जरिया भी बंद हो गया. पति की मृत्यु के बाद से ही रीना के कंधो पर घर की जिम्मेदारी आ गई, बचपन में सीखी सिलाई कड़ाई को अपना हथियार बनाकर वह परिवार की गाड़ी को चलाना शुरू किया, लेकिन अब लॉकडाउन में सिलाई का काम न आने पर परिवार की जरूरतें पूरी करना मुश्किल हो रहा है.

विधवा महिलाओं के सामने गृहस्थी चलाने का संकट

रीना बताती हैं कि घर गृहस्थी सहित अन्य काम सिलाई से ही चल पाता था. लॉकडाउन के शुरुआत में तो हालात सामान्य थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा है, समस्या गहराती जा रही. वह लेडीज कपड़े सिलकर महीने में लगभग 3,000 रुपये तक कमा लेती थीं, लेकिन अब उनके जैसी तमाम अन्य महिलाएं भी खासा परेशान हैं. उनकी सरकार से मांग है कि उन जैसी महिलाओं को मास्क बनाने का काम दें, जिससे घर का खर्चा और गृहस्थी चलाने के लिए कुछ रुपये मिल सकें.

रीना की तरह गीता गुप्ता भी लॉकडाउन में हैं खासा परेशान

रीना की तरह गीता गुप्ता भी विधवा हैं. घर में तीन बेटियां और सास की जिम्मेदारी का भार गीता पर ही है. गीता भी रीना की तरह सिलाई का काम करती हैं, लेकिन कोरोना वायरस के कारण मुफलिसी ने ऐसा घेरा कि न तो सिलाई मशीन चल पा रही है और न घर के खर्चे. पति की मृत्यु के बाद से गीता ने सिलाई का काम शुरू किया. तीन बेटियों की पढ़ाई और सास की बीमारी की चिंता गीता को अंदर ही अंदर खाए जा रही है. लॉकडाउन में टेलरिंग का काम बंद है, ऐसे में घर की जरूरतें पूरी कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है.

प्रशासन से मास्क तैयार करने की रखी मांग

गीता ने बताया कि सरकार की ओर से राशन उपलब्ध हो गया है, लेकिन सिर्फ रोटी खाने से पेट नहीं भरता, उसके साथ सब्जियों की भी जरूरत होती है. गीता ने बताया कि थोड़ा बहुत सिलाई और लोगों के सहयोग से घर चल जाता था, लेकिन अब लॉकडाउन की वजह से सिलाई का ऑर्डर नहीं आ रहा है. गीता ने भी जिला प्रशासन से मांग रखी है कि विधवा महिलाओं को घर चलाने के लिए मास्क तैयार करने का काम उपलब्ध कराया जाए.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST
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