बलिया: देश की राजनीति में बलिया का अहम योगदान रहा है और बागी बलिया को पूरे देश में पहचान दिलाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को याद किया जाता है. चंद्रशेखर 1977 से 2004 तक (1984 को छोड़कर) बलिया से सांसद रहे. उनकी मृत्यु के बाद उनके छोटे बेटे नीरज शेखर ने राजनीतिक विरासत को संभाला और सांसद भी बने, लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में नीरज शेखर की जगह सनातन पांडे सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. कहीं ये बलिया की सियासत में बदलाव की शुरुआत तो नहीं...
बलिया लोकसभा चुनाव 2019 के प्रत्याशी
भाजपा और सपा दोनों ने ही अबकी उम्मीदवार बदले हैं. भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से पिछली बार के विजयी उम्मीदवार को सीट न देते हुए वीरेंद्र सिंह मस्त को अपना उम्मीदवार बनाया है. लंबी खींचतान के बाद आखिरकार समाजवादी पार्टी ने सनातन पांडेय को अपना टिकट दिया है. इस सीट पर इस बार पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) ने भी ताल ठोकी है. उनके उम्मीदवार अमरजीत यादव पर दांव लगाया है. यहां लोकसभा चुनाव 2019 के सातवें चरण में आगामी 19 मई को वोटिंग होगी.
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र मिश्र ने कहा कि :
- अपने बगावती तेवर के लिए पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना चुके पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर 1977 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर संसद पहुंचे.
- पूर्व पीएम बलिया से 9 बार सांसद का चुनाव लड़े, जिनमें सिर्फ 1984 में उन्हें इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद आई लहर में हार का सामना करना पड़ा था.
- बलिया के लोगों ने युवा तुर्क और धारा के विपरीत राजनीति करने वाले चंद्रशेखर को 8 बार अपने जिले का सांसद बनने का गौरव भी दिया.
- चंद्रशेखर प्रधानमंत्री भी बने और 2004 में उन्होंने अपना अंतिम लोकसभा का चुनाव भी जीता.
- पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद उनकी राजनीतिक विरासत उनके छोटे बेटे नीरज शेखर को मिली.
- बलिया के उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें 2009 में पुनः बलिया से प्रत्याशी बनाया.
सपा ने नीरज शेखर पर खेला था दांव:
- इस बार भी नीरज शेखर को बलिया के लोगों का पूरा प्यार मिला और करीब 72000 से अधिक वोटों से उन्होंने जीत दर्ज की.
- साल 2014 समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर नीरज शेखर पर दांव खेला.
- बलिया से सपा के टिकट पर प्रत्याशी बनाया लेकिन इस बार देश में नरेंद्र मोदी नाम का फैक्टर चल पड़ा था.
- यूपी ही नहीं देश में मोदी लहर का इंपैक्ट साफ दिखा.
- बलिया की राजनीति में पहली बार कमल खिलने का मौका मिला.
- भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह ने पहली बार बलिया में भाजपा को जीत दिलाई.
2019 में बदल चुका है राजनीतिक समीकरण:
- 2019 में राजनीतिक समीकरण बदल चुके हैं.
- समाजवादी पार्टी का अपने चिर प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन भी हो गया.
- ऐसे में बलिया की सीट पर प्रत्याशी उतारने के लिए पार्टी को काफी मंथन करना पड़ा.
- नामांकन के 1 दिन पहले सपा हाईकमान ने नीरज शेखर के नाम पर विराम लगाते हुए पूर्व विधायक सनातन पांडे को गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर बलिया से टिकट दिया.
- बलिया में जहां गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर सनातन पांडे सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में है.
- भाजपा ने वर्तमान सांसद भरत सिंह के जगह किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भदोही से सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त को बलिया से प्रत्याशी बनाया है.
बलिया लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
बलिया जैसी एकमुश्त वोटिंग वाली सीट का समीकरण अब पूरी तरह बिगड़ चुका है. 2014 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भरत सिंह ने बीते आठ लोकसभा चुनावों से एक ही परिवार की जीत की मिथ को तोड़ा था. उन्होंने 38.18 फीसदी (3,59,758) वोट हासिल किया था. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को चुनाव में 2,20,324 मत (23.38%) हासिल मिले थे.
चौंकाने वाली बात यह है कि बलिया जैसी सीट के लिए कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल जन अधिकार पार्टी के प्रत्याशी को अपना समर्थन दिया था लेकिन निर्वाचन अधिकारी द्वारा पार्टी के प्रत्याशी का पर्चा खारिज कर दिया गया. बलिया लोकसभा सीट का चुनाव रोचक हो गया है. जहां एक और नीरज शेखर के चुनाव मैदान में नहीं होने से सनातन पांडे को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका मिला है. वहीं पूरे देश में किसानों की बात पार्टी में रखने वाले वीरेंद्र सिंह मस्त भाजपा के कमल को दोबारा खिलाने के लिए पूरी जोर आजमाइश करने में लगे हैं.