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लॉकडाउन: बिहार में फंसे पापा, समोसे बेचकर घर का खर्च चला रहे मासूम

कोरोना महामारी के दौर में यूपी के बलिया जिले में दो मासूम भाई-बहनों का संघर्ष देखने लायक है. दरअसल, बच्चों के पिता लॉकडाउन के चलते बिहार में फंस गए हैं, जिससे घर का खर्च नहीं चल पा रहा है. वहीं ये दोनों बच्चे समोसे बेचकर घर का खर्च चला रहे हैं.

लॉकडाउन में बच्चों ने संभाली घर की जिम्मेदारी.
लॉकडाउन में बच्चों ने संभाली घर की जिम्मेदारी.
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Published : Jun 4, 2020, 6:53 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST

बलिया: मेहनत-मजदूरी कर पेट भरने वालों के सामने कोरोना लॉकडाउन की वजह से रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है और तो और ऐसी स्थिति में यदि घर का मुखिया ही कहीं बाहर फंस जाए तो घर का खर्च चलाना बहुत ही कठिन हो जाता है. इसका एक बड़ा उदाहरण बलिया जिले के दो मासूम भाई-बहन हैं.

समोसे बेचकर घर का खर्च चला रहे भाई-बहन.

जिले के जापलिनगंज इलाके में रहने वाले सागर और खुशी दोनों भाई-बहन हैं. जब से देश में लॉकडाउन लगा तभी से इन दोनों बच्चों ने अपने कंधे पर घर-परिवार चलाने की जिम्मेदारी ले ली है. दोनों बच्चों की उम्र काफी कम है, लेकिन इनके हौसले बुलंद हैं.

लॉकडाउन के चलते बिहार में फंसे पिता
दरअसल, लॉकडाउन के कारण इनके पिता बिहार में फंस गए हैं. परिवार में पिता-मां, दो बहनें और एक भाई है. मां समोसे बनाती हैं और भाई-बहन उसे बेचने के लिए शहर में निकल पड़ते हैं. एक तरफ देशव्यापी लॉकडाउन में जहां सरकार लोगों से घरों में रहने की अपील कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ यह बच्चे शहर के गली-मुहल्ले में घूम-घूम कर समोसे बेच रहे हैं ताकि उनका परिवार भूखे पेट न सो सके. लॉकडाउन के इन 60 दिनों में यह बच्चे बलिया के हर गली-मोहल्ले में जाकर न केवल समोसे बेच रह हैं बल्कि इन रुपयों से ही घर का राशन भी खरीद रहे हैं.

चौथी कक्षा में पढ़ते हैं बच्चे
सागर और खुशी ने बताया कि वह कक्षा चार में पढ़ते हैं और स्कूल भी जाते हैं, लेकिन लकडाउन में स्कूल बंद है. पिता के बिहार में फंसने से परिवार में आमदनी का दूसरा कोई जरिया नहीं बचा है, जिसके चलते इन्होंने समोसे बेचने की शुरुआत की. दिन भर में दोनों बच्चे 30-40 समोसे बेच लेते हैं. एक समोसे की कीमत पांच रुपये है. खुशी ने बताया कि कभी-कभी सुबह से शाम हो जाती है और समोसे पूरे नहीं बिकते हैं. घर जाने के बाद इन समोसों को फेंकना पड़ता है. समोसे बेचकर मिले रुपयों से यह घर का राशन खरीदते हैं, जिससे रात का खाना बनता है.

इन मासूम बच्चों का हौसला देख स्टेशन रोड निवासी विवेक गुप्ता ने बताया कि यह बच्चे कुछ दिनों से अक्सर इधर से समोसे लेकर गुजरते थे. इन्हें देखकर इनकी मदद करने की इच्छा हुई तो हम लोगों ने इनसे समोसे खरीद लिए. इन समोसो के दाम के बदले ही इनकी मदद हो पा रही है. इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है. विवेक गुप्ता ने बताया कि आगे जब तक ऐसी स्थिति रहेगी हम इनके समोसे खरीदते रहेंगे.

वहीं एक छात्र ने बच्चों की मदद करने की बात कही है. सतीश चंद्र महाविद्यालय के छात्र काव्यांश तिवारी ने कहा कि दोनों बच्चे मजबूरी में समोसे बेच रहे हैं. हम छात्र संगठन मिलकर उनके घर का पता लगाएंगे और जो भी मदद हो पाएगी करेंगे. हम बच्चों को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित भी करेंगे.

बलिया: मेहनत-मजदूरी कर पेट भरने वालों के सामने कोरोना लॉकडाउन की वजह से रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है और तो और ऐसी स्थिति में यदि घर का मुखिया ही कहीं बाहर फंस जाए तो घर का खर्च चलाना बहुत ही कठिन हो जाता है. इसका एक बड़ा उदाहरण बलिया जिले के दो मासूम भाई-बहन हैं.

समोसे बेचकर घर का खर्च चला रहे भाई-बहन.

जिले के जापलिनगंज इलाके में रहने वाले सागर और खुशी दोनों भाई-बहन हैं. जब से देश में लॉकडाउन लगा तभी से इन दोनों बच्चों ने अपने कंधे पर घर-परिवार चलाने की जिम्मेदारी ले ली है. दोनों बच्चों की उम्र काफी कम है, लेकिन इनके हौसले बुलंद हैं.

लॉकडाउन के चलते बिहार में फंसे पिता
दरअसल, लॉकडाउन के कारण इनके पिता बिहार में फंस गए हैं. परिवार में पिता-मां, दो बहनें और एक भाई है. मां समोसे बनाती हैं और भाई-बहन उसे बेचने के लिए शहर में निकल पड़ते हैं. एक तरफ देशव्यापी लॉकडाउन में जहां सरकार लोगों से घरों में रहने की अपील कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ यह बच्चे शहर के गली-मुहल्ले में घूम-घूम कर समोसे बेच रहे हैं ताकि उनका परिवार भूखे पेट न सो सके. लॉकडाउन के इन 60 दिनों में यह बच्चे बलिया के हर गली-मोहल्ले में जाकर न केवल समोसे बेच रह हैं बल्कि इन रुपयों से ही घर का राशन भी खरीद रहे हैं.

चौथी कक्षा में पढ़ते हैं बच्चे
सागर और खुशी ने बताया कि वह कक्षा चार में पढ़ते हैं और स्कूल भी जाते हैं, लेकिन लकडाउन में स्कूल बंद है. पिता के बिहार में फंसने से परिवार में आमदनी का दूसरा कोई जरिया नहीं बचा है, जिसके चलते इन्होंने समोसे बेचने की शुरुआत की. दिन भर में दोनों बच्चे 30-40 समोसे बेच लेते हैं. एक समोसे की कीमत पांच रुपये है. खुशी ने बताया कि कभी-कभी सुबह से शाम हो जाती है और समोसे पूरे नहीं बिकते हैं. घर जाने के बाद इन समोसों को फेंकना पड़ता है. समोसे बेचकर मिले रुपयों से यह घर का राशन खरीदते हैं, जिससे रात का खाना बनता है.

इन मासूम बच्चों का हौसला देख स्टेशन रोड निवासी विवेक गुप्ता ने बताया कि यह बच्चे कुछ दिनों से अक्सर इधर से समोसे लेकर गुजरते थे. इन्हें देखकर इनकी मदद करने की इच्छा हुई तो हम लोगों ने इनसे समोसे खरीद लिए. इन समोसो के दाम के बदले ही इनकी मदद हो पा रही है. इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती है. विवेक गुप्ता ने बताया कि आगे जब तक ऐसी स्थिति रहेगी हम इनके समोसे खरीदते रहेंगे.

वहीं एक छात्र ने बच्चों की मदद करने की बात कही है. सतीश चंद्र महाविद्यालय के छात्र काव्यांश तिवारी ने कहा कि दोनों बच्चे मजबूरी में समोसे बेच रहे हैं. हम छात्र संगठन मिलकर उनके घर का पता लगाएंगे और जो भी मदद हो पाएगी करेंगे. हम बच्चों को पढ़ाई करने के लिए प्रेरित भी करेंगे.

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:25 PM IST
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