बलिया: सावन के महीने में शिवालयों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है. जिले के बांसडीह तहसील क्षेत्र के छितौनी गांव में छितेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है. सावन के दिनों में मंदिर में दर्शन के लिए दूरदराज क्षेत्रों से श्रद्धालु आते हैं. फागुन मास में पड़ने वाले महाशिवरात्रि के दिन यहां बड़ा मेला भी लगता है. बताया जाता है कि मंदिर में शिवलिंग की स्थापना महर्षि वाल्मिकि ने की थी.
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे छतौनी गांव में स्थित इस मंदिर में जिले के दूरदरजा क्षेत्रों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पर दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. विद्वानों के अनुसार मंदिर में शिवलिंग की स्थापना रामायण काल में हुई थी. इस स्थान से कुछ दूरी पर महर्षि वाल्मीकि का आश्रम हुआ करता था, जहां सीता आती थीं और प्रतिदिन जप करती थीं.
ऐसे पड़ा छितेश्वर महादेव मंदिर का नाम
भगवान राम ने अपने परम भक्त हनुमान को सीता की खबर लेने के लिए भेजा. हनुमान जब आश्रम पहुंचे, तो सीत जप कर रही थीं. जिसके बाद उन्होंने हिमालय से एक शिवलिंग लाकर महर्षि वाल्मीकि के माध्यम से सीता के नाम से प्राण प्रतिष्ठा कराई. जिसे छितेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता था. समय बीतता गया और यह शिवलिंग मिट्टी में दब गया और यह स्थान जंगल में तब्दील हो गया, जिसे अब छितेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.
छितिज से निकला शिवलिंग
इसके बाद समय बीतता गया और देखते ही देखते 400 साल हो गए. इस दौरान जनसंख्या भी बढ़ने लगी. बहुआरा गांव के लोग महादेव के दर्शन करने के लिए नदी पार कर दूसरी ओर जाते रहे. बताया जाता है कि लोग ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर में जाकर बाबा के दर्शन पूजा करते थे. भादो मास में नदी में बाढ़ आ गई. शिव दर्शन के लिए ग्रामीण नाव से नदी पार करने लगे और नदी के पानी में बहाव ज्यादा होने के कारण नाव नदी में बहती चली गई.
श्रद्धालुओं ने भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई. इसके बाद आकाशवाणी हुई कि महादेव के भक्तों आप यहां मत आओ. मेरे भाई वाल्मिकि आश्रम के पास विराजमान है. उन्हें खोजकर उन्ही के दर्शन करो. इसके बाद ग्रामीणों ने जंगल को साफ किया और मिट्टी की खुदाई शुरू की और महीनों बाद काफी गहराई के नीचे शिवलिंग मिला.
एक ही दिन में हुआ था गर्भगृह का निर्माण
इसके बाद ग्रामीणों की ओर से शिवलिंग ऊपर लाने का प्रयास किया जाने लगा. महीनों बाद भी शिवलिंग को वहां से नहीं हटाया जा सका. मंदिर के पुजारी संतोष बाबा ने बताया कि इसके बाद मंदिर बनाने का काम शुरू किया गया, लेकिन जितना मंदिर तैयार होता था. उतना ही टूट कर गिर जाता था. ग्रामीणों की चिंता बढ़ने लगी.
इसके बाद एस संत वहां से गुजरे और उन्होंने कहा कि महादेव की उनके स्थान पर ही विराजमान रहने दो और मंदिर के गर्भगृह का एक दिन में निर्माण करें. इसके बाद मजदूरों की संख्या को बढ़ाकर एक दिन में मंदिर के गर्भगृह का निर्माण कराया और शिवलिंग की वहीं पर स्थापना हो गई.
मंदिर में रखा है 400 साल पुरान घंटा
मंदिर में आसपास के जिलों से भी सावन के महीनें में भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां पर दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और इसके बाद श्रद्धालु मंदिर में घंटी बांधता है. श्रद्धालुओं ने बताया कि मंदिर में एक 400 साल पुराना प्राचीन घंटा भी रखा है.
शिवरात्रि के समय यहां पर एक विशाल मेले का भी आयोजन होता है. 25 साल से मंदिर में दर्शन करने आ रही श्रद्धालु बिंदु मिश्रा ने बताया कि यहां पर आने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. भक्त रात भर अखंड दीप चलाकर मंदिर में भजन कीर्तन भी करते हैं.