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बहराइच: बलिदान दिवस पर याद की गईं वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई - रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस

उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में गुरुवार को वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस सेनानी भवन के सभागार में आयोजित किया गया. जहां रानी लक्ष्मीबाई के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया.

वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस
वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस.
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Published : Jun 19, 2020, 4:34 AM IST

बहराइच: जिले में बलिदान दिवस पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को याद किया गया. रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस सेनानी भवन के सभागार में मनाया गया. उक्त अवसर पर यहां गोष्ठी का भी आयोजित किया गया, जिसमें वीरांगना के जीवन संघर्ष तथा बहादुरी पर विस्तार से चर्चा की गई.

जिले में प्रथम स्वाधीनता आंदोलन में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस गुरुवार को सेनानी भवन के सभागार में आयोजित किया गया. बहराइच विकास मंच की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए वीरांगना के जीवन संघर्ष तथा बहादुरी पर विस्तार से चर्चा की गई.

अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए पाई वीरगति
मंच के संरक्षक पं. अनिल त्रिपाठी ने कहा कि वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को हुआ था. उन्होंने 18 जून 1858 को अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई था. मराठा शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना (प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवन्ति बाई लोधी 20 मार्च 1858 हैं) थीं. उन्होंने सिर्फ 29 साल की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं.

शौर्य और पराक्रम से किया प्रभावित
सेनानी उत्तराधिकारी के प्रदेश महामंत्री रमेश मिश्रा ने कहा उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दांतों से दबाई हुई थी. वो दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं और एक साथ दोनों तरफ वार कर रही थीं. उनके शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजों की सेना के छक्के छूट गए थे. उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने अपने शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजों को काफी प्रभावित किया. इस मौके पर कृष्ण कुमार द्विवेदी, नवनीत अंशु मिश्रा, वीरेंद्र बाल्मीकि, मुकेश श्रीवास्तव, शशी प्रकाश मिश्रा, राहुल वर्मा समेत अनेक लोग मौजूद रहे.

बहराइच: जिले में बलिदान दिवस पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई को याद किया गया. रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस सेनानी भवन के सभागार में मनाया गया. उक्त अवसर पर यहां गोष्ठी का भी आयोजित किया गया, जिसमें वीरांगना के जीवन संघर्ष तथा बहादुरी पर विस्तार से चर्चा की गई.

जिले में प्रथम स्वाधीनता आंदोलन में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस गुरुवार को सेनानी भवन के सभागार में आयोजित किया गया. बहराइच विकास मंच की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए वीरांगना के जीवन संघर्ष तथा बहादुरी पर विस्तार से चर्चा की गई.

अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए पाई वीरगति
मंच के संरक्षक पं. अनिल त्रिपाठी ने कहा कि वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर 1828 को हुआ था. उन्होंने 18 जून 1858 को अंग्रेजों की सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई था. मराठा शासित झांसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रांति की द्वितीय शहीद वीरांगना (प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवन्ति बाई लोधी 20 मार्च 1858 हैं) थीं. उन्होंने सिर्फ 29 साल की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं.

शौर्य और पराक्रम से किया प्रभावित
सेनानी उत्तराधिकारी के प्रदेश महामंत्री रमेश मिश्रा ने कहा उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दांतों से दबाई हुई थी. वो दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं और एक साथ दोनों तरफ वार कर रही थीं. उनके शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजों की सेना के छक्के छूट गए थे. उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने अपने शौर्य और पराक्रम से अंग्रेजों को काफी प्रभावित किया. इस मौके पर कृष्ण कुमार द्विवेदी, नवनीत अंशु मिश्रा, वीरेंद्र बाल्मीकि, मुकेश श्रीवास्तव, शशी प्रकाश मिश्रा, राहुल वर्मा समेत अनेक लोग मौजूद रहे.

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