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बंदियों की दास्तां बयां कर रही बहराइच जिला जेल की दीवार पत्रिका - Baharich district jail

बहराइच जेल प्रशासन ने बंदियों में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करने के लिए अनोखी पहल शुरू की है. जेल प्रशासन ने बंदियों के लिए दीवार पत्रिका की शुरुआत की है. इस पर चित्रकला के माध्यम से बंदी अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त कर रहे हैं. इसका जेल प्रशासन गंभीरता से संज्ञान ले रहा है.

Baharaich news
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Published : Oct 4, 2020, 3:47 PM IST

बहराइच: जेल प्रशासन नियम कानून के दायरे में जेल में निरुद्ध बंदियों को बेहतर इंसान बनाने की मुहिम में जुटा है. जेल प्रशासन ने हाल में ही बंदियों का क्रिकेट टूर्नामेंट कराकर उनमें खेल भावना पैदा करने का प्रयास किया था. जिसे जिले से लेकर शासन स्तर तक सराहा गया. जेल प्रशासन ने अब बंदियों में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करने के लिए पहल शुरू की है. उन्हें अपनी अभिव्यक्ति चित्रकला के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए दीवार पत्रिका की शुरुआत की है. इस पर बंदी चित्रकला के माध्यम से विभिन्न तरह की समस्याओं को प्रस्तुत कर जहां अपने बंदी साथियों को बेहतर इंसान बनने और बेहतर जिंदगी जीने का संदेश दे रहे हैं. वहीं प्रशासन के सुधारात्मक कदम की सराहना भी कर रहे हैं.

सलाखों के पीछे की सख्त जिंदगी की दास्तां बयां कर रही

जिला जेल में इस समय करीब 15 सौ बंदी निरुद्ध है. दीवार पत्रिका के माध्यम से सजायाफ्ता हो या फिर विचाराधीन बंदी सभी अपने अंदर की पीड़ा को लेखनी और चित्र के माध्यम से व्यक्त करते हैं. गुनाहों की सजा काट रहे बंदियों की इंसानियत को बयां करती है. जिला कारागार की दीवार पत्रिका पर प्रदर्शित मेराज की पेंटिंग खुद के अपराधी होने और बंदियों के परिवार पर बीत रहे संकट और अन्य बंदियों के सिर्फ मर्म को ही बयां नहीं कर रही है, बल्कि सलाखों में से सख्त जिंदगी की दास्तान को भी प्रस्तुत कर रही है.

छिपी प्रतिभा को निखारने में मददगार

जिला कारागार के तत्कालीन डिप्टी जेलर एवं वर्तमान में डीजी जेल के पीआरओ संतोष कुमार वर्मा ने बताया कि 2017 में दीवार पत्रिका की स्थापना की गई थी. दीवार पत्रिका का उद्देश्य जेल में निरुद्ध अपराधियों की अंधेरी जिंदगी ने रोशनी लाने के लिए उन्हें साहित्य, और पेंटिंग से नाता जोड़ने का है. यह राह कठिन थी, परंतु लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए जेल अधीक्षक अवनेंद्र नाभ त्रिपाठी और डिप्टी जेलर शरेंदु त्रिपाठी के मार्गदर्शन से बंदियों के अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने का काम परवान चढ़ रहा है.

मिल रहे सकारात्मक परिणाम

जेल अधीक्षक अवनींद्र नाभ त्रिपाठी ने बताया कि दीवार पत्रिका का थीम अंधेरे से उजाले की ओर है. जेल में बंद कैदी हो सकता है कि अपनी हर बातों को अधिकारियों कर्मचारियों से व्यक्त ना कर पाए. उसके लिए यह हम लोगों ने दीवार पत्रिका को नए कलेवर के रूप में विकसित किया. इसमें बंदी अपने अंतर भावनाओं को अपनी लेखन क्षमता एवं कलाकृति के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आए है. उन्होंने बताया कि दीवाल पत्रिका पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए बंदी उत्साहित हैं. इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि बंदी अवसाद से ग्रस्त नहीं हो रहे हैं.

कोरोना काल की दुश्वारियों में मददगार है ये दीवाल

जेल अधीक्षक का कहना है कि ऐसे समय में जब कोरोना काल का बुरा दौर चल रहा है और बंदियों की मुलाकात उनके स्वास्थ्य और जीवन हित में पूरे देश की जेलों में बंद हैं. ऐसी स्थिति में वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति लेखन क्षमता से और चित्रकला के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं. इसको जेल प्रशासन उस दीवार पत्रिका पर चस्पा करते हैं. उसे देखकर और पढ़कर अन्य बंदी अपने अंदर की व्यक्ति को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. उन्होंने बताया कि दीवार पत्रिका का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बंदी अवसाद ग्रस्त नहीं हैं.

बहराइच: जेल प्रशासन नियम कानून के दायरे में जेल में निरुद्ध बंदियों को बेहतर इंसान बनाने की मुहिम में जुटा है. जेल प्रशासन ने हाल में ही बंदियों का क्रिकेट टूर्नामेंट कराकर उनमें खेल भावना पैदा करने का प्रयास किया था. जिसे जिले से लेकर शासन स्तर तक सराहा गया. जेल प्रशासन ने अब बंदियों में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करने के लिए पहल शुरू की है. उन्हें अपनी अभिव्यक्ति चित्रकला के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए दीवार पत्रिका की शुरुआत की है. इस पर बंदी चित्रकला के माध्यम से विभिन्न तरह की समस्याओं को प्रस्तुत कर जहां अपने बंदी साथियों को बेहतर इंसान बनने और बेहतर जिंदगी जीने का संदेश दे रहे हैं. वहीं प्रशासन के सुधारात्मक कदम की सराहना भी कर रहे हैं.

सलाखों के पीछे की सख्त जिंदगी की दास्तां बयां कर रही

जिला जेल में इस समय करीब 15 सौ बंदी निरुद्ध है. दीवार पत्रिका के माध्यम से सजायाफ्ता हो या फिर विचाराधीन बंदी सभी अपने अंदर की पीड़ा को लेखनी और चित्र के माध्यम से व्यक्त करते हैं. गुनाहों की सजा काट रहे बंदियों की इंसानियत को बयां करती है. जिला कारागार की दीवार पत्रिका पर प्रदर्शित मेराज की पेंटिंग खुद के अपराधी होने और बंदियों के परिवार पर बीत रहे संकट और अन्य बंदियों के सिर्फ मर्म को ही बयां नहीं कर रही है, बल्कि सलाखों में से सख्त जिंदगी की दास्तान को भी प्रस्तुत कर रही है.

छिपी प्रतिभा को निखारने में मददगार

जिला कारागार के तत्कालीन डिप्टी जेलर एवं वर्तमान में डीजी जेल के पीआरओ संतोष कुमार वर्मा ने बताया कि 2017 में दीवार पत्रिका की स्थापना की गई थी. दीवार पत्रिका का उद्देश्य जेल में निरुद्ध अपराधियों की अंधेरी जिंदगी ने रोशनी लाने के लिए उन्हें साहित्य, और पेंटिंग से नाता जोड़ने का है. यह राह कठिन थी, परंतु लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए जेल अधीक्षक अवनेंद्र नाभ त्रिपाठी और डिप्टी जेलर शरेंदु त्रिपाठी के मार्गदर्शन से बंदियों के अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने का काम परवान चढ़ रहा है.

मिल रहे सकारात्मक परिणाम

जेल अधीक्षक अवनींद्र नाभ त्रिपाठी ने बताया कि दीवार पत्रिका का थीम अंधेरे से उजाले की ओर है. जेल में बंद कैदी हो सकता है कि अपनी हर बातों को अधिकारियों कर्मचारियों से व्यक्त ना कर पाए. उसके लिए यह हम लोगों ने दीवार पत्रिका को नए कलेवर के रूप में विकसित किया. इसमें बंदी अपने अंतर भावनाओं को अपनी लेखन क्षमता एवं कलाकृति के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि इसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आए है. उन्होंने बताया कि दीवाल पत्रिका पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए बंदी उत्साहित हैं. इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि बंदी अवसाद से ग्रस्त नहीं हो रहे हैं.

कोरोना काल की दुश्वारियों में मददगार है ये दीवाल

जेल अधीक्षक का कहना है कि ऐसे समय में जब कोरोना काल का बुरा दौर चल रहा है और बंदियों की मुलाकात उनके स्वास्थ्य और जीवन हित में पूरे देश की जेलों में बंद हैं. ऐसी स्थिति में वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति लेखन क्षमता से और चित्रकला के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं. इसको जेल प्रशासन उस दीवार पत्रिका पर चस्पा करते हैं. उसे देखकर और पढ़कर अन्य बंदी अपने अंदर की व्यक्ति को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. उन्होंने बताया कि दीवार पत्रिका का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बंदी अवसाद ग्रस्त नहीं हैं.

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