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बागपत: यहां भगवान परशुराम ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना कर की थी तपस्या - sawan shivratri 2019

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित पुरा महादेव की विशेष मानता है. कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना करके तपस्या की थी. जिसके बाद से अब तक इस शिवलिंग का पूरे विश्व में बहुत बड़ा महत्व है.

भगवान परशुराम द्वारा स्थापित किया गया शिवलिंग
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Published : Jul 29, 2019, 3:06 PM IST

बागपत: जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर हिंडन नदी के किनारे पुरा महादेव मंदिर स्थापित है. जो शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है. ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने शिवलिंग स्थापना करके भगवान शिव की उपासना की थी. सावन के महीने पर यहां पर लाखों श्रद्धालु भगवान शिव पर जल अभिषेक करने आते हैं.

भगवान परशुराम द्वारा स्थापित किया गया शिवलिंग

जानिए इस शिवलिंग की खासियत-

  • जिले के पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे पुरा महादेव मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है.
  • धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने शिवलिंग स्थापना करके भगवान शिव की उपासना की थी.
  • माना जाता है कि कांवड़ यात्रा का आरंभ भी भगवान परशुराम ने ही किया था.
  • मंदिर में लाखों शिव भक्त हरिद्वार से कांवड़ गंगाजल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
  • ऐसा मानना है कि जो भी सावन के महीने में जलाभिषेक करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है.

क्या है मंदिर की ऐतिहासिक मान्यताएं-

प्राचीन समय में यहां कजरी वन हुआ करता था. यहां ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ आश्रम में रहते थे. एक बार एक राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम पहुंच गए. वन में ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया. राजा गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका. क्रोध में आकर राजा ने ऋषि की पत्नी रेणुका को अपने साथ महल लेकर चला गया.

रेणुका वापस आकर ऋषि को सारी बातें बताईं. लेकिन ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दिये. रेणुका ने प्रार्थना की कि वह आश्रम छोड़ कर नही जाएंगी. इस बात पर ऋषि ने क्रोध में आकर अपने तीनों पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा लेकिन तीनो पुत्रों ने मना कर दिया.

चौथे पुत्र परशुराम ने पिता आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए माता का सिर धड़ से अलग कर दिया. बाद में परशुराम को अपनी गलती पर बहुत पश्चाताप हुआ. जिसके बाद थोड़ी दूर पर ही जाकर उन्होंने एक शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या की. उनकी तपस्या को देखते हुए भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा. भगवान परशुराम ने अपनी माता का जीवन दान मांगा. भगवान शिव ने उनको परशु भी दिया. तभी सोन का नाम परशुराम पड़ गया और उसी परशु से परशुराम ने सहस्त्रबाहु को मार दिया. आज वो शिवलिंग बागपत जिले के पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे पर स्थित है.

बागपत: जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर हिंडन नदी के किनारे पुरा महादेव मंदिर स्थापित है. जो शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है. ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने शिवलिंग स्थापना करके भगवान शिव की उपासना की थी. सावन के महीने पर यहां पर लाखों श्रद्धालु भगवान शिव पर जल अभिषेक करने आते हैं.

भगवान परशुराम द्वारा स्थापित किया गया शिवलिंग

जानिए इस शिवलिंग की खासियत-

  • जिले के पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे पुरा महादेव मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है.
  • धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने शिवलिंग स्थापना करके भगवान शिव की उपासना की थी.
  • माना जाता है कि कांवड़ यात्रा का आरंभ भी भगवान परशुराम ने ही किया था.
  • मंदिर में लाखों शिव भक्त हरिद्वार से कांवड़ गंगाजल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
  • ऐसा मानना है कि जो भी सावन के महीने में जलाभिषेक करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है.

क्या है मंदिर की ऐतिहासिक मान्यताएं-

प्राचीन समय में यहां कजरी वन हुआ करता था. यहां ऋषि जमदाग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ आश्रम में रहते थे. एक बार एक राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम पहुंच गए. वन में ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया. राजा गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका. क्रोध में आकर राजा ने ऋषि की पत्नी रेणुका को अपने साथ महल लेकर चला गया.

रेणुका वापस आकर ऋषि को सारी बातें बताईं. लेकिन ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दिये. रेणुका ने प्रार्थना की कि वह आश्रम छोड़ कर नही जाएंगी. इस बात पर ऋषि ने क्रोध में आकर अपने तीनों पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा लेकिन तीनो पुत्रों ने मना कर दिया.

चौथे पुत्र परशुराम ने पिता आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए माता का सिर धड़ से अलग कर दिया. बाद में परशुराम को अपनी गलती पर बहुत पश्चाताप हुआ. जिसके बाद थोड़ी दूर पर ही जाकर उन्होंने एक शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या की. उनकी तपस्या को देखते हुए भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा. भगवान परशुराम ने अपनी माता का जीवन दान मांगा. भगवान शिव ने उनको परशु भी दिया. तभी सोन का नाम परशुराम पड़ गया और उसी परशु से परशुराम ने सहस्त्रबाहु को मार दिया. आज वो शिवलिंग बागपत जिले के पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे पर स्थित है.

Intro: बागपत के पुरा महादेव की है विशेष मानता भगवान परशुराम ने स्वयं शिवलिंग की स्थापना करके तपस्या की थी जिसके बाद से तब से लेकर अब तक इस शिवलिंग पर पूरे विश्व में बहुत बड़ा महत्व है। साल के हर सावन महीने में लाखों से आते हैं काकड़ी और श्रद्धालु इस मंदिर की मान्यता है जो भी कोई जो कोई भी भगवान पुरा महादेव का जलाभिषेक करता है उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है ।


Body:बागपत जिले से करीब 25 किलोमीटर दूर पुरा गांव में हिंडन नदी के किनारे बसा हुआ है। पुरा महादेव मंदिर शिव भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है। ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान परशुराम ने शिवलिंग स्थापना करके भगवान शिव की उपासना की थी। सावन के महीने पर यहां पर लाखों श्रद्धालु भगवान शिव पर जल अभिषेक करने आते हैं कावड़ यात्रा का आरंभ भी भगवान परशुराम ने ही किया था। भगवान श्रीराम को सर्वप्रथम कावड़िया माना जाता है। इस मंदिर में लाखों शिव भक्त हरिद्वार से कावर से गंगाजल लाकर यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। ऐसा मानना है कि जो भी सावन के महीने में जलाभिषेक करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है।

आइए को भगवान परशुराम ने स्थापना की थी। प्राचीन समय में यहां कजरी वन हुआ करता था। भगवान ने ऋषि जमदाग्नि पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। एक बार एक राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए आश्रम पहुंच गए। वन में ऋषि की अनुपस्थिति में रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया। राजा गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहता था लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका। क्रोधित क्रोधित में आकर राजा ने ऋषि की पत्नी रेणुका को अपने साथ महल ले गया। महल में रेणुका की छोटी बहन ने उसको मुक्त कर दिया। वापस आकर ऋषि को सारी बातें बताएं। लेकिन ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दिया। रेणुका ने प्रार्थना की थी कि वह आश्रम छोड़ नही जाए गई। इस बात पर ऋषि ने अपने तीनों पुत्रों को उनकी माता का सिर धड़ से अलग करने को कहा लेकिन तीनो पुत्रों ने मना कर दिया। चौथे पुत्र परशुराम ने पिता आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए। माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में परशुराम को अपनी गलती पर बहुत पछता पश्चाताप हुआ। जिसके बाद थोड़ी दूर पर ही जाकर उन्होंने एक शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या की। उनकी तपस्या को देखते हुए भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने अपनी माता का जीवन दान मांग। भगवान शिव ने उनको परशु भी दिया । तभी सोन का नाम परशुराम पड़ गया और उसी परसों से परशुराम ने सहस्त्रबाहु को मार दिया।


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