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बदायूं: इत्र की खुशबू से दुनिया में जाना जाता था सहसवान

राजा सहस्त्रबाहु की नगरी बदायूं कभी इत्र और केवड़े की खुशबू से खुशगवार बनी रहती थी. यहां से देश-विदेश में बड़े पैमाने पर इत्र और केवड़े का व्यापार होता था, लेकिन आज फूलों की खेती बंद हो जाने से इत्र का व्यापार एक याद मात्र बनकर रह गया है.

बदायूं फूलों की खेती
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Published : May 2, 2019, 1:39 PM IST

बदायूं: राजा सहस्त्रबाहु कि नगरी कभी इत्र और केवड़े की खुशबू से सराबोर रहती थी. फूलों की खेती से यहां की जमीन हमेशा रंग बिरंगी दिखती थी. 1800 ई. में यहां बड़े पैमाने पर केवड़े और इत्र का व्यापार होता था. यहां पर बनने वाला प्राकृतिक इत्र दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुका था, लेकिन फूलों की खेती और केवड़े के जंगल को एक बार भीषण आग का सामना करना पड़ा. उसके बाद यह व्यापार धिरे-धिरे बंद हो गया और सहसवान से इत्र की खुशबू खत्म हो गई.

पूरे भारत में प्रसिद्ध था सहजवान का इत्र

  • पौराणिक तीर्थ स्थल सरसोता के समीप केवड़े के पेड़ों के मिलते हैं अवशेष.
  • दंड झील के किनारे होती थी फूलों की खेती.
  • मुख्य रूप से केवड़ा, गुलाब, मोगरा, चमेली, मोलश्री, जाफरान, सुरंगी, मजमून, चंदा, रात की रानी, हिना का होता था प्रयोग.
    बदायूं: इत्रनगरी सहसवान की दास्तां, कभी विदेशों तक थी धूम

मुश्कबार के बंद होने से फिजाओं से गुम है खुशबू
इस व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए सन 1889 में हाजी सैयद अब्दुल मजीद ने यहां कुछ विदेशी तकनीक द्वारा एक कारखाना मुश्कबार के नाम से स्थापित किया. जिससे उत्पादित इत्र विदेशों जैसे अरब, इंग्लैंड, यमन, और मिश्र जैसे देशों में पहुंचने लगा और सहसवान इत्र की नगरी के नाम से जाना जाने लगा.

सुविधाएं न मिलने से बंद हुआ मुश्कबार कारखाना
काफी समय पहले फूलों की और केवड़े की खेती बंद होने के कारण कारखाना मुश्कबार भी बंद हो गया, जिसकी मशीनें आज भी है. सहसवान से इत्र का काम बंद होने का मुख्य कारण रहा कई वर्ष पहले भीषण आग किसानों को सरकारी सुविधा न मिलना. पुराने लोग आज भी उस खुशबू का एहसास करते हैं, जो कभी सहसवान की फिजाओं में बहती थी.

बदायूं: राजा सहस्त्रबाहु कि नगरी कभी इत्र और केवड़े की खुशबू से सराबोर रहती थी. फूलों की खेती से यहां की जमीन हमेशा रंग बिरंगी दिखती थी. 1800 ई. में यहां बड़े पैमाने पर केवड़े और इत्र का व्यापार होता था. यहां पर बनने वाला प्राकृतिक इत्र दुनियाभर में अपनी पहचान बना चुका था, लेकिन फूलों की खेती और केवड़े के जंगल को एक बार भीषण आग का सामना करना पड़ा. उसके बाद यह व्यापार धिरे-धिरे बंद हो गया और सहसवान से इत्र की खुशबू खत्म हो गई.

पूरे भारत में प्रसिद्ध था सहजवान का इत्र

  • पौराणिक तीर्थ स्थल सरसोता के समीप केवड़े के पेड़ों के मिलते हैं अवशेष.
  • दंड झील के किनारे होती थी फूलों की खेती.
  • मुख्य रूप से केवड़ा, गुलाब, मोगरा, चमेली, मोलश्री, जाफरान, सुरंगी, मजमून, चंदा, रात की रानी, हिना का होता था प्रयोग.
    बदायूं: इत्रनगरी सहसवान की दास्तां, कभी विदेशों तक थी धूम

मुश्कबार के बंद होने से फिजाओं से गुम है खुशबू
इस व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए सन 1889 में हाजी सैयद अब्दुल मजीद ने यहां कुछ विदेशी तकनीक द्वारा एक कारखाना मुश्कबार के नाम से स्थापित किया. जिससे उत्पादित इत्र विदेशों जैसे अरब, इंग्लैंड, यमन, और मिश्र जैसे देशों में पहुंचने लगा और सहसवान इत्र की नगरी के नाम से जाना जाने लगा.

सुविधाएं न मिलने से बंद हुआ मुश्कबार कारखाना
काफी समय पहले फूलों की और केवड़े की खेती बंद होने के कारण कारखाना मुश्कबार भी बंद हो गया, जिसकी मशीनें आज भी है. सहसवान से इत्र का काम बंद होने का मुख्य कारण रहा कई वर्ष पहले भीषण आग किसानों को सरकारी सुविधा न मिलना. पुराने लोग आज भी उस खुशबू का एहसास करते हैं, जो कभी सहसवान की फिजाओं में बहती थी.

Intro:राजा सहस्त्रबाहु कि नगरी कभी इत्र और केवड़े की खुशबू से सराबोर रहती थी फूलों की खेती से यहां की जमीन हमेशा रंग बिरंगी दिखती थीBody:कभी खुशबू से सराबोर थी सहसवान की फिज़ाए
बदायूं सहसवान
इत्र की खुशबू से दुनिया में जाना जाता था सहसवान
राजा सहस्त्रबाहु कि नगरी कभी इत्र और केवड़े की खुशबू से सराबोर रहती थी फूलों की खेती से यहां की जमीन हमेशा रंग बिरंगी दिखती थी 1800 ई. में यहां बड़े पैमाने पर केवड़े और इत्र का व्यापार होता था यहां पर बनने वाला प्राकृतिक इत्र दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका था लेकिन फूलों की खेती और केवड़े के जंगल को एक बार भीषण आग का सामना करना पड़ा उसके बाद यह व्यापार हल्के हल्के बंद हो गया और सहसवान से इत्र की खुशबू खत्म हो गई पौराणिक तीर्थ स्थल सरसोता के समीप आज भी केवड़े के पेड़ों के अवशेष देखने को मिलते हैं कई दशक पहले सरसोता से बहने वाली दंड झील के चारों ओर केवड़े की झाड़ियां और गुलाब, मोगरा, चमेली, मोलश्री, जाफरान, सुरंगी, मजमून, चंदा, रात की रानी, हिना आदि खुशबूदार फूलों की खेती बड़े पैमाने पर होती थी और इनसे प्राकृतिक ईत्र बनाया जाता था जो पूरे भारतवर्ष में बिकता था इस व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए सन 1889 में हाजी सैयद अब्दुल मजीद ने यहां कुछ विदेशी तकनीक द्वारा एक कारखाना मुशक़बार के नाम से स्थापित किया जिस से उत्पादित इत्र विदेशों जैसे अरब, इंग्लैंड, यमन, और मिश्र जैसे देशों में पहुंचने लगा और सहसवान इत्र की नगरी के नाम से जाना जाने लगा काफी समय पहले फूलों की और केवड़े की खेती बंद होने के कारण कारखाना मुश्कबार भी बंद हो गया जिसकी मशीनें आज भी है सहसवान से इत्र का काम बंद होने का मुख्य कारण रहा कई वर्ष पहले भीषण आग किसानों को सरकारी सुविधा ना मिलना फूलों की खेती को बढ़ावा ना देना पुराने लोग आज भी उस खुशबू का एहसास करते हैं जो कभी सहसवान की फिजाओं में उड़ती थी
Conclusion:बाइट1:-सैय्यद खालिद (मालिक कारखाना मुश्कबार)
विसुअल :-फूल
विसुअल :-कारखाना अवशेष
विसुअल :-सहसवान साइन बोर्ड

सहसवान से सालिम रियाज़ की रिपोर्ट
9319467733
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