आजमगढ़: सावन महीने की पहचान कजरी के गीतों और झूलों से की जाती थी. सखी-सहेलियां कजरी गीत गाती और झूला झूलती थी, लेकिन अब तो किसी को गीतों का इंतजार नहीं है और न ही सावन के झूलों का. आधुनिकीकरण की दौड़ में लोगों की और बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है.
अब न कोई कजरी गाता है और न ही सुनता है जो बच्चे पहले झूले के लिए जिद करते थे. अब वह बच्चे झूले के लिए जिद भी नहीं करते बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है.
इंद्रावती, स्थानीय निवासी
बचपन में हम लोगों को झूला झूलने की बड़ी उत्सुकता रहती थी. इस महीने का हम लोगों को बढ़ा बेसब्री से इंतजार रहता था लेकिन जिस तरह से समय बदल रहा है अब सभी के हाथ में मोबाइल है और सब की दुनिया मोबाइल में सिमटकर ही रह गई.
शिखा मौर्या, स्थानीय निवासी