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आजमगढ़: अब गांव में नहीं पड़ते हैं झूले, न ही सुनाई देते हैं कजरी के गीत

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में सावन में खाली पड़ी पेड़ की शाखाओं को देख कर लोगों का कहना है कि पहले सावन के महीने का सभी लोगों को बड़ा इंतजार रहता था. कजरी गीत को सुनने के लिए लोग बेचैन रहते थे, लेकिन मोबाइल ने बच्चों की दुनिया को कैद कर दिया है. निश्चित रूप से मोबाइल ने बच्चों का बचपन छीन लिया.

सावन के महीने में झूले और कजरी गीत हुए गायब
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Published : Jul 25, 2019, 11:57 PM IST

आजमगढ़: सावन महीने की पहचान कजरी के गीतों और झूलों से की जाती थी. सखी-सहेलियां कजरी गीत गाती और झूला झूलती थी, लेकिन अब तो किसी को गीतों का इंतजार नहीं है और न ही सावन के झूलों का. आधुनिकीकरण की दौड़ में लोगों की और बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है.

सावन के महीने में झूले और कजरी गीत हुए गायब

अब न कोई कजरी गाता है और न ही सुनता है जो बच्चे पहले झूले के लिए जिद करते थे. अब वह बच्चे झूले के लिए जिद भी नहीं करते बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है.

इंद्रावती, स्थानीय निवासी

बचपन में हम लोगों को झूला झूलने की बड़ी उत्सुकता रहती थी. इस महीने का हम लोगों को बढ़ा बेसब्री से इंतजार रहता था लेकिन जिस तरह से समय बदल रहा है अब सभी के हाथ में मोबाइल है और सब की दुनिया मोबाइल में सिमटकर ही रह गई.
शिखा मौर्या, स्थानीय निवासी

आजमगढ़: सावन महीने की पहचान कजरी के गीतों और झूलों से की जाती थी. सखी-सहेलियां कजरी गीत गाती और झूला झूलती थी, लेकिन अब तो किसी को गीतों का इंतजार नहीं है और न ही सावन के झूलों का. आधुनिकीकरण की दौड़ में लोगों की और बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है.

सावन के महीने में झूले और कजरी गीत हुए गायब

अब न कोई कजरी गाता है और न ही सुनता है जो बच्चे पहले झूले के लिए जिद करते थे. अब वह बच्चे झूले के लिए जिद भी नहीं करते बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है.

इंद्रावती, स्थानीय निवासी

बचपन में हम लोगों को झूला झूलने की बड़ी उत्सुकता रहती थी. इस महीने का हम लोगों को बढ़ा बेसब्री से इंतजार रहता था लेकिन जिस तरह से समय बदल रहा है अब सभी के हाथ में मोबाइल है और सब की दुनिया मोबाइल में सिमटकर ही रह गई.
शिखा मौर्या, स्थानीय निवासी

Intro:anchor: आजमगढ़। सावन महीने की पहचान कजरी के गीतों व झूलों से की जाती थी लेकिन अब न तो किसी को इन कजरी के गीतों का इंतजार रहता है और ना ही सावन के झूलों का जिस तरह से लगातार समय बदल रहा है लोगों की बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है।


Body:वीओ: 1 ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए आजमगढ़ के मुंडा गांव की निवासी इंद्रावती ने बताया कि अब ना कोई कजरी गाता है और ना ही सुनता है जो बच्चे पहले झूले के लिए जिद करते थे अब वह बच्चे झूले के लिए जीत भी नहीं करते बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमट कर रह गई है। इसी गांव के निवासी प्रकाश चंद्र का कहना है कि ना तो अब कोई कजरी गाता है और ना ही बच्चे कबड्डी खेलते हैं और ना ही झूला झूलते हैं उन्होंने कहा कि जिस तरह से मोबाइल किया जाने के बाद अब बच्चों की दुनिया उनके मोबाइल में सिमटकर ही रह गई है। इसी गांव के निवासी शिखा मौर्या का कहना है की बचपन में हम लोगों को झूला झूलने की बड़ी उत्सुकता वह गुस्सा रहता था और इस महीने का हम लोगों को बढ़ा बेसब्री से इंतजार रहता था लेकिन जिस तरह से समय बदल रहा है अब सभी के हाथ में मोबाइल है और सब की दुनिया मोबाइल में सिमटकर ही रह गई।


Conclusion:बाइट: इंद्रावती, प्रकाश चंद्र, शिखा मौर्या गांव वासी
अजय कुमार मिश्र आजमगढ़ 9453766900

बताते चलें कि पहले सावन के महीने का सभी लोगों को बड़ा इंतजार रहता था इस मौसम में खाई जाने वाली कजरी को सुनने के लिए लोग बेचैन रहते थे और बच्चे सावन में पढ़ने वाले झूलों पर झूलने के लिए लेकिन जिस तरह से मोबाइल क्रांति नहीं बच्चों की दुनिया को मोबाइल में कैद कर दिया निश्चित रूप से मोबाइल नाइन बच्चों का बचपन छीन लिया।
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