आजमगढ़: शव को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकार ने अस्पतालों में शव वाहन की सुविधा उपलब्ध करवाई है, लेकिन आजमगढ़ में यह वाहन जिला अस्पताल और सीएमओ कार्यालय की सिर्फ शोभा बढ़ा रहे हैं, जहां इस सुविधा से आमजन वंचित रह जाते हैं. वहीं इन शव वाहनों के नाम पर सरकारी धन का अधिकारियों में बंदरबाट कर लिया जाता है.
आजमगढ़ जनपद में सरकार की तरफ से चार शव वाहनों की सुविधा मिली हुई है. इससे यदि किसी की मृत्यु होती है, तो उसका शव उसके घर तक पहुंचाया जाता है. इन वाहनों का उपयोग पोस्टमार्टम के लिए लाए जाने वाले शवों के लिए भी किया जाता है, लेकिन यह सिर्फ कागजों में होता है. हकीकत यह है कि यह शव वाहन जिला अस्पताल और सीएमओ ऑफिस के सामने खड़े होकर उनके कार्यालयों की शोभा बढ़ाते हैं, जबकि आमजन जिसे यह सुविधाएं मिलनी चाहिए, वह प्राइवेट वाहन तय करता है, जिसकी वह मनमानी कीमत चुकाता है. हर बार आम नागरिक अधिकारियों की विफलताओं के चलते सरकारी सुविधाओं से वंचित रह जाता है.
जरूरतमंदों को नहीं मिल पाता वाहन
सीएमओ कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, आजमगढ़ में चार शव वाहन हैं, जिनमें एक सीएमओ कार्यालय में है. वहीं तीन मंडलीय चिकित्सालय के सीएमएस के अंडर में हैं. इनका उपयोग इन्हीं दो अधिकारियों के परमिशन से किया जा सकता है. इसके लिए इनके पास एक फॉर्म भरना होता है, जिसके बाद आवश्यकता लगने पर वाहनों को उपलब्ध करवाने की बात कही जाती है. हालांकि इन सबके बाद भी जरूरतमंदों को वाहन नहीं मिल पाता है.
हर रोज होते हैं कई पोस्टमार्टम
सीएमओ एके मिश्र का कहना है कि इन शव वाहनों का प्रयोग पोस्टमार्टम के लिए आने वाले शवों के लिए भी किया जाता है. लेकिन हकीकत में पोस्टमार्टम के लिए आने वाली डेड बॉडी प्राइवेट वाहनों से आती है. अब ऐसे में यह शव वाहन जाते कहा हैं, किसी को नहीं पता.
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शव वाहनों के रखरखाव के लिए आता है धन
जिला अस्पताल और सीएमओ कार्यालय में खड़े इन शव वाहनों को देखकर कोई भी कह सकता है कि यह महीनों से कहीं गए नहीं हैं, लेकिन इनके रखरखाव और डीजल का खर्च बराबर आता भी है और खर्च भी होता है. इससे जुड़े लोग इसके खर्च और रखरखाव के धन को बताने से भी बच रहे हैं. इसमें से कुछ वाहन सही हालत में नहीं हैं और अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. इसके धन का अधिकारी बंदरबांट करने में लगे हुए हैं.
रिपोर्टिंग देख शव वाहन की होने लगी सफाई
वहीं ईटीवी भारत की टीम को देख एक कर्मचारी कार्यालय से बाहर आया और वाहनों की साफ-सफाई करने लगा. जब हमने उससे पूछा तो उसका कहना था कि कभी कभार ही यह वाहन कहीं जाते हैं, लेकिन हजारों रुपये प्रति महीने इसके खर्च के लिए आता है. हालांकि वह कैमरे के सामने कुछ नहीं बोल सका. उसका कहना था कि कुछ बोलने पर उसकी दैनिक आधार पर मिली नौकरी चली जायेगी.
हमारे पास सिर्फ एक शव वाहन है और सीएमएस के पास तीन शव वाहन हैं. जरूरत लगने पर यह वाहन जाते रहते हैं, लेकिन दूरदराज के लोग इन वाहनों की सुविधा नहीं लेते हैं. ऐसे में यह सवाल वाजिब है कि जब सुविधा मिलती ही नहीं है तो कोई इन सुविधाओं का लाभ लेगा कैसे.
एके मिश्रा, सीएमओ, आजमगढ़