अयोध्या : वाल्मीकि जयंती कार्यक्रम में शामिल होने यूपी सरकार के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी अयोध्या पहुंचे थे. इस दौरान सरकारी स्कूलों में सरकारी अफसरों के बच्चों के पढ़ने के हाईकोर्ट के आदेश पर उन्होंने एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि इस तरह की कोई जबरदस्ती नहीं की जा सकती. उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि क्या अफसरों, पत्रकारों और व्यापारियों के बच्चों के सरकारी स्तूल में पढ़ने से ही शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा. क्या गरीब, मजदूर, किसान के बच्चे जहां पढ़ते हैं, वह स्कूल ठीक नहीं होगा. वहीं सत्यार्थ भारत सेवा मिशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में शहर के कई वरिष्ठ शिक्षाविदों को सम्मानित भी किया गया. कार्यक्रम में कई प्रमुख संतों ने भी उपस्थिति दर्ज कराई.
शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए हाईकोर्ट ने दिया था यह आदेश
आपको बता दें, 6 साल पहले शिव कुमार पाठक व अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने 6 माह के भीतर मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन व मानदेय अथवा धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें. हाईकोर्ट ने यहां तक कहा था कि ऐसा ना करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए. यदि ऐसे लोग कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे, तो उसी स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उससे प्रतिमाह सरकारी खजाने में जमा कराएं और वेतन वृद्धि व प्रोन्नति कुछ समय के लिए रुकने की व्यवस्था हो. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद से राजनीतिक गलियारों से लेकर हर जगह बहस छिड़ी हुई है.
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सतीश चंद्र द्विवेदी ने कहा- योगी सरकार की संकल्पना दूसरी है. जब से माननीय मुख्यमंत्री जी ने सत्ता संभाली है, उनका यही हमेशा संकल्प रहा कि जिन सरकारी स्कूलों में विशेषकर हमारे गरीब, मजदूर, किसान के बच्चे पढ़ते हैं उनको भी वह सारी सुविधाएं मिलनी चाहिए, जो अच्छे और संपन्न स्कूलों के अभिभावकों के बच्चों को मिलती हैं. आज हमारे 90 हजार से अधिक स्कूलों का कायाकल्प हो चुका है. उनकी बिल्डिंग अच्छी हुई है. हर स्कूल को टीचर मिला है. बच्चों को 2 जोड़ी यूनिफॉर्म और किताब की व्यवस्था हुई है. मिड डे मील की क्वालिटी सुधरी है. हमारी कोशिश यह है कि समाज के सबसे निचले तबके का बच्चा भी जहां पढ़ता है वहां गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए.